विरोध स्वतंत्र इंसान का होता है, डोरमैट का नहीः पेंटल बी

सक्सेस सांग

करतार सिंह पेंटल की उम्र बीएचयू से एक साल ज्यादा

: लीजेंड्स ऑफ बनारस ( छह ) : राधाकृष्णन ने बीएचयू में नौकरी का प्रस्ताव ठुकरा दिया था बाईजी ने : सम्पत्ति, प्रतिष्ठा और वासना नहीं, मेरा लक्ष्य श्रेष्ठ नागरिक बनाना है : छात्रों को यदि सुधार के लिए भय दिखाया तो यह हिंसा कैसी :

वाराणसी। उनकी उम्र बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से एक साल ज्यादा है। बीएचयू की ही तरह उन्होंने भी अपने जीवन में कठिन तप किया है। हां हां, अपनी ही शर्तों पर। वरना यह इतना आसान नहीं होता कि सर्वपल्ली राधाकृष्णन जैसे व्यक्तित्व के प्रस्ताव पर वे यूं ही आसानी के साथ सिर झटक देतीं और साफ-साफ ठुकरा कर चली जातीं। लेकिन तप से उपजे बल ने अन्ततः असर दिखाया और बीएचयू ने उन्हें उनकी ही शर्तों पर नौकरी मुहैया करायी। उन्हें नियुक्ति पत्र नहीं, बल्कि इच्छा-पत्र दिया गया था। इस अनुपम-बेमिसाल इच्छान-पत्र में उनसे पूछा गया था कि वे खुद ही बता दें कि वे सेंट्रल हिंदू गर्ल्स स्कूल की प्रिसिंपल बनना चाहती हैं अथवा टीचर्स ट्रेनिंग कालेज की शिक्षिका। मगर देश की नींव को एक नये सिरे से तैयार करने के अपने फैसले के तहत उन्होंने बीएचयू के विशाल और लुभावने परिसर को ठुकरा दिया और गर्ल्स स्कूल की प्रधानाचार्य बन गयीं। उनकी दृढता का अनुमान केवल इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि गर्ल्स स्कूल की बच्चियों के लिए ड्रेस-कोड लागू कर उन्होंने समाज के विभिन्न क्षेत्रों से अपने खिलाफ उठे जबर्दस्त विरोधों का न केवल डट कर सामना किया, बल्कि उसका असर यह हुआ कि ऐसा ही ड्रेस कोड शहर भर के स्कूलों ने भी अगले एक साल के भीतर अपने यहां भी लागू कर दिया।

यह शख्सियत रही हैं बाई जी। बाई जी, यानी समर्पण, इच्छा-शक्ति और कुछ न कुछ खास-अनोखा कर डालने पर आमादा शख्यिसत। बाई जी के नाम से मशहूर इस महिला का नाम है करतार कौर पेंटल। पेंटल जी से मुलाकात करने में आपको 3 साल की देरी हो गयी। वरना आपको इस महिला से भेंट-मुलाकात जरूर हो जाती। सुंदरपुर सट्टी की जमीन पर विकसित कालोनी में ही बाई जी पेंटल ने सन-10 को देहावसान किया। वरना आप साफ पता चल जाता कि अपने जीवन के 96 वसंत देख चुकी इस महिला की जिजीविषा और मूल्यों की हल्की सी भी छवि लेनी होती, तो इस उम्र में भी उनकी चपलता, अनोखे शब्दों का लगातार फर्राटेदार प्रयोग और उनकी कलाई पर हमेशा बंधी रहने वाली घड़ी को उनको निहारना जरूरी और न भूल सकने वाला सुखद संयोग होता। मेरी समझ यह नहीं होता है कि यह मेरा दुर्भाग्‍य है या काशी के लोगों का, कि बहुत कोशिश करने के बावजूद बाई जी की कोई भी फोटो मुझे नहीं मिल सकी। कहने की जरूरत नहीं कि कम से कम तो मैं इसके लिए खुद को माफ नहीं कर पाऊंगा। जीवन भर। 

यह संयोग ही है कि पेंटल का जन्म 25 दिसंबर को हुआ। संयोग इसलिए कि इसी दिन ईसा मसीह और बीएचयू के महामना मदनमोहन मालवीय जी का भी जन्मदिन इतिहास में दर्ज है। सिंचाई विभाग के इंजीनियर पिता की छह संतानों में से एक करतार कौर सन 14 में पेशावर के बन्नू जिले में जन्मी थीं। वहां के गांटर स्कूल के बाद हाईस्कूल वे देहरादून पढने आयीं। इंटर रावलपिंडी से तो बीए लाहौर से किया। हमेशा ही प्रथम श्रेणी से पास हुईं। परिवार संयुक्त परिवार की करतार को टेनिस, बैडमिंटन, बास्केटबाल, वालीबाल और हाकी की भी कुशल खिलाड़ी रहीं। बीएड गंगाराम से किया। और वहीं पर जीवन का पहला मंत्र सीखा। सरोजिनी नायडू की बहन लीला वहां शिक्षिका थीं। एक दिन आदेश हुआ कि चलो गमला रंगो। ऐतराज किया कि यह काम हमारा नहीं है। लेकिन लीला ने कहा कि कोई भी काम छोटा नहीं होता। शिक्षक बनना ही जरूरी नहीं, अपने शिक्षकत्वई को दिखना-प्रदर्शित करना भी चाहिए। हर क्षेत्र में। अन्यथा वह अपने छात्रों को क्या दीक्षित करेगा। जवाब था ही लाजवाब। लगा जैसे पूरा दिमाग झन्नाटे में आ गया। पेंटल सन्न हो गयीं।

