कहानी, दोलत्‍ती के साथ अघोरी की

बिटिया खबर

: काशी के श्‍मशानों तक के सारे के सारे भूत-जिन्‍नात ही भाग गये : अब तो दोलत्‍ती डॉट कॉम भी आपके साथ है। नये तेवर के साथ :

कुमार सौवीर

लखनऊ : मैं तो एक खुली और दिलचस्प किताब की तरह हूं। कोई भी चाहे, जहां से चाहे, पन्ना खोलकर कुछ भी पढना शुरू कर दें।कितनी रोचक दास्तान है मेरी, इसका फैसला तो आप खुद कर पायेंगे। मगर सच्‍ची इत्‍ती है कि आप इस फिल्म को कहीं से भी कभी भी देख-पढ सकते है, मजा ले सकते हैं।

अवरोधों को खडा करने की न तो मुझे कभी जरूरत महसूस हुई और ना ही अवरोधों ने कभी मेरे सामने कोई अवरोध खड़ा किया। सच के सामने झूठ, प्रेम के सामने नफरत कब तक टिके रह सकते हैं?

मेरा मानना है कि जो भी हो, बस आमने-सामने हो। अरे भई, जब कोई बात अघोर के प्रकाश में पूरी सम्‍पूर्णता के साथ हो सकती है, तो घोर-तमस का सहारा क्‍यों लिया जाए। हां हां, आप मुझे अघोरी मान सकते हैं।न जाने क्यों, डर तो मुझे कभी लगता ही नहीं। भूतों को खोजने के लिए एक हफ्ते तक कब्रिस्तान में रातें गुजारीं। लखनऊ से लेकर जौनपुर और बनारस के मणिकर्णिका घाट और हरिश्‍चंद्र घाट ही नहीं, चंदौली के महड़ौरा घाट में महीनों तक अड्डा जमाया। सारे के सारे भूत-जिन्‍नात ही भाग गये। तो इन्सान से क्या डरना?

खैर, अब तो दोलत्‍ती डॉट कॉम भी आपके साथ है। नये तेवर के साथ। आप आइये मेरे पास। बेधड़क, बेहिचक। हार्दिक स्‍वागत।

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