छोटी घटना, बड़ा दरोगा ने महान बना डाला

सक्सेस सांग

: पुलिस थाने पर पहुंच कर मासूम बोला कि उसके बाप को पीट कर बंद कर दो : इटावा के पुलिसवालों ने बच्‍चे समेत पचासों बच्‍चों को नुमाइश की सैर करा डाली : बच्‍चे को समझाया भी कि मम्मी-पापा का की दिक्कतें भी समझने की कोशिश करो :

कुमार सौवीर

लखनऊ : यह छोटी सी घटना थी। इतनी छोटी, कि उस पर सामान्‍य तौर पर कोई ध्यान भी नहीं दे पाते। लेकिन पुलिस ने अपनी वर्दी पर बेल्ट कसने के बजाए अपने दिल को खोल दिया। फिर क्या था( एक अजस्र धारा बह निकल पड़ी। करुणा की, जिसमें घुला-मिला मौजूद थी समझदारी, मानवता और सामाजिक रिश्तों का गजब मिश्रित ताना-बाना।

जरा सोचिए कि एक मासूम बच्चा अपनी आंखों में आंसू भरे हुए पुलिस थाने पर पहुंचे और बिलख पड़े। अपने पिता पर शिकायत करें कि उसके पिता उसे समय ही नहीं देते। वह घूमना चाहता है, लेकिन इसे घुमाने नहीं ले जाते। वह चाहता है कि उसके पिता उसे नुमाइश या किसी प्रदर्शनी-एग्जीबिशन में ले चलें। खुद न भी चल सकें, तो कम से कम ऐसा जरूर करें कि उसे एग्जीबिशन जाने का अवसर मिल सके। मगर उसके पिता ऐसा नहीं कर रहे हैं। बच्चे को इसी बात पर गुस्सा है और वह चाहता है कि पुलिस वाले उसकी मदद करें। पुलिस वाले उसके बाप पर दबाव डालें ताकि वे उसे एग्जीबिशन ले जाएं। और अगर ऐसा नहीं होता है तो उस बाप के साथ ठीक वही सुलूक किया जाए थाने में आने वाले सामान्‍य शातिर अपराधियों के साथ होता है। मतलब उन्हें हूर दिया जाए, पीटा जाए और फिर हवालात में बंद कर दिया जाए।

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थाने में जब यह बच्‍चा पहुंचा तो उसे किसी भी पुलिस वाले ने उसे डांटा नहीं। न ही उसकी ओर हिकारत-उपेक्षा की नजर डाली। ऐसा भी नहीं किया उस बच्‍चे की बात को अनमने तरीके से ही सुन लिया और उसे टरका लिया। यह भी नहीं कि उस बच्‍चे की बात को सुन कर इंस्‍पेक्‍टर ने दो-एक पुलिसवालों को भेज कर उसके मोहल्‍ले पर पहुंच कर उसके मां-बाप पर अपने पुलिसिया रंग-दाब का प्रदर्शन किया, दो-चार डंडे मारे, या उसके गालियां देते हुए ताईद करने की कोशिश की कि आइंदा ऐसा हुआ तो डंडा यथास्‍थान रख दिया जाएगा।

बल्कि पुलिसवालों ने उसकी पीड़ा को सिर्फ समझा ही नहीं, बल्कि उसे व्‍यापक परिदृश्‍य में देखने, दिखाने और समझ कर उसका सामूहिक निदान खोजने की कोशिश की। इस पुलिसवाले ने इस बच्‍चे की पूरी बातचीत का वीडियो बनाया और उस बात को अपने अधिकारियों के साथ ही साथ जन-सामान्‍य तक वायरल कर दिया। जाहिर है कि यह पुलिसवाला जानना था कि यह सामाजिक मसला है, इसलिए वह यही चाहता रहता होगा कि उसका सामाजिक निदान खोजे।

इस मसले पर वरिष्‍ठ पुलिसअधिकारियों ने भी ठीक उसी गम्‍भीरता से उसे देखा, समझा और उस मसले का समाधान खोजने का रास्‍ता निकाल लिया। इटावा का बड़ा दारोगा यानी एसएसपी वैभव कृष्‍ण ने इस प्रकरण पर संवेदनशीलता का प्रदर्शन किया, और अपने मातहतों से कहा कि इस बच्‍चे की ख्‍वाहिश पूरी हो जाए। पुलिसवालों की टोली बच्‍चे के घर गयी, उसके मां-बाप से बातचीत की, दोनों के साथ ही बच्‍चे को भी भरसक समझाया। और उसके बाद केवल उस बच्‍चे ही नहीं, बल्कि पूरे मोहल्‍ले के ऐसे ही हमउम्र बच्‍चों को जुटाया। इसके बाद एक बस जुटायी, और उन करीब पचास बच्‍चों को लेकर यह पुलिसवाले सीधे उस प्रदर्शनी स्‍थल पहुंचे। बच्‍चों को घुमाया, बच्‍चों ने जो भी चाहा, उन्‍हें खिलाया। झूला झुलाया, अपने साथ सैर की और उनकी हर एक बात को पूरी बात सुनी। ( क्रमश:)

यह घटना केवल इसलिए महत्‍वपूर्ण नहीं है कि इसमें पुलिसवालों ने सिर्फ उस बच्‍चे को संतुष्‍ट किया। बल्कि यह घटना इस लिए महान बन गयी है, क्‍योंकि पुलिसवालों ने इस बच्‍चे की निजी समस्‍या को सामाजिक समस्‍या की तरह देखा, और उसका सामूहिक तौर पर समाधान खोजने की कोशिश की है। इस मामले में हम इटावा के बड़ा दारोगा को सैल्‍यूट करते हैं। इसके साथ ही साथ इस पूरे मसले को बाल एवं मनो-सामाजिक मसले के तौर पर उसका विश्‍लेषण करने की कोशिश करने जा रहे हैं। यह श्रंखलाबद्ध आलेख तैयार किया है हमने। इसकी बाकी कडियों को देखने के लिए कृपया निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिएगा:-

वर्दी में धड़कता दिल

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