कोर्ट में कम्‍टेम्‍प्‍ट की धमकी और दलील इग्‍नोर करना गलत : एलपी मिश्र

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: कई सवालों पर जवाब नहीं, केवल रहस्‍यमयी मुस्‍कान फेंकते हैं एलपी मिश्र : सरकारी पदों को लेकर वकील मरभुक्‍खा न बनें, मकान-जमीनों पर कब्‍जा निन्‍दनीय : चयन में वकालत में आ रही नयी पौध बेहद संवेदनशील और जिम्‍मेदार :

कुमार सौवीर

लखनऊ : एलपी मिश्र से इंटरव्‍यू के दौरान एक खास सवाल उठा बेंच और बार के बीच अक्‍सर होने वाले क्‍लैश के कारणों पर। जवाब दिया मिश्र ने। बोले:- आम तौर पर अधिकांश पीठ फैसले देने में जल्‍दबाजी करती हैं। वकील को मौका न देना। बात-बात पर कन्‍टेम्‍प्‍ट आफ कोर्ट की धमकी देना। वकील के तर्कों-दलीलों को दर्ज न करना, उद्धृत न करना, विचारण न करना। यह वह सारी दिक्‍कतें हैं जो असंतोष की जननी बन जाती हैं वकीलों के मन में। ऐसी हालत में वकील को अपने कार्य-दायित्‍वों में संतुष्टि नहीं मिल पाती है। बहुत कम ही ऐसी बेंच हैं जहां वकीलों में संतोष भाव मिल पाता है।

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लर्नेड वकील साहब

एलपी मिश्र को बहुत बुरा लगता है, जब पता चलता है कि वकीलों का कोई झुण्‍ड किसी मकान का कब्‍जा कराने जैसी हरकतों में लिप्‍त है। यह गलत है, और जो गलत है, उसका समर्थन कैसे किया जा सकता है। उन्‍हें इस पर भी ऐतराज है कि सरकारी वकील वाले पदों को हासिल करने के लिए वकील समुदाय दौड़े। वकील मरभुक्‍खा न बने। सरकारी वकील पर तैनाती करने का काम सरकार का होता है, उस पर हस्‍तक्षेप करना अनुचित है। सरकार खुद ही तय करे, और देखे कि कौन वकील इस काम के लिए बेहतर है। यही तरीका बेहतर है। हां, इस बात पर ध्‍यान जरूर रखना चाहिए कि इस तरह के पदों की चयन-प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी हो। पारदर्शी का मतलब पारदर्शी।

वकीलों के व्‍यवहार और उनमें गुणवत्‍ता के सवाल पर मिश्र कहते हैं कि हमारे दौर में जो वकील थे, सच बात कहूं तो अप टू द मार्क नहीं थे। लेकिन आज जो पौध आ रही है, वह बेहद संवेदनशील और अपने काम के प्रति जिम्‍मेदार है। मेरे समय में बाबू हरदयाल गोविंद श्रीवास्‍तव, श्रीपति मिश्र, अहमद इश्तियाक अब्‍बासी, एससी राय, एन बनर्जी, मो हुसैन, मो यूसुफ, बाबू बिशन, आरएन त्रिवेदी जैसे वकीलों ने नवोदितों पर बेहद सहयोग किया। तब के जज भी वकीलों का बहुत सहयोग करते थे। लेकिन बीच में कम्‍युनिकेशन-गैप हो गया। हकीकत तो यही है कि हम उस तरह की परम्‍परा नहीं बरकरार कर पाये। इसका अफसोस है हमें। लेकिन अब कोशिश जरूर करेंगे कि यह परम्‍परा दोबारा शुरू हो जाए।

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जस्टिस और न्‍यायपालिका

19 सितम्‍बर-47 को बहराइच के महसी क्षेत्र में जन्‍मे एलपी मिश्र का पैत्रिक गांव घाघरा नदी के तेज प्रकोप में हमेशा के लिए समाप्‍त हो गया। इतना ही नहीं, आसपास के तीन गांव मुंसारी, पटकापुर और सुखईपुर में एलपी मिश्र इकलौते ऐसे युवक थे, जो हाईस्‍कूल पास कर बहराइच में पढ़ने गये थे। यह तीनों ही गांव हमेशा-हमेशा के लिए घाघरा की गोद में लुप्‍त हैं। ऐसी ही जमीन पर एक मजबूत दरख्‍त के तौर पर एलपी मिश्र अपने जड़ें वकालत में बेहिसाब जमायी हैं। बहस और तर्क के बादशाहों में से शुमार किये जाते हैं एलपी मिश्र। मिश्र ने पैसा भी और नाम भी बेशुमार कमाया है। किसी भी सवाल पर मिश्र तपाक से जवाब देते हैं। लेकिन चंद सवाल ऐसे भी हैं जिसका जवाब देते वक्‍त वे अपनी आंखों को हल्‍की जुम्बिश देकर अपना चश्‍मा कुछ तरह झुका कर उसके ऊपर आंखें उठा कर बेहद रहस्‍यमयी मुस्‍कान बिखेरते हैं, कि अगला लाजवाब हो जाए। मसलन, ढाई दशक पहले जस्टिस डीपी सिंह और जस्टिस लाल की बेंच पर हुआ हंगामा, वकीलों की गुण्‍डागर्दी, मुकदमों में तारीख-दर-तारीख डालने-डलवाने की घिनौनी परम्‍परा, और अपील को एप्‍पल तथा प्रॉक्‍सीक्‍यूशन को प्रॉस्‍टीट्यूशन लिखने वकीलों की काबिलियत जैसे मूलभूत सवालों को वे ऐसे ही रससिक्‍त मुस्‍कानों में बहा डालते हैं।

लखनऊ हाईकोर्ट के बड़े वकील और अवध बार एसोसियेशन के नये-नवेले अध्‍यक्ष हैं एलपी मिश्र। विगत दिनों प्रमुख न्‍यूज पोर्टल मेरीबिटिया डॉट कॉम के संवाददाता ने एलपी मिश्र से काफी लम्‍बी बातचीत की। यह इंटरव्‍यू दो टुकड़ों में है। इसके अगले अंक को पढ़ने के लिए कृपया निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिए:-

एलपी मिश्र-एक


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