गणतंत्र दिवस: एनकाउंटर नहीं, सरासर कत्‍ल हैं बिकरू-करथिया जैसे हादसे

दोलत्ती

: सरकारी प्रश्रय में होने वाले ऐसी हत्‍याओं को बेनकाब करना जरूरी : बिकरू में तो पूरा महकमा ही नंगा हुआ : करथिया की बच्‍ची को झूठा दिलासा दे गया आईजी :

कुमार सौवीर

लखनऊ : करथिया में पुलिस ने एक बढई-दम्‍पत्ति ने कुछ बच्‍चों को अगवा कर लिया था और धमकी दी थी कि सरकार अगर उसकी मांगें नहीं मानेगी, तो वह सारे 23 बच्‍चों को मौत के घाट उतार देगा। सुभाष बाथम ने अपनी बच्‍ची के जन्‍मदिन पर अपने घर आमंत्रित कर उनको बंधक बना लिया था। बंधक बनाये गये बच्‍चों को रिहा करने की शर्त रखी थी सुभाष ने कि उसे 23 करोड़ रुपया दे दिया जाए। अपनी रणनीति के तहत सुभाष ने अपने तहखाने में असलहों का जखीरा जुटा लिया था, जो एक पखवाड़े तक युद्ध की हालत तक लड़ सकता था।
उधर कानपुर के बिकरू गांव निवासी और दुर्दांत अपराधी विकास दुबे ने दो जुलाई-20 को एक ईमानदार और तेज-तर्रार सीओ देवेंद्र मिश्र समेत आठ पुलिसकर्मियों की हत्‍या कर डाली थी, जब पुलिस की टीम विकास दुबे के घर छापा मारने गयी थी। इस हादसे में कुछ पुलिसकर्मी घायल भी हुए थे। बाद में पुलिस ने विकास दुबे और उसके सात अन्‍य साथियों को एनकाउंटर में मार गिराया था।

लेकिन सच सिर्फ यही नहीं है संविधान वाले गणतंत्र दिवस जी।

26 जनवरी, यानी गणतंत्र दिवस, यानी देश के आम आदमी के हक-हुकूक और जनता के अधिकारों के संरक्षण का संकल्‍प दिवस, और इसी के आधार पर लोकतंत्र को मजबूत करने का पुण्‍य दिवस। लेकिन कम से कम पिछले बरस में राजसत्‍ता की नाक के नीचे जिस तरह निरंकुश पुलिस ने आम आदमी के हितों पर भयावह कुठाराघात किया, वह इतिहास में हमेशा काले पन्‍नों पर दर्ज रहेगा। इस काल-खंड में नियम, कानून, शुचिता और शर्म-हया को बेच डाला था पुलिस और राजसत्‍ता ने।
सच बात तो यही है कि चाहे वह फर्रुखाबाद का करथिया कांड रहा हो या फिर कानपुर का बिकरू-कांड, ऐसे सारे ही मामलों में पुलिस ने जितनी कोशिश सच बताने में की, उससे लाख गुना ज्‍यादा कवायद तो अपने पक्ष में झूठ बोलने और मामले में फंस रहे अफसरों को बचाने में ही नहीं, बल्कि अपने चेहरे पर पुत चुकी कालिख को साफ करने की फिराक में कर डाली।

सच तो यही है कि फर्रुखाबाद के करथिया में मारे गये बॉथम को पुलिस ने घेर कर मारा था। वजह यह कि सुभाष बॉथम की पत्‍नी के साथ अक्‍सर बलात्‍कार किया करते थे स्‍थानीय पुलिसवाले। जब मन होता, यह पुलिसवाले सुभाष की पत्‍नी को बुलावा भेज दिया करते थे। इनकार का मतलब हुआ करता था कि सुभाष को पुलिस यंत्रण देना और उसे जेल भेज देने की धमकी। आजिज आ चुका था सुभाष और उसकी पत्‍नी भी।

करथिया-कांड में दोलत्‍ती संवाददाता ने घटनास्‍थल पर पहुंच कर छानबीन की, तो कई चौंकाने वाले तथ्‍य सामने आये। कहानी सिर्फ यहीं तक नहीं है, जो पुलिस ने पेश की। यहां के 23 बच्‍चों को कथित रूप से अगवा कर उनके घरवालों से प्रति बच्‍चा एक-एक करोड़ रूपयों की फिरौती मांगे जाने वाले तथाकथित हादसे में पसरे-बुने गये तार और तारतम्‍यता ठीक ऐसे ही नहीं हैं, जिसे पुलिस ने फैलाया ही नहीं, बल्कि तथ्‍यों को बुनने, धोने, छीपने, पसराने और सुखाने की तोड़फोड़नुमा कोशिशें भी की हैं। सच तो यही है कि इस पूरे मामले में पुलिस ने कहानी का जो दोशाला बुना, उसमें अधिकांश तथ्‍य पूरी तरह झूठ पर ही सिले-बुने गये थे।