एमएड करने इलाहाबाद आ गयीं। वहां अंतिम परीक्षा के दौरान प्रयोगात्माक परीक्षा कुलपति अमर नाथ झा ले रहे थे, तभी एक व्यक्ति और आ गया। झा साहब ने उस शख्स को अपने पास ही बुला लिया। यह शख्स  भी कोई बड़े शिक्षक ही थे। उस शख्स ने मुझसे कोई सवाल नहीं पूछा। करतार ने झिझक कर पूछ ही लिया कि बिना कोई सवाल पूछे आप मुझे कैसे अंक देंगे? शाम को झा जी के ही घर पर भोजन पर उनका परिचय मिला। वह बीएचयू के कुलपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन थे। पूछा:- बीएचयू में बढि़या मौका मिल सकता है, आओगी? पर करतार सिंह पेंटल ने साफ मना कर दिया।

यह बात बंटवारे के चंद महीना पहले की है। उसके कई मास बाद पेंटल परिवार हल्द्वानी आ गया। तनाव का भयंकर दौर था। न भाई का पता और न बहनोई का। परिवार में सब परेशान। घर के बच्चों का जिम्मा करतार पर आ गया। एक दिन घर के बच्चों का स्कूल में दाखिला कराने नैनीताल के बिरला स्कूल में गयीं। वहीं पर फिर भेंट हो गयी राधाकृष्णन से। वहीं पर फिर से वही पुराना आफर दे दिया राधाकृष्ण न जी ने, जो इलाहाबाद में मिला था। अब तक महानतम शिक्षक राधाकृष्णल जी के बारे में मुझे सारी जानकारियां भी मिल चुकी थीं। उनके साथ काम करने का मौका मिल रहा था, यह अपने आप में एक बड़ी उपलिब्धि थी। उस पर तुर्रा यह कि हमारे परिवार की हालत भी खराब थी और मुझे काम करना जरूरी लगने लगा था। अबकी बार मंजूर कर लिया। नियुक्ति-पत्र में चूंकि रूचि पूछी गयी थी, इसलिए गर्ल्सत स्कूल की प्रधानाचार्य बन गयीं।

शिक्षा में सुधार का एक अभियान शुरू किया करतार ने। कुल 29 साल नौकरी की और दो साल का विस्तार मिला। पूरी नौकरी अपनी शर्तों पर की। लेकिन विरोध तो हुआ ही, और खूब हुआ। पेंटल बताती हैं कि:- विरोध तो होता ही है अगर आप कुछ लकीर से हट कर करते हैं। जिसके पास अपने विचार हैं, आदत है उसका विरोध तो होगा ही। देखिये, हम डोरमैट (पायदान) नहीं हैं, जो जब जी में आये और हमको रौंद कर आगे चला जाए और हम अपनी हालत पर कोई प्रतिक्रिया न व्योक्त  करें। अरे स्वतंत्र इंसान हैं हम। विरोध से डरना कैसा? श्री गुरूगोविंद सिंह जी भी कह गये हैं कि भय काहू को देत ना, ना भय मानत आन। यानी,  न तो किसी को भय देना चाहिए और न ही किसी का भय मानना चाहिए। …मैंने अपने छात्रों को अगर भय दिया तो वह हिंसा के लिए नहीं, उनके सुधार के लिए था।

बुढ़ापा अब बाई जी को परेशान करने लगा था। दिमाग पर नहीं, शरीर की जर्जर हालत पर। ज्यादातर वक्त वे लेटी या अधलेटी ही रहती थीं। सुबह धूप सेंकना उनका शगल नहीं, उनकी जरूरत थी। दुबली इकहरी काया लेकिन पौने छह फीट से ज्यादा लम्बी बाई जी को फल खाने की आदत थी। लेकिन केवल अपने लिए ही नहीं, बल्कि अपने से मिलने आने वालों को भी वे खिलाती थीं। खुद ही चाकू से काट कर वे सेव और खरबूज वगैरह अतिथियों को खिलाती रहती थीं। काशी के बारे में उनका कहना था कि यहां दिखावा बहुत बढा़ है। जीवन भर अविवाहित रहीं पेंटल का विवाह पर मानना है कि ज्यादातर मामलों में विवाह का अर्थ सम्पत्ति में वृद्धि, प्रतिष्ठा में वृद्धि अथवा शारीरिक संबंधों के लिए ही होता है। और मेरे जीवन का लक्ष्य मानव की इकाई को बचपन से ही देश का श्रेष्ठ नागरिक बनाना था।

काशी के महानतम लोगों पर केन्द्रित इस पूरी सीरीज को पढ़ने के लिए कृपया क्लिक करें:- लीजेंड्स ऑफ बनारस

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