माफिया-डॉन से लेकर मीडिया-डॉन की डगर बांच रहे नामवर सिंह

मेरा कोना

माफिया-सिरमौर की किताब की स्तुति के बाद मीडिया-सिरमौर

गजब कर रहे हैं हिन्दी के शलाका-पुरूष नामवर सिंह

कुमार सौवीर

लखनऊ : हिन्दी के प्रख्यात आलोचक डॉक्टर नामवर सिंह अब खुद ही आलोचनाओं के केंद्र में पहुंच गये हैं। सारा धान एक टका पसेरी की तर्ज पर उन्हें अब समझ में तक नहीं आता है कि वे दरअसल वे क्या कर रहे हैं। अभी कल ही उन्होंने बिहार के एक बड़े माफिया राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव की एक किताब का विमोचन कर दिया था, अब आज वे एक मीडिया-डॉन की किताब का विमोचन करने जा रहे हैं। आपको बता दें कि राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव से पहले एक अन्य कुख्यात अपराधी और करीब 20 साल से जेल में बंद ओमप्रकाश श्रीवास्तव उर्फ बबलू भी लेखन में हाथ साफ कर एक किताब लिख चुका है।

आपको बता दें कि राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव राष्ट्रीय जनता दल से सांसद रह चुका है। करीब 15 साल पहले पप्पू यादव का नाम एक मजदूर नेता अजित सरकार की हत्या में जुड़ गया। अजित सरकार बिहार के पूर्णिया विधानसभा क्षेत्र से विधायक थे और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता थे। सन-98 को पूर्णिया के बीच शहर में मोटरसाइकिल सवार कुछ हमलावरों ने गोली मार कर उनकी हत्या कर दी थी। इस गोलीबारी में विधायक अजित सरकार के साथ मौजूद दो अन्य लोग अशफाक आलम और हिंरेंद्र शर्मा भी मारे गए थे।

इस मामले में जिला अदालत में पप्पू दोषी ठहराये गये, लेकिन बाद में बिहार हाईकोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया। हालांकि अब सीबीआई ने पप्पू यादव को अदालत से मिली राहत के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने भी सीबीआई के अर्जी पर पूरे मामले पर नोटिस जारी कर दी है। खैर अब दीगर बात है कि पप्पूा का कभी कोई लिखना-पढ़ना से कोई रिश्ता रहा हो या नहीं, लेकिन पप्पू ने एक एक किताब जरूर लिख दी है। इस किताब का नाम है:- द्रोहकाल के पथिक। अब मजेदार बात यह है कि इस किताब के तथ्यों  को लेकर नाराज राष्ट्रवादी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नागमणि ने उनके खिलाफ मानहानि का मुकदमा करने का ऐलान किया है। जाहिर है कि यह किताब राजनीति और अपराध की उठापटक वाली किस्सा-गो शैली में है, जिसमें घृणित आरोपों-प्रत्याररोंपों की भरमार है। अब यह सवाल बेमानी है कि पप्पूा यादव जैसा शख्स इससे बेहतर और क्या कर सकता था।

अब दूसरे छोर पर खड़ा है एक पढ़ा-लिखा शख्स। मीडिया के सिरमौर जैसी श्रेणी में शामिल हो चुके इस शख्स का नाम है हेमंत शर्मा। बनारस-इलाहाबाद से बरास्ते लखनऊ, होते हुए दिल्ली की गद्दी सम्भाल चुके हेमंत शर्मा की एक किताब का विमोचन करने जा रहे हैं नामवर सिंह। पता चला है कि इस किताब का विमोचन समारोह रविवार को दिल्ली में आयोजित होने जा रहा है। प्रख्यात साहित्यकार मनु शर्मा के पुत्र हेमंत की इस किताब मीडिया की लकीर से थोड़ा हट कर होगी और इसमें धार्मिक सम्बन्धी उनकी यात्राओं पर केंद्रित होगी। जाहिर है कि इस किताब में कुछ नये तथ्य  भी उजागर होंगे, जो अब तक दबे-छिपे ही रहे हैं। हेमंत शर्मा ने इस लिखा है तो जाहिर है कि रोचकता का बेहिसाब खजाना होगा। पत्रकार की नजर से चमके कैमरे के धांसू फोटोज भी होंगे। अररररररररररर्रे कीमत, मत पूछिये। बहुत कीमती होगी यह किताब। सम्भवत: 11 हजार रूपयों के आसपास।

हेमंत शर्मा का पत्रकारिता में विधिवत प्रवेश जनसत्ता से हुआ। यह सन-84 की बात है। इसके बाद वे लखनऊ के हिन्दुस्तान दैनिक में विशेष संवाददाता बने, उसके बाद सीधे उनका काफिला दिल्ली पहुंचा और वे इंडिया टीवी के अधिशासी संपादक बन गये। यह करीब 10 साल पहले की बात है। तब से ही हेमंत पत्रकारिता के नित नये-नये आयामों को छू-चूम रहे हैं। लेकिन बात केवल इतनी खटक रही है कि पप्‍पू यादव जैसे शातिर अपराधी-नेता की तथाकथित किताब का विमोचन करने वाले नामवर सिंह को ही हेमंत शर्मा ने कैसे इजाजत दे दी अपनी किताब के विमोचन के लिए।

पूरी कहानी को पढ़ने के लिए क्लिक कीजिए:- द्रोहकाल का पथिक

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