आज धरने पर बैठे शिवपाल सिंह यादव ने तब थाने में तांडव कर दारोगा को पीटा था

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: राजनीतिक उठापटक में आज हाशिया में सिमट चुके शिवपाल तब केवल दबंगई की पहचान रखते थे : ढाई दशक पहले इटावा के एक थाने पर हमला कर एसओ को बुरी तरह पीट दिया गया था : तब एकछत्र राज हुआ करता था, आज खुद में ही कुण्‍डली मारे बैठे हैं नेता जी : शिवपाल अब एकांत में-एक:

कुमार सौवीर

लखनऊ : यह पश्चिम उप्र का वाकया था। आज से करीब 25 साल पहले। गुण्‍डागर्दी और राजनