जीसीटी, यानी महामना का कुल-बोरन कुलपति

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: मालवीय जी को अलहाम होता कि ऐसा कुपूत उनका वंशज बनेगा, तो आग लगा देते पूरी बीएचयू में : बेटियों पर लाठीचार्ज कर अपना क्रूरतम चेहरा दिखाया है कुलपति और प्रशासन ने : खुद को संघी कह कर सब पर रूआब गांठता है यह बेशर्म कुलपति :

कुमार सौवीर

बनारस : इलाहाबाद विश्‍वविद्यालय में एक दिलचस्‍प प्रवृत्ति की शिक्षक हुआ करते थे। उनका विभाग ठीक वही था, जो अमर्त्‍य सेन का था। यानी अर्थशास्‍त्र। और यह गुरूजी  आर्थिक विचार विषय में खुद को महारथी कहते-कहलाते थे। उनकी दिनचर्या हुआ करती थी, विश्‍वविद्यालय में जहां-तहां गपशप करना। वे खुद तो कभी भी सिटियाबाजी नहीं करते थे, लेकिन जब कोई लड़का सिटियाबाजी करता पकड़ा जाता था, तो उसकी पीठ जरूर ठोंक दिया करते थे। इतना ही नहीं, पकड़े जाने पर जब्‍त हुआ आईकार्ड आदि सामान पूरी तत्‍परता के साथ वापस दिलाने में जुट जाते थे यह गुरू-श्रेष्‍ठ। लेकिन जो लोग किसी लड़की के साथ जाते दिख जाते थे, उसे जमकर फटकारते थे। भले ही वह लड़की उसकी सगी बहन ही क्‍यों न हो। गालियां देते हुए फेंचकुर ऐसा मारते थे कि बधिया बैल भी फेल हो जाए। लड़की के सामने ही लड़के से बोलते थे कि :- सिटियाबाजी करना बंद करो।

लेकिन हैरत की बात है कि यही शिक्षक अपने छात्रों को पूरा प्रश्रय दे देता था कि जाओ। क्‍लास का पूरा काम मैं करवा दूंगा। तुम कम्‍पीटीशन की तैयारी करो। और सच बात तो यही थी कि परीक्षा के दस दिन पहले ही यह मास्‍टर अपने इन सारे प्‍यारे छात्रों को बुला कर कुछ चुनिंदा सवाल थमा कर उन्‍हें पढ़ने को प्रेरित कर देता था। आश्‍चर्य की बात है कि 90 फीसदी सवाल फिट हो जाते थे परीक्षा में। लौंडा पास, नम्‍बर चौकस, खुशी बेहिसाब। दोनों की ही मस्‍त। लेकिन गुरूजी से ज्‍यादा तो उसके बड़े वाले गुरूजी भी बहुत प्रसन्‍न रहा करते थे। मतलब डॉक्‍टर मुरलीमनोहर जोशी। दोनों ही संघ की शाखाओं में जाया करते थे।

यही गुरूजी का एक खास शगल हुआ करता था, बकैती करना। याद कीजिए कि दस साल पहले एक प्रमोटेड आईएएस अफसर शुक्‍ला हुआ करता था, जिसने मायावती की सरकार में जातिवाद पर एक किताब लिखी थी। खौरियायी मायावती ने आव देखा न ताव, उसे सस्‍पेंड कर डाला। हालांकि खबर है कि पिछले साल ही सुकुल जी ने अपना पार्थिव-देह त्‍याग दी है। बहरहाल, किस्‍सा यह है कि उस  सुकुलवा का एक मकान था, उसी के बगल में गुरू जी ने भी मकान खरीद लिया। लेकिन दोनों पड़ोसियों में पटी नहीं। एक दिन गुरू जी ने शाखा के लौंडों को बुला कर उस सुकुल को कुटवा-पिटवा दिया। रगेद-रगेद कर। उसके बाद हंगामा हो गया। अफसर जमात एकजुट हो गयी, शिक्षक जी भाग निकले दुम दबा कर।

लेकिन घाघ थे मास्‍टर साहब। ऐसे कैसे मान लेते अपनी हार। उन्‍होंने हाथ में गंगा जल लिया, आचमन किया, जो बचा था उसे अपने सिर पर चारों ओर चुल्‍लू बना कर चकरघिन्‍नी इष्‍टैल में फेंका। फिर संकल्‍प का ऐलान किया कि इस अफसर को वह जीते-जी शांति से नहीं जीने देंगे। हुआ यही। गुरू जी ने अपने मकान में रहना बंद किया और उस मकान को छात्रों के लिए हॉस्‍टल बना डाला। बल्कि यह कहिये कि उस सुकुलवा का जीना हराम कर दिया। सिलेबस रटवाते थे मास्‍टर साहब, और रोज ब रोज उनके पाले-सिखाये लौंडे सुकुलवा या उसके घरवालों को कण्‍टाप-झांपड़ रसीद कर दिया करते। फिर अरदास लेकर सुकुल जी जाते थे थाने पर। कुछ दिन तो ऐसा चला, लेकिन उसके बाद थानेदार भी बिदक गया। बोला:- साहब। क्‍या पूरी दुनिया ही आपके खिलाफ है। कभी शांति से सीखना शुरू कीजिए। काहे हमारा जीना हराम कर दिया है। लौंडे अलग आपको कुल्‍ला पी-पी कर गरियाते हैं। आपके चलते हमारी दिहाड़ी की ही मां— गयी है।

अब सुन लीजिए उस मास्‍टर का नाम। उसका नाम है गिरीश चंद्र त्रिपाठी। पीछे जो भी चाहे लगा दीजिएगा, लेकिन उनके आगे प्रोफेसर जरूर लगाएगा। तो उन्‍हें लोग प्‍यार से जीसीटी कहते हैं। और यही जीसीटी साहब बीएचयू के ताजा-तरीन कुलपति हैं।

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