यह हैं लखनऊ के बड़े दल्‍ला पत्रकार, इन पर लालन भेजो

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: बकर-दाढ़ी की दलाली और हेलीकॉप्‍टरी मेमने की डरी-दुबकी में-में-में-में : आजम हुसैन घायल होने के बावजूद लगातार काम में जुटा रहा, उधर मुख्‍यमंत्री के सामने दलालों ने मलाई चाटी : एसएम पारी ने इस मामले को उठाने की कोशिश की, लेकिन बकरदाढ़ी के हल्‍ले ने मामला दबा दिया :

सैयद हुसैन अफसार

लखनऊ : बड़े अफ़सोस के साथ लिखना पढ़ रहा है कि हमारे एक साथी आज़म हुसैन फोटो जॉर्नलिस्ट का सर उस समय फट गया था जब भारतीय जनता पार्टी के कार्यकरता और नेता उत्तर प्रदेश असेंबली को घेरने कि कोशिश कर रहे थे। आज़म हुसैन अपने कैमरा के साथ वहां मौजूद थे.भारतीय जनता पार्टी के उधम मचाते लोगों ने ताक कर आज़म हुसैन कि तरफ एक बल्ली उछली जो उनकी आँख के ठीक ऊपर लगी। उनको ज़ख़्मी हालत मे अस्पताल ले जाया गया और वहां से वह फिर उसी जगह वापस हुवे जहाँ भारतीय जनता पार्टी के लोग हंगामा किये हुवे थे।

दुःख कि यह बात है कि पत्रकारों की तरह तरह कि समितियों के किसी भी पदाधिकारी ने आज़म हुसैन की खैरियत पूछने की ज़हमत गवारा नहीं की …यह शर्म और अफ़सोस की बात है …..

सैयद हुसैन अफसार की इस पीड़ा को आप केवल उनके निजी दर्द के तौर पर अगर देखेंगे तो शायद बेमानी होगी। हकीकत यह है कि यह सम्‍पूर्ण हादसा एक निहायत शर्मनाक है और पूरी पत्रकारिता जगत के चेहरे पर कालिख पोत रहा है। खास कर इस हादसे ने उन दलाल पत्रकारों की पोल खोल दी है, जो सिर्फ और सिर्फ दलाली करते हैं और आम पत्रकार के हितों के प्रति उनका कोई भी लेना-देना नहीं होता है। जबकि आजम हुसैन का सिर फट गया था उस बवाल में, लेकिन इसके बावजूद वह पत्रकार लगातार अपने काम में जुटा रहा।

कितना घटिया माहौल था जब मुख्‍यमंत्री ने प्रदेश मुख्‍यालय के पत्रकारों को शिष्‍टाचार-भेंट के लिए बुलाया, लेकिन पत्रकारों ने उस दौरान केवल और केवल दलाली की। पूरे दौरान अपनी घटिया चिल्‍ल-पों और अपनी मूर्खतापूर्ण करतूतों से ऐसे स्‍वयंभू पत्रकार नेताओं ने पत्रकारिता की सारी ऊंचाइयां धूल-धूसरित कर दीं। यह लोग अपने निजी लाभों और हितों पर तो बात करते रहे लेकिन आजम हुसैन जैसे घायल फोटो-पत्रकार के बारे में एक भी शब्‍द मुख्‍यमंत्री के सामने नहीं बोल सके। पत्रकार नेताओं में बकर-दाढ़ी लगातार दलाली करता रहा, और दूसरा हेलीकॉप्‍टरी पत्रकार किसी डरे-दुबके मेमने की तरह में-में-में-में करता रहा। फोटो-जर्नलिस्‍टों के नेता एसएम पारी ने इस मामले पर बोलने की कोशिश जरूर की, लेकिन बकर-दाढ़ी की बकर-बकर ने पारी की आवाज ही दबोच

आापको बता दें कि खुद को पत्रकार नेता कहलाने वाले ऐसे ही घटिया लोगों ने पत्रकारिता को कलंकित कर रखा है। पत्रकार-हितों पर तो इनका कोई सरोकार नहीं, लिखने की तमीज नहीं। लेकिन जयपुर से लेकर रायपुर, नोएडा, दिल्‍ली और लखनऊ, इलाहाबाद तक में उनकी करतूतों के चलते उसकी खबरें जरूर छपती रहती हैं। इसके पहले भी मैंने जब रवि वर्मा, संतोष ग्‍वाला आदि दिवंगत पत्रकारों के परिजनों को आर्थिक मदद के लिए बैठकें आयोजित की गयी थीं, बकरदाढ़ी मौके से ही भाग निकला था।

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