स्त्री या दलित नहीं, केवल मानवतावादी बनें: प्रतिभा

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

उडि़या-लेखिका स्त्री-विमर्श या दलित-विमर्श जैसे दायरों के खिलाफ

लखनऊ: स्त्री–विमर्श और दलित विमर्श जैसे दायरों से सख्‍त खिलाफ हैं ओडिशा की विख्यात लेखिका और साहित्यकार प्रतिभा राय। उनका कहना है कि इस शब्द को तो फौरन हटा दिया जाना चाहिए। वे बोलीं कि हम सब केवल मनुष्य हैं और ऐसी हालत में उसमें संकुचित शब्दों अथवा भावनाओं को स्थान नहीं दिया जाना।

प्रतिभा राय विगत दिनों लखनऊ विश्वविद्यालय में आयी थीं। यहां उन्हों ने यहां आयोजित एक कार्यक्रम और बातचीत का कार्यक्रम भी किया। बातचीत में विश्वविद्यालय के अध्यक्ष और दलित लेखक माने जाने वाले प्रोफेसर कालीचरण स्नेही ने प्रश्न कर दिया कि मौजूदा हालात में दलित, स्त्री और आदिवासी विमर्श पर उनकी क्या राय है, तो प्रतिभा राय ने खुल कर इस मसले पर अपनी राय बता दी। प्रतिभा राय ने साफ तौर पर कह दिया कि स्त्री  भी तो दलित हैं, लेकिन इससे पहले सभी लोग मनुष्य ही हैं। सभी को मानव अधिकारों की सख्त जरूरत है।

प्रतिभा राय ने कहा कि मैं सभी विषयों पर लिखती हूं। आदिवासियों पर शोध उपन्यास आदिभूमि आया है। अपनी बात को साफ करते हुए प्रतिभा बोलीं कि बण्डा  जाति के आदिवासी नंगे ही रहते हैं। बण्डा का मतलब होता है नंगा। प्रतिभा बोलीं:- जब मैंने उनसे उनकी जाति पूछी तो वे बोले रेमो, यानी मानव। उनकी भाषा को वे रेमाबीन कहते हैं यानी मानवता।

प्रतिभा राय का सवाल यही है कि जब वे मानवता जानते हैं तो हम क्यों उन्हें अलग से कोई नाम थोप दें। स्त्री की समस्याओं पर भी मैं लिखती हूं। कई बार मुझे महिलावादी लेखक माना-कहा जाता है, लेकिन हकीकत की बात यह है कि मैं रेडिकल फमिनिस्ट यानी अविादी महिला लेखक नहीं हूं। मैं मानवतावादी लेखिका हूं। प्रतिभा बोलीं कि जब लेखन की बात उठती है तो पितृ भाव और मातृ भाषा की बात उठ जाती है।

इस मौके पर प्रो रूपरेखा वर्मा और कुलपति जी पटनायक ने भी अपने विचार व्यक्त किये।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *