कलेक्‍टरों पर बात आयी, तो बगलें झांकने लगे नगर विकास मंत्री

बिटिया खबर

: नगर पालिका की अफसर ने डीएम और जनप्रतिनिधियों को नंगा कर दिया : पालिका अफसरों की बैठक में नगर विकास मंत्री भौंचक्‍का : दुनिया भर की सुविधाएं जेब में बटोरते हैं डीएम लोग : डीएम-एडीएम नगर निकायों से चार संविदा कर्मचारी लूटते हैं : कर्मठ संविदाकर्मियों को ऐसे दबाव निठल्‍ला बना डालते :

कुमार सौवीर

लखनऊ : गुजरात में अफसरी छोड़ कर यूपी में मंत्री बने साहब अपने मातहतों की बहुत चिल्‍ल-पों कर रहे थे। गुस्‍साये थे कि फर्जी काम मत करो, धोखा देना बंद करो। कह रहे थे कि यह नहीं, वह किया करो। नहीं किया तो हैन कर देंगे, तैन कर देंगे। ऐसी कर देंगे, तैसी कर देंगे। लेकिन इसी बीच एक अफसर ने आला अफसरों की लुंगी खोलनी शुरू कर दी, तो मंत्री जी बगलें झांकने लगे। उस दिन के बाद से ही मंत्री जी अब दुनिया-जहान की बात तो खूब कर लेते हैं, लेकिन भ्रष्‍टाचार पर नहीं।
मामला है उप्र के नगर निकायों का, जहां सैकड़ों नगर पालिका, नगर पंचायत और नगर निगम जैसी छोटी-बड़ी तथाकथित स्‍वायत्‍त संस्‍थाएं हैं। घटना है नगर निकायों के कामकाज को सम्‍भालने वाले अधिशासी अधिकारियों व नगर आयुक्‍तों को लेकर। खबर के मुताबिक प्रदेश के नगर विकास मंत्री अरविंद कुमार शर्मा विगत दिनों लखनऊ में निकाय अफसरों की बैठक ले रहे थे। एजेंडा था नगर निकायों में कामकाज सुधारने और उनमें बसी-रची गड़बडि़यों को पहचान कर उन्‍हें बेहतर तरीके से चमकाने-दमकाने का। बैठक में नगर विकास विभाग के अपर मुख्‍य सचिव और उनका पूरा सचिवालय, नगर निकाय निदेशालय और लखनऊ के आला अफसर भी मौजूद थे।
बैठक के दौरान मंत्री ने बहुत कड़े शब्‍दों में नगर निकायों के अधिशासी अफसरों को फटकारा कि वे निकायों में भ्रष्‍टाचार को संरक्षण दे रहे हैं। नमूने के तौर पर मंत्री का कहना था कि निकायों में संविदा पर जो कर्मचारी तैनात किये गये हैं, उनको निजी और अनुत्‍पादक कामों के लिए अनावश्‍यक रूप से भर्ती कर लिया गया है। उनका कहना था कि संविदा पर तैनात ऐसे अधिकांश कर्मचारियों के पास काम ही नहीं है। यह भ्रष्‍ट आचरण है, और ऐसे कर्मचारियों को तत्‍काल हटा दिया जाना चाहिए। सख्‍ती के साथ यह भी निर्धारित किया जाना चाहिए कि आइंदा ऐसी भर्तियों पर रोक लगायी जाए। मंत्री का कड़ा रवैया था कि भविष्‍य में अगर ऐसे अफसरों की शिकायत सच पाये जाएगी, तो उन अफसरों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
सूत्र बताते हैं कि इसी विषय पर मंत्री जी लम्‍बा-चौड़ा प्रवचन देने पर मशगूल रहे, जबकि अधिकांश अफसर ऐसे प्रवचनों पर जम्‍हाई भर रहे थे, कुछ बाकायदा सो भी रहे थे।
लेकिन इसी प्रवचन के बीच मंत्री को एक जोरदार ब्रेक मिल गया। सूत्रों के अनुसार एक नगर निकाय की अधिशासी अधिकारी ने मंत्री जी को खुलेआम कह दिया कि मंत्री जी का हुकुम तो सिर-आंखों पर शिरोधार्य है। लेकिन कुछ दिक्‍कतें कुछ ऐसी हैं, जो अनअवाइडेबल हैं। उन दिक्‍कतों को जितनी भी जल्‍दी दूर कर लिया जाएगा, विभाग में इस तरह की दिक्‍कतों को फौरन हटा दिया जाएगा। इस अधिकारी का कहना था कि सभी निकायों में यही दिक्‍कत चल रही हैं और इसका मूल-जड़ को तत्‍काल उखाड़ डालने की तत्‍काल आवश्‍यकता है। इस अधिकारी का कहना था कि भरी मीटिंग में इस पर चर्चा करना दिक्‍कत-तलब हो सकता है। इसलिए मंत्री उसे मीटिंग के बाद समय दे दें।
विश्‍वसनीय सूत्र बताते हैं कि इस महिला अधिशासी अधिकारी ने अपने कई साथी अधिकारियों को भी ऐसी दिक्‍कतों का खुलासा किया। बात मंत्री तक पहुंची, तो सन्‍नाटा फैल गया। हड़ब ड़ा कर मंत्री अरविंद कुमार शर्मा ने बैठक के दूसरे एजेंडों की ओर बातचीत मोड़ दी। सूत्र बताते हैं कि मंत्री जी के पास इस मसले पर बातचीत करने का कोई रास्‍ता ही नहीं बचा था।
लेकिन मामला तो ज्‍वालामुखी का मुहाना खोलने का हो चुका था। दरअसल, बैठक में मौजूद कुछ अधिकारियों ने दोलत्‍ती डॉट कॉम को बताया कि इस महिला अधिशासी अधिकारी ने कहा था कि संविदा कर्मचारियों को भर्ती करना निकायों के कामकाज के लिए नहीं किया जाता है, बल्कि बड़े अफसरों के घरों और दफ्तरों के लिए उन्‍हें नियुक्‍त किये जाने का दबाव होता है। औसत किस्‍म के निकायों में भी जिलाधिकारी और अपर जिलाधिकारी के खाते में चार कर्मचारी निकायों से नियुक्‍त किये जाते हैं, जिनका भुगतान नगर निकायों को संविदा कर्मचारी के तौर पर किया जाता है और कहने की जरूरत नहीं है कि ऐसे कर्मचारियों के पारिश्रमिक का खर्चा नगर निकाय ही उठाता है। और सिर्फ इतना ही नहीं, नगर निकाय के अध्‍यक्षों और स्‍थानीय विधायकों को भी अपनी निजी सेवा करने-कराने का बडा शौक चर्राया होता है। वे खुद भी चाहते हैं कि जब डीएम और एडीएम को अपने निजी कामधाम के लिए निकायों से संविदा कर्मचारी निकाय के खजाने से कराने की सुविधा चाहिए होती है, तो नगर निकाय अध्‍यक्ष और स्‍थानीय विधायकों को भी तो उनका हक मिलता ही है। उनका दावा होता है कि हमें भी यह सुविधा नहीं दी गयी तो वे भी अड़ंगा लगाना शुरू कर देंगे।
अब नतीजा यह, कि संविदा कर्मचारियों और भ्रष्‍टाचार जैसे मसलों को गैरजरूरी समझ कर उन पर आजकल मंत्री जी तनिक भी नहीं बोलते हैं।

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