: फैसला सहर्ष लिया अथवा मजबूरी में : बडी डील की लालच ले डूबेगी : हिन्दुत्व के दूसरे नम्बर से आखिरी पायदान तक सरके :
कुमार सौवीर
लखनउ : कन्हैया पर देशद्रोह का मामला दर्ज करने संबंधी आदेश जारी करके अरविंद केजरीवाल ने देशधर्म का पालन किया है। राष्ट्र के लिए इस तरह का राष्ट्रीय फैसला लेना किसी भी सरकार की नैतिक, प्रशासनिक और राजनीतिक की बाध्यता होती ही है। चाहे वह फैसला सहर्ष लिया गया हो,अथवा मजबूरी में।
हालांकि अब यह तो अदालत ही इस मसले पर फैसला करेगी कि का कन्हैया की करतूत कैसी और कितनी थी। लेकिन खबरों के मुताबिक कन्हैया ने जो करतूत की थी, उसे वामपंथी और धर्मनिरपेक्ष वर्ग के कुछ लोग भले भी समर्थन देते रहे हों, लेकिन अधिकांश देशवासी उसे देशद्रोह के तौर पर ही देखता और सहता होते हुये कुढ़ता रहा है। किसी अवसाद भाव की तरह पालता ही रहा अपने दिल-दिमाग में।
दिल्ली सरकार के इस फैसले का मैं दिल से स्वागत करता हूँ। लेकिन इसकी भरसक कड़े शब्दों और अंतर्मन से घोर निंदा और भर्त्सना भी करता हूँ।
वजह यह कि यह फैसला साफ-साफ तौर पर भाजपा, मोदी और शाह की तिकड़ी का फैसला है, जिसे केजरीवाल का मुखौटा ओढाया गया है। हालात साबित करते हैं कि यह मुखौटा मोदी-तिकड़ी ने अरविंद केजरीवाल के साथ एक खास सौदे के तहत अरविंद केजरीवाल के चेहरे पर चिपकाया है। दरअसल, इस ताजा फैसले से बिल्कुल साफ हो गया है कि केजरीवाल को दिल्ली का ताज पहनने के लिए मोदी-तिकड़ी ने अपने सारे शस्त्र-अस्त्र निढाल कर दिए थे।
केजरीवाल का यह फैसला इसलिए भी निंदनीय है कि इस फैसला लेने में केजरीवाल ने भारी विलंब किया गया।
काश ! यह फैसला बहुत पहले ही ले लिया होता तो केजरीवाल कहीं बेहतर नेता साबित होते, भले ही उनका ताज छिन जाता। हालांकि ऐसा हो पाना मुमकिन नहीं होता, क्योंकि उस फैसले से वे भाजपा-मोदी के वोटबैंक में एक बड़ी सेंध भी तो लगा लेते। लेकिन केजरीवाल इतना प्रतीक्षा कर पाने का दम-खम नहीं जुटा पाए। और यही वजह है कि दिल्ली का राज जीत कर भी वे आज बुरी तरह हार चुके हैं।
सच यही है कि अब अरविंद केजरीवाल के हिंदुत्व के नए अलंबरदारों में से एक ही माने जाएंगे, लेकिन शायद चालीसवें-पचासवें पायदान पर ही खोजे जा सकेंगे। पहले शायद वे शर्तिया दूसरे नम्बर पर होते।