: समूह सम्पादक की लखनऊ यात्रा के दौरान पलक-पांवड़े बिछा देते हैं ब्यूरो के सारे रिपोर्टर : कहीं अपने भविष्य को लेकर निजी आर्थिक योजनाओं पर तो काम नहीं कर रहे यह सम्पादक : पत्रकारीय-मूल्यों के वट-वृक्ष को उखाड़ कर मसलने में इस सम्पादक का योगदान काले-काले अच्छरों में लिखा जाएगा :
कुमार सौवीर
लखनऊ : हैरत है इस अखबार में। जीवन से लेकर पत्रकारिता तक चर्चाएं चल रही हैं, गुस्से और आश्चर्य के बगूले उठ रहे हैं, कयासों का दौर बेकाबू होते जा रहे हैं। लेकिन इन सबसे बेफिक्र इस अखबार के समूह संपादक लखनऊ से वाले छपने वाले अखबार की छीछालेदर करने पर आमादा हैं।
विचित्रयंत्र विज्ञापन पत्र के यह समूह संपादक जी लगातार बार बार लखनऊ आ रहे हैं। अक्सर तो हर महीने दो से तीन बार तक। हर बार कई-कई दिनों के लिए आते हैं, बड़े होटल में रहते हैं, ऐश करते हैं और पत्रकारों को ज्ञान लुटाते हैं, लेकिन खबर या पत्रकारिता पर नहीं। उनकी चिंता का यह विषय नहीं होता है कि किस पत्रकार की खबर कैसी होनी चाहिए, कैसी होनी चाहिए भाषा, कैसे होने चाहिए तेवर, ऐसे होने चाहिए अंदाज। वे इन मसलों पर कोई भी चर्चा नहीं करते। बस देखते हैं किस तरह किस अखबार में पराड़कर के वंशजों द्वारा किस तरह पत्रकारिता के उच्चतम प्रतिमानों और मूल्यों की हत्या हो रही है, और उसे कैसे और भी पैना किया या बनाया जा सकता है। किस तरह आस्थाएं तोड़ी जा रही हैं, कैसे भाषा के साथ ऐसी की तैसी चल रही है, कहां मूल्य को कुचला जा रहा है, खबर के नाम पर कैसे नींव पाताल से उखाड़ी जा सकती है, कैसे किया जा सकता है कि किस अखबार को जमीन में कर दिया जाए, कैसे पत्रकारों का हौसला पस्त किया जाए, मूल्यों को कैसे धराशायी किया जाए, दो टके बेचा जा सके नैतिक-प्रतिमाएं, नीलाम किया जा सके पत्रकारिता के महानतम स्तंभों को मूल्यों को।
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संपादक जी हर महीने आ रहे हैं। लखनऊ महीने में कई-कई बार आते हैं। पत्रकारों से बातचीत कम, प्रबंधन से जुड़े लोगों से अधिकतम बातचीत करते हैं। लेकिन इस से भी ज्यादा समय उनका केवल इसी काम से लग जाता है कि वे कैसे मुख्यमंत्री से भेंट कर लें, कैसे उप मुख्यमंत्रियों मिल सकें और कैसे प्रदेश के आला अफसरों से मुलाकात कर सकें। हैरत की बात है कि यह ह पता नहीं चल पा रहा है कि ऐसी मुलाकातों का मकसद क्या होता है। क्योंकि एक बार भी इस से जुड़ी कोई भी खबर उनके अखबार में नहीं दिख पाती है। इसके पहले यही समूह संपादक जी कूद-कूद कर भाजपा के बड़े नेताओं और मंत्रियों के साक्षात्कार छापा करते थे। उटपटांग इंटरव्यू, बकवास की श्रेणी में। लेकिन जैसे ही प्रमुख न्यूज़ पोर्टल मेरीबिटियाडॉटकॉम ने इस समूह संपादक के ऐसे कृत्य -कृत्य को पहचान कर उनके पर काटना शुरु कर दिया, यह समूह संपादक जी के पैरों के तले की जमीन खिसक गई। नतीजा, उन्होंने ऐसा कोई भी इंटरव्यू लेना बंद कर दिया।
अब सवाल यह कि इन मंत्रियों से क्यों मिलते हैं यह समूह सम्पादक जी। क्यों आते हैं उनके पास। उनके संस्थान को लेकर ऐसी मुलाकातों का कोई स्पष्ट योगदान नहीं है। इस संस्थान के एक वरिष्ठ पत्रकार ने बताया कि निजी आर्थिक और व्यावसायिक को मसलों को साधने की कोशिश ही करते हैं यह समूह सम्पादक, ताकि बचे-खुचे कार्यकाल में अपना भविष्य सुखमय बना सकें, समृद्ध कर सकें। एक वरिष्ठ पत्रकार ने प्रमुख न्यूज़ पोर्टल मेरी बिटिया डॉट कॉम को बताया कि यह समूह संपादक के लखनऊ दौरे के दौरान पूरा का पूरा ब्यूरो टीम के दिग्गज पत्रकार पूरी तरह उनके चरणों में गिर जाते हैं। उस पूरे दौरान काम-धाम पूरी तरह थम सा जाता है। खबरें केवल औपचारिकताओं तक सिमट जाती हैं। ब्यूरो से जुड़े सारे रिपोर्टर अपने समूह संपादक किसी शहंशाह के दरबारियों की तरह आगे पीछे घूमा करते हैं और संपादक की जी हजूरी हुजूरी में किसी अंगरक्षक या सेवक की तरह मंत्री से लेकर अफसरों के बीच गलीचा बिछाते दिख जाते हैं।
समाचार समाप्त नहीं हुए हैं, बल्कि अब क्रमशः शुरू होने जा रहा है।