चाहे इस हादसे में मारे गये सुभाष बाथम और उसकी पत्‍नी के किरदार का मामला हो, बच्‍चों को जन्‍मदिन पार्टी आयोजित करने के लिए बच्‍चों को बुलाने का मामला हो, बेहाल बच्‍चों के घरवालों से फिरौती मांगने का मामला हो, मुफ्त में बंटने वाले सरकारी आवास की मांग को करोड़ों की फिरौती में तब्‍दील करने की बात हो, सुभाष पत्‍नी को भारी पुलिस बल की मौजूदगी में भीड़ द्वारा पीट-पीटकर मार डालने की बात हो, या फिर इस घटना में सुभाष के मकान को 12 घंटों तक पुलिस द्वारा की गयी घेराबंदी का मामला हो, सब की सब कहानी में सिर्फ बेशर्म झोल ही झोल था।

पुलिस और प्रशासन ने इस हादसे में जो भी तथ्‍य प्रस्‍तुत किये थे, वह अपने आप में निहायत बचकाना और घटिया भी था। मसलन, फर्रूखाबाद के सुतली बम को बम के तौर पर पेश कर सुभाष बाथम को अनपढ़ होने के बावजूद उसे महानतम भौतिकी और रसायनशास्‍त्री और विस्‍फोट वैज्ञानिक करार दे दिया गया। पुलिस ने दावा किया था कि वहां असलहों का जखीरा था, जो एक पखवाड़े तक युद्ध की हालत तक बना सकता था।
पत्रकार तो बढ़-चढ़ कर पुलिसिया कहानी को ही सच का मुलम्‍मा चढ़ाने में जुटे रहे। पुलिसवाले और डीएम बोले 23 करोड़ मांगा। फिर पुलिस बोली कि सरकारी आवास मांगा था। लेकिन फिर बोले कि नहीं, सुभाष बाथम की साजिश तो वहां एक भयावह नजारा पैदा करना ही था।

करथिया में पुलिस ने गजब समां बांधा। चारों ओर से पुलिस की घेराबंदी के बावजूद सुभाष की पत्‍नी घर से बाहर निकली, और फिर अचानक भीड़ ने उसकी पत्‍नी को पीट कर मार डाला। जाहिर है कि पुलिस का मकसद भी यही कर डालना था, कि कोई भी विवाद न खड़ा हो पाये। इसके काफी बाद पुलिस ने घर में घुस कर सुभाष को भी गोली मार दी और सारा श्रेय अपने ऊपर ले कर अपनी ही पीठ ठोंकना शुरू कर दिया। आईजी मोहित अग्रवाल ने बेहद आहत और भावुक होने का बखूबी अभिनय किया, और दावा कि वह सुभाष की मासूम को आईएएस-आईपीएस बनाने के लिए उसको गोद लेंगे। खबर मुख्‍यमंत्री को बरगलाते हुए 23 बच्‍चों को लखनऊ में बुलाकर उनको तोहफे दिलवा कर पुलिस ने अपनी खूब वाहवाही की। लेकिन आज वह बच्‍ची किस हालत में है, किसके साथ है, किसी को खबर तक नहीं।

आईजी मोहित अग्रवाल को बिकरू के तौर पर नया काम मिल गया, तो करथिया की कथरी भी फेंक दी गयी।

करथिया और बिकरू कांड पर दोलत्‍ती द्वारा तैयार की गयी खबरों को अगर देखना चाहें तो निम्‍न शीर्षक पर क्लिक कीजिएगा:-

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वरना गणतंत्र पर कालिख पोतते ही रहेंगे बिकरू जैसे घृणित कांड

फर्रूखाबाद कांड: झूठ है 23 करोड़ की फिरौती वाली कहानी

फर्रुखाबाद हादसे को समझिये, खूनी खतरा आपके सिर पर भी है

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फर्रूखाबाद: आईजी की हर कहानी में सिर्फ झूठ का तड़का

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