: नारद। लेकिन वह भी चुगुलखोर टाइप ही था। जबकि संजय तो क्रीत-दास था : हमेशा नारायण-नारायण का उद्घोष करता था। यानी उसकी निष्ठा संस्थान के मालिक से स्पष्टत: थी :
कुमार सौवीर
लखनऊ : एक सवाल आया कि सृष्टि का पहला पत्रकार कौन था ? महाभारत में अंधे राजा धृतराष्ट्र को रणभूमि का जीवन्त घटनाक्रम सुनाने वाला संजय था या फिर नारद ? यह सवाल उछाला था दिल्ली विश्वविद्यालय में हिन्दी विषय की प्रोफेसर शशि शर्मा ने।
मैंने तत्काल समाधान सुझा दिया। सुझाया क्या, फैसला ही सुना दिया। मैंने साफ कहा कि चरित्र चाहे कैसा भी रहा हो, किसी की भी निष्ठा से प्रेरित रहा हो, लेकिन सृष्टि का पहला पत्रकार तो निर्विवाद रूप से केवल नारद ही था। लेकिन वह भी चुगुलखोर टाइप ही था। एक नम्बर का तेलू। अपने मालिक के सामने अपनी करेक्टर सर्टिफिकेशन और गोपनीय प्रवृष्टि के लिए वह लगातार तेल ही लगाता रहा। चमचागिरी की सारी सीमाओं को तोड़ने में उसने कभी भी न शर्म महसूस की, और नही आत्मग्लानि।
जबकि महाभारत वाले अंधे राजा धृतराष्ट्र को युद्धभूमि की सजीव कमेंट्री सुनाने वाला संजय तो क्रीत-दास था। राजा से वेतन-शुल्क लेकर ही खबर देता था। यह दीगर बात है कि सच ही रिपोर्ट देता था। मगर नारद शुल्क तो नहीं लेता था, लेकिन हमेशा नारायण-नारायण का उद्घोष करता था। यानी उसकी निष्ठा संस्थान के मालिक से स्पष्टत: थी।
इस पर तो प्रोफेसर शर्मा ने तर्क दिया कि संजय पहला होना चाहिए। हालांकि इसके लिए उन्होंने कोई तर्क नहीं दिया और न ही कोई सुझाव ही दिया। हां, इतना कहने के बाद उन्होंने यह जरूर कह जरूर पूछ लिया कि नारद के समय का क्या कुछ अनुमान है ?
मैंने जवाब दिया कि नारद के काल का अनुमान द्वापर ही है। समय तो सामान्य तौर पर तो नारद जी द्वापर का देवता माने जाते हैं। सारे कुल-कर्म उनके ही बांचे गये भविष्य पर निर्भर रहे। रही बात नारद के समय के अनुमान की, तो नारद तो ढाई पल को ही कहा-माना जाता है। यानी समय का वह काल-खंड, जो ढाई पल से ज्यादा एक स्थान पर नहीं टिकता।
नारद को केवल अपने मालिक के प्रति समर्पण था। हालांकि इसके लिए वे कोई शुल्क नहीं देते थे, हां, अभिलाषा जरूर थी कि उनका परलोक सुधर जाएगा। इसलिए वे शायद अक्सरइतना बवाल किया करते थे। इसलिए संजय नहीं, बल्कि नारद ही सृष्टि के पहले पत्रकार माने जा सकते हैं।