भदोही काण्ड: धंधा है दलाली व चरण-चूमने का, खबर कैसे मिले

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: वाकई सिर्फ बेशर्म गिरोहबन्दी करते हैं भदोही के टुच्चे पत्रकार : भदोही की बिटिया की खबर को भी बेच डाला दो कौड़़ी के पत्रकारों ने : अमर उजाला और आज ने तीन लाइनों में छापा:- सिर्फ छेड़खानी हुई : आज लखनऊ व दिल्ली से टाइट किये गये इन दलाल पत्रकारों के पेंच : नियमित पैकेट हासिल करते हैं जाहिद बेग और विजय मिश्र से पत्रकार :

कुमार सौवीर

लखनऊ : एक नन्हीं सी जान है ईशा जायसवाल। सिर्फ 19 साल उम्र। चाटर्ड एकाउंटेंसी की पढ़ाई कर रही है ईशा। पिता मर चुके हैं, मां जस-तस अपने बच्चे को पढ़ा रही है। शुक्रवार की शाम उसे भदोही के भरे बाजार में दो युवकों ने उसे बुरी तरह पीटा, उसके कपड़े फाड़ कर नंगा कर दिया। पूरे शहर में हंगामा हो गया। पुलिस ने संज्ञेय धाराओं में हमलावरों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की, लेकिन इस खबर को भदोही में अपना चेहरा काला पोत रहे पराड़कर-पुत्रों ने बेच डाला। ज्यादातर ने तो इसे खबर माना ही नहीं। हिन्दुस्तान और आज ने केवल तीन-तीन लाइनों में केवल हल्की छेड़खानी का मामला दिखा कर छापा, जबकि दैनिक जागरण और अमर उजाला के रिपोर्टर तो उस खबर को घोंट कर पी गये।

जानते हैं क्यों? क्यों कि अपराधी का सगा चाचा जाहिद बेग समाजवादी पार्टी का स्थानीय विधायक है। खबर तो यहां तक है कि भदोही में रहने वाले अधिकांश पत्रकारों को जाहिद बेग और विजय मिश्र जैसे नेताओं की ओर से हर हफ्ते नजराना दिया जाता है। इतना ही नहीं, अधिकांश पत्रकार कालीन व्यवसाइयों से नियमित बंधी हुई रकम पाते हैं। और ऐसे कालीन व्यावसाइयों का करीबी रिश्ता सपा जाहिद बेग और विजय मिश्र से है। इनकी छींक भी इन अखबारों-चैनलों में मोटी हर्फ में छापी-दिखायी जाती है।

बहरहाल, मेरी बिटिया डॉट कॉम के हस्तक्षेप के बाद अब माहौल में हड़बड़ाहट का माहौल है। आज दोपहर भदोही के इस दर्दनाक और दारूण काण्ड पर मेरी बिटिया डॉट कॉम ने जब पूरी तरह खोल दिया, तो उसके बाद से ही लखनऊ और दिल्ली में प्रिण्ट और न्यूज चैनलों की नींद टूटी। पता चला है कि कल सारे यह पत्रकार अब अपनी दलाली के बजाय अपनी नौकरी बचाने की जुगत में जुट गये हैं।

अब तक मिली खबर के मुताबिक यहां के पत्रकार किसी कुख्यात गिरोह की तरह काम करते हैं। खबरों को रोटी देने वाले अपने मालिकों के इशारों पर ही तय किया जाता है कि किस खबर को छापना है अथवा नहीं। यह साजिश पिछले एक दशक से ज्यादा पनपी है। हालांकि इसके बावजूद यहां के कुछ पत्रकार ऐसे भी हैं जो ऐसी गिरोहबंदी से दूर रहते हैं। लेकिन उन्हें हमेशा खतरा रहता है कि न जाने कब उनके खिलाफ साजिश बुन ली जाए।

मेरी बिटिया डॉट कॉम ने भदोही में अमर उजाला के साजिद अंसारी और दैनिक जागरण के कैसर परवेज आदि से बातचीत करने की कोशिश की, लेकिन उन लोगों ने मेरा फोन नहीं रिसीव किया।

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