अरे उल्‍लू के पट्ठों ! स्‍त्री तुम्‍हारा शौचालय नहीं है रे

: मानव के प्रजनन अंगों का वेद बुना है वात्‍सायन व कोका पंडित ने, उसकी भावुकता व संवेदनाओं की व्‍याख्‍या की है ओशो ने : ओशो यानी ओशनिक, अर्थात समुद्र की तरह गहरा, प्रशांत और रत्‍न-सागर : सहवास। अछूते सवालों पर चर्चा ओशो से पहले भगवान तक ने जरूरी नहीं समझा : स्‍त्री को नर्क […]

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जन्‍माष्‍टमी: मैं अनीश्‍वरवादी हूं, लेकिन कृष्‍ण बनने को कृत-संकल्पित

: खोज रहा हूं अपनी स्‍वाहा, जिसमें खुद को स्‍वाहा कर दूं : खुद में दबे कृष्‍ण-कान्‍हा को खोजने का पर्व है जन्‍माष्‍टमी : भड़की यमुना नदी की हिलोरें और टोकरी से लटकता कृष्‍ण का पैर : संकल्‍प लेने की कोशिश करें कि हम अपने आप के भीतर कृष्‍ण, कान्‍हा को खोजेंगे : कुमार सौवीर […]

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