मुल्‍क के बेशर्म जमूरे: कोई कहता कि देश से बाहर जाओ, कोई कहता धर्म बदलो

बिटिया खबर

: तीन तलाक कट्टरवादियों के बीच असहमति की गुंजाइश कत्‍तई नहीं : खुद को शरई अदालत का सदर बताते हैं मौलाना इरफान : इससे अलग ऐसा भी बड़ा तबका है जिसे तीन तलाक पर सख्‍त ऐतराज :

कुमार सौवीर

लखनऊ : हैरत की बात है कि इस मुल्‍क में मनमर्जी पर आमादा लोगों ने देश और धर्म तक को अपनी बपौती बना रखी है। जरा सी असहमति हुई नहीं, कि एक से बढ़ कर एक मौलाना सारी असहमतियों पर गुर्राना शुरू कर देते हैं। किसी भी मसाइल पर तार्किक चर्चा करना न उनकी सिफत में है, न उनकी क्षमता और न ही एजेंडा। वे बस तीन के ढाक की हालत तक पहुंच चुके हैं। चाहे वह अपने वैचारिक विरोधियों को सीधे पाकिस्‍तान चले जाने की सलाह देना हो या फिर धर्म को बदल कर बाहर निकल जाने की सलाह देना।

मुजफ्फरनगर में यही हुआ। तीन तलाक व मुस्लिम पर्सनल लॉ में बदलाव की बहस के बीच शरई अदालत के सदर मौलाना इरफान ने कहा कि शरीयत का कानून अल्लाह ने बनाया है, इसमें बदलाव का हक सिर्फ अल्लाह को ही है। जिन्हें तीन तलाक पसंद नहीं वह अपना मसलक या धर्म बदल सकते हैं। मौलाना इरफान ने कहा कि देश की पार्लियामेंट सिर्फ उस कानून में बदलाव या परिवर्तन कर सकती है, जिसे उसने बनाया हो। मुस्लिम शिया फिर्के में भी इससे अलग नियम हैं, लेकिन हमें उस पर कोई ऐतराज नहीं। दूसरे धर्मों में तलाक किस तरह दिया जाता है, यह उनका विषय है। मुस्लिम सुन्नी फिर्के के लोग उस पर ऐतराज जताते हैं तो ये उनकी परेशानी है, शरीयत की नहीं।

इसलिए वह अपनी परेशानी को दूर कर सकते हैं। जिसे जिस मसलक में जो तरीका पसंद आता है वह उस मसलक या धर्म का अख्तियार कर सकता है। जमीयत उलमा ए हिद के जिला सदर मौलाना जाकिर का कहना है कि तलाक के बारे में बुनियादी चीज ये है कि यह तमामतर हलाल चीजों में से सबसे अधिक नापसंद है।

उधर मेडिकल कॉलेज के निकट स्थित ईदगाह के पास वीर अब्दुल हमीद स्मारक महाविद्यालय में रविवार को कई नामचीन उलेमा जुटे। मौका था तीन तलाक को लेकर जिरह का। उलेमा बोले, खुद इस्लाम तीन तलाक को जुर्म करार देता है। बैठक में इस्लाम को बुराइयों को रोकने वाला और मुल्क से मोहब्बत रखने वाला मजहब बताते हुए एक साथ तीन तलाक देने वाले को शरीयत की नजर से सबसे बड़ा मुजरिम बताया गया।

मौलाना मोअज्जम आबिद ने कहा कि इस्लाम में एक साथ तीन तलाक जुर्म है। एक साथ तीन तलाक देने वाला इंसान इस्लाम की नजर में बहुत बड़ा गुनहगार है। उन्होंने कहा कि इस्लाम में मां के पैर के तले जन्नत मानी गई है लेकिन आज कुछ औरतें गैरों के बहकावे में आकर इस्लाम को बदनाम कर रही हैं। मौलाना शहाबुद्दीन कादरी ने कहा कि जो इस्लाम को नहीं मानेगा वह मुसलमान नहीं है। हिंदुस्तानी कानून हिंदुस्तान चलाने के लिए अगर लागू कर दिया जाए तो वही काफी है।

बैठक में उलमा शरीयत के मुताबिक तलाक पर खुलकर बोले। बताया कि पति-पत्नी चाहें तो भी उन्हें शरीयत में एक साथ तीन तलाक की इजाजत नहीं है। इस तरह की सूरत में उन्हें पहले समाज और घरवालों के सामने एक तलाक देना होता है। इसके बाद उन्हें रिश्ते सुधारने के लिए शरीयत में मोहलत दी गई है। इसके बाद भी दोनों के रिश्ते सामान्य न हों तो फिर समाज के सामने दो तलाक। इसके बाद भी दोनों को संभलने का मौका मिलता है। फिर भी अगर दोनों को लगे कि अब जिंदगी साथ न कट पाएगी तो उन्हें शरीयत तीन तलाक लेने की इजाजत देती है। शौहर हो या बीबी दोनों को इसका हक है।

इस दौरान हाफिज हदीश, प्रिंसिपल मौलाना फखरुद्दीन, हाफिज अख्तर रजा, मौलाना रईश, मौलाना खुर्शीद, हाफिज अतहर हुसैन समेत नौजवान घोषी कमेटी के सदस्य इरफान अली, नियाष अहमद आदि मौजूद रहे।

उधर बिहार के प्रतापपुर प्रखंड के गजवा मे आयोजित जलसा पैगामे करबला कांफ्रेंस मंगलवार की देर रात संपन्न हुआ। कांफ्रेंस के मुख्य अतिथि बिहार विधान पार्षद जदयू के महासचिव एवं पूर्व सांसद मौलाना गुलाम रसुल बलयाबी थे। कांफ्रेंस की अध्यक्षता मौलाना तब्बारक हुसैन ने की। मौलाना बलयाबी ने कहा कि तीन तलाक का मामला शरियत से जुड़ा हुआ है। देश के भीतर सभी धर्मों को आजादी है। यदि प्रधानमंत्री को महिलाओं की इतनी चिंता है, तो पहले यशोदा बेन को देखें। उन्होंने संविधान की धारा 25 ,26, 27 एवं 28 का हवाला देते हुए कहा कि सभी लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता दी गई है। संविधान मे स्पष्ट उल्लेख है कि सभी भारतीय नागरिकों को अपने धार्मिक रीति रिवाज, अपने धर्म का प्रचार प्रसार एवं धार्मिक आचरण, धार्मिक ग्रंथों के आधार पर करने की पूरी आजादी है।

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