: यह अखिलेश की नहीं, मुलायम के फेंके गये पांसों की जीत है : महज एक सुखान्त नाटक ही है सपा में बाप-बेटे का विवाद : मुलायम ने अखिलेश की राह में पड़े हर मुमकिन कांटे को हमेशा के लिए खत्म कर दिया :
कुमार सौवीर
लखनऊ : सायकिल का पैडल अब अखिलेश यादव ही भाजेंगे। हैंडिल भी अखिलेश ही सम्भालेंगे। जाहिर है कि इस सायकिल की आरामदेह गद्दी पर अखिलेश यादव ही बैठेंगे। दोनों पहिये और उसकी सारी तीलियां अखिलेश की ही होंगी। चेन और घिर्री भी अखिलेश के इशारे पर घूमेगी। चुनाव में इसका झोंका भले ही राज-मार्ग पर ज्यादा तेजी न पकड़ पाये, लेकिन समाजवादी पार्टी की सल्तनत में फर्राटा सिर्फ अखिलेश ही भरेंगे।
मडगार्ड मुलायम सिंह यादव ने लगवाया है। पेंच-नट कसवा कर। ग्रीसिंग और आयलिंग भी करवा दी है। मजबूत कैरियर भी लगवा दिया है। अब अखिलेश की पौ-बारह है। जिसको चाहेंगे अपने पीछे लगे-कसे कैरियर पर बिठायेंगे, और जिसे चाहेंगे, अपने अगले डण्डे पर बिठवायेंगे। हैंडिल पर घंटी भी लगवा कर थमा दिया है ताकि शिवपाल सिंह यादव, अमर सिंह और अन्य ऐरे-गैरे नत्थू-खैरों को ठीक से चिढ़ाया, लुलुहाया जा सके। वे समय रहते सतर्क हो जाएं, वरना फर्राटा भरती अखिलेश यादव की सायकिल से उन्हें चोट न लग जाए। लग जाएगी तो वे उन्हें गम्भीर चोट लग भी सकती है।
हवा भरने वाला पंप भी थमा दिया है अखिलेश को मुलायम सिंह यादव ने। मुलायम सिंह राजनीति में बहुत शातिर खिलाडी हैं। उन्हें खूब पता है कि राजनीति में हमेशा खतरा रहता है। ऐसे में अपने बबुआ अक्लेस पर खतरों की आशंकाओं को दूर करना एक कुशल बाप का सर्वोच्च दायित्व होता है। समझ गये न, कि मुलायम हर्गिज नहीं यह चाहेंगे कि ऐसा कभी हो, कि न जाने कब अंसारी-बंधु और अतीक अहमद जैसे खुराफाती लोग अखिलेश की सायकिल में उंगली कर दें। फिर तो फक्क से हवा निकल जाएगी। ऐसे में चुनाव प्रचार क्या घण्टा चलेगा।
अरे बाप तो हमेशा बाप ही रहता है। और एक बाप के तौर पर मुलायम ने अपने अक्लेस को राजनीति के अखाड़े में सारे धोबी-पाटा देने वाली हर दांव-पेंच सिखा दिये। शुरूआत की अक्लेस को राजगद्दी थमाने से। उसके बाद यह सिखाने के लिए कि अखिलेश को खेल में हार-जीत के हर दांव सिखाने सारे सबक सिखाने के लिए उन्हें सरेआम कोसने, गलती करने की झिड़कियां दीं। सिखाया कि कैसे किसे अपना और पराया सिखाया जाए। नौकरशाही को कैसे साधा जाए। कैसे शिवपाल सिंह और अमर सिंह जैसे अपने नुमा लोगों से कैसे निपटा निपटा जाए। कैसे अंसारी बंधुओं और अतीक जैसे लोगों को कैसे चित्त किया जाए।
सच बात तो यही है कि मुलायम सिंह यादव ने अपने उत्तराधिकारी के तौर पर अखिलेश को पहले ही चुन लिया था। हालांकि वे अपने भाई को ज्यादा तरजीह ही देते रहे, लेकिन केवल दिखाने के लिए ही। जानकार तो यहां तक बताते हैं कि मुलायम सिंह ने अपने प्रशिक्षण के तहत शिवपाल और अमर सिंह की जोड़ी तैयार करायी। फिर उसे दीपक सिंघल तथा उसके बाद अंसारी-बंधु और अतीक अहमद से भिड़ा कर अखिलेश को मिस्टर-क्लीन की हैसियत में खड़ा कर देना वाकई एक शातिर प्रशिक्षण रहा। साढ़े साल का शासन चलाने के बाद अखिलेश ने जिस तरह अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव को दूध की मक्खी की तरह चूस कर फेंक दिया है, उसके बाद कुछ कहने की जरूरत नहीं। यह इतना आसान नहीं है कि आज निर्वाचन आयोग के सायकिल सिम्बल पर आये फैसले के साथ ही साथ अमर सिंह ने सीधे लन्दन की फ्लाइट पकड़ ली है।
राजनीति को समझने वाला हर शख्स खूब जानता है कि शिवपाल को पिछाड़ कर मुख्यमंत्री की गद्दी अखिलेश को थमाने के पीछे मुलायम की मंशा क्या था। और इसके बावजूद अगर किसी को मुलायम सिंह यादव की इस चाल का अहसास तक नहीं हो पाया, तो उसे जाकर पोगो खेलना चाहिए।