बड़े बाबुओं का ब्रांड-एम्‍बेसेडर है निखिल शुक्‍ला

सैड सांग

: हकीकत कि अधिकांश प्रोन्‍नत अफसर ज्यादा गंभीर और जमीनी तौर पर मजबूत : शायद ही कोई किसी डायरेक्‍ट भर्ती से आईएएस अफसर का फोन रात को उठता हो : रेवेन्‍यू के मुकदमे प्रोन्‍नत अफसर ही सुनते हैं : मेकअप गर्ल, जंगल-मंगल गर्ल रही हों और जुल्‍फी-बाबू जैसे लोग सीधी भर्ती से हैं : बड़ा बाबू -दो :

कुमार सौवीर

लखनऊ : उधर प्रधानमंत्री का कहना है कि आईएएस में सीधी भर्ती वाले अफसर ही जिलाधिकारी की कुर्सी पर पहुंचने चाहिए, न कि राज्य काडर से पदोन्नत होने वाले अफसर को डीएम की नियुक्त दी जाए। नरेंद्र  मोदी के हिसाब से अगर ऐसा किया जाए तो किसी भी प्रदेश का काम-धाम पूरी तरह ठप हो जाएगा। वजह यह कि चाहे वह आईएएस हो या फिर आईपीएस, अधिकांश जिलों में अगर पदोन्नत काडर के अफसर न हों तो काम-धाम ठप हो जाएगा। हो सकता है कि नरेंद्र मोदी यह सोच रही हो कि 40 साल की उम्र के अधिक के जिलाधिकारी बहुत थक चुके होते हैं और उन्हें विकास कार्यों के प्रति कोई रुचि नहीं हो पाती है। वे केवल शासकीय सुविधाओं को भोगने के लिए और अपनी निजी अहम को पूरा करने के लिए ही डीएम की कुर्सी को लेकर लालायित रहते हैं।

लेकिन यदि हकीकत यह भी है कि अधिकांश मामलों में राज्य के कैडर से पदोन्‍नति हासिल किये वाले अफसर कहीं ज्यादा गंभीर और जमीनी तौर पर मजबूत होते हैं। विकास के प्रति उनकी विशेष निष्ठा होती है, और इसके लिए वे दिन-रात मेहनत करने को तत्पर रहते हैं। नयी पहलकदमियां खोजने और उसे नये तरीके से लागू में प्रोन्‍नत अफसरों का कोई सानी ही नहीं है। जितनी कड़ाई तरीके से वे अपने विभिन्‍न दायित्‍वों को निर्वहन करते हैं, वह वाकई लाजवाब माना जाता है। शायद ही कोई किसी डायरेक्‍ट भर्ती से आईएएस अफसर का फोन रात को उठता हो। अगर उठता भी हो, तो जवाब यही मिलता है कि साहब मीटिंग में हैं, दौरे पर हैं, या फिर एंटी-रूम में हैं, ऐसी हालत में उनसे बात नहीं हो सकती।  बने कोई जिलाधिकारी शायद ही किसी रेवेन्‍यू के मुकदमे को सुनते हों।

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नरेंद्र मोदी की अपनी यह सोच किस आधार पर बनी है, या तो वह खुद जानें। लेकिन अगर यूपी आईएएस एसोसिएशन के पिछले अधिवेशन की रिपोर्ट देखा जाए तो नरेंद्र मोदी के ऐसे सारे तर्क बेमतलब ही साबित होते हैं। आपको बता दें कि यूपी आईएएस एसोसियेशन ने अपनी पिछली आईएएस-वीक में जिस शख्स को अपनी एसोसियेशन की सार्वजनिक उपलब्धियों के ढांचे के तौर पर प्रस्‍तुतीकरण किया था, उसका नाम है निखिल चंद्र शुक्‍ल। निखिल यूपी काडर से पदोन्नत होकर आईएएस बने हैं। निखिल ने अपने अनुभवों और प्रयासों से ही एक लाजवाब तरीके से प्रशासनिक ढांचे में आमूलचूल विकसित करने प्रयोग किया था। आईएएस एसोसिएशन ने निखिल शुक्ला को वाकई न केवल अपने मंच पर पूरा सम्मान दिया, बल्कि उसके द्वारा आयोजित और खोजे गए ढांचे का प्रारूप को भी अपनी बैठक में रखवाया। और वह भी तब़, जब निखिल चंद्र शुक्ला अपनी आईएएस सेवा से रिटायर हो चुके थे।

यूपी आईएएस कैडर में ऐसे कई अफसर हैं जो सीधी भर्ती से हैं, लेकिन बकायदा किसी कलंक से कम नहीं। चाहे वह बहुचर्चित मेकअप गर्ल रही हों, जंगल-मंगल गर्ल रही हों, या फिर हर फाइल पर 500 रूपये वसूलने की अपनी प्रवृत्ति से कुख्यात अफसर हों। हालत यह है कि सीधी भर्ती वाले कई अफसर या तो सेल्फी-गर्ल के तौर पर कुख्यात हो जाते हैं या फिर जुल्फी बाबू बनकर चर्चित हो जाते हैं। कई ऐसे अफसर भी हैं जिन पर अनाचार और भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं। कहीं पर दुराचार का आरोप है, तो कहीं कई आपराधिक मामलों में लिप्त हैं। कहीं तो करोड़ों अरबों के घोटाले में लिप्त हैं, तो अपनी अभद्र कार्यशैली से कुख्‍यात हैं। (क्रमश:)

प्रोन्‍नत आईएएस अफसरों पर की गयी प्रधानमंत्री की टिप्‍पणी से ऐसे अफसर खासे क्षुब्‍ध हैं। वह तो उनकी जुबान और दांत के बीच लगाम फंसी हुई है, इसलिए वे इस बारे में खुल कर बात नहीं कर सकते। सवाल उनकी सेवा दायित्‍वों और उनके संकल्‍पों का है। लेकिन इस मसले पर वे अपनी दबे पांव राय जरूर व्‍यक्‍त कर रहे हैं। यह खबर श्रंखलाबद्ध है। इसकी बाकी कडि़यों और आईएएस अफसरों से जुड़ी खबरों को पढ़ने के लिए कृपया निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिएगा:-

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