: अकेले दीवानी अदालतों में ही रोजाना बर्बाद हो रहा है बहुमूल्य पचीस हजार श्रम-दिवस : जमीन के झगड़ों से कचेहरी में लगा मेला, 75 फीसदी अभियुक्त हाजिरी-माफी लगाये मस्त : दीवानी का मसला सुलझा लिया जाए, तो जौनपुर बदल जाए : जजों के लिए सर्वश्रेष्ठ ट्रेनिंग सेंटर होती है यहां की पोस्टिंग :
कुमार सौवीर
जौनपुर : सामान्य तौर पर किसी भी न्यायिक मैजिस्ट्रेट की इजलास में कम से कम पांच सौ फाइलें रोजाना निपटायी जाती हैं। वजह है 27 थानों का काम सिर्फ 8 मैजिस्ट्रेटों के माथे पर है। सुनवाई तो दूर, सिर्फ दस्तखत निपटाने में ही देर शाम हो जाती है। दिनचर्या में सुनवाई का काम अब दोयम दर्जे तक सिमटता जा रहा है। जमीन के झगड़ों को लेकर चल रहे मुकदमों में उन्हीं का नम्बर सुनवाई की दहलीज तक पहुंच पाता है, जिन्हें हाईकोर्ट ने समय-सीमा में बांध कर निपटाने का निर्देश दिया होता है। दिन भर के पचड़े-लफड़े के चक्कर में किसी को अहसास तक नहीं हो पाता है कि आखिर यह न्यायिक व्यवस्था किस दिशा में जा रही है।
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हालांकि यह तस्वीर पूरे देश में कमोबेश एक जैसी ही है, लेकिन अगर आप नमूने के तौर पर जौनपुर की हालत पर निगाह डालें तो नतीजे चौंकाने वाले हैं। जीडीपी में जौनपुर के योगदान का आंकलन आप केवल इसी तथ्य से कर सकते हैं कि कम से कम 25 हजार लोगों की मौजूदगी यहां की दीवानी कचेहरी में जुटती है। केवल झगड़ा, सिर्फ मुकदमा। यानी इतनी बड़ी संख्या में जौनपुर के लोग इस बेहद अनुत्पादक काम में लिप्त रहते हैं। हर महीने में यहां मानव-श्रम की बर्बादी को सहज ही समझा जा सकता है।
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दीवानी बार एसोसियेशन के मंत्री है जय प्रकाश। चप्पल चटकाता अंदाज, मुस्कुराता चेहरा, छोटा-सा कद, अजीमुश्शान सोच। वामपंथ भले ही हिन्दी बेल्ट में लिप्तप्राय प्रजाति के तौर पर गिना जा रहा हो, लेकिन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के जौनपुर इकाई के सचिव रह चुके कॉमरेड जय प्रकाश का बार एसोसियेशन में मंत्री बनना साबित करता है कि जौनपुर की न्यायिक दुनिया में आज भी संघर्ष और जुझारूपन की तेज हिलोरें मौजूद हैं। वरना बस यूं ही यह धारणा नहीं बनी है कि वकीलत ही नहीं, बल्कि जजों के लिए भी जौनपुर एक श्रेष्ठ ट्रेनिंग सेंटर है। जज आज भी यहां की पोस्टिंग पसंद करते हैं, ताकि खुद में कानूनी पेंच-ओ-खम सीख सकें। पूर्वांचल में अकेला यही जिला है, जहां सुरेश चंद्र मिश्र और आदित्य नारायण मिश्र जैसे वकील और पीसी विश्वकर्मा जैसे लॉ-मास्टर मौजूद हैं।
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अपने एक मित्र दिल्ली के पत्रकार शीतल सिंह के साथ अचानक कल मैं जौनपुर की दीवानी पहुंच गया। जय प्रकाश भाई से 14 साल पुरानी दोस्ती है हमारी, जब मैं यहां जौधपुर से यहां दैनिक हिन्दुस्तान का ब्यूरो-प्रमुख बन कर आया था। खबर पाते ही वे लपके-लपके आ गये, मैंने भी अपने पुराने अंदाज में भरी सड़क पर उकड़ू बैठ कर कोर्निश-फर्शी सलाम ठोंकना शुरू कर दिया। और दो-चार मिनट तक हम केवल लिपटे ही रहे। हमें एकाकार देखते वकीलों-वादकारियों की जुटी भीड़ की भौंचक्की नजर से बेखबर। ( क्रमश: )
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बहुत सहज जिला है जौनपुर, और वहां के लोग भी। जो कुछ भी है, सामने है। बिलकुल स्पष्ट, साफ-साफ। कुछ भी पोशीदा या छिपा नहीं है। आप चुटकियों में उसे आंक सकते हैं, मसलन बटलोई पर पकते भात का एक चावल मात्र से आप उसके चुरने का अंदाजा लगा लेते हैं। सरल शख्स और कमीनों के बीच अनुपात खासा गहरा है। एक लाख पर बस दस-बारह लोग। जो खिलाड़ी प्रवृत्ति के लोग हैं, उन्हें दो-एक मुलाकात में ही पहचान सकते हैं। अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता। जो ज्यादा बोल रहा है, समझ लीजिए कि आपको उससे दूरी बना लेनी चाहिए। रसीले होंठ वाले लोग बहुत ऊंचे दर्जे के होते हैं यहां। बस सतर्क रहिये, और उन्हें गाहे-ब-गाहे उंगरियाते रहिये, बस।
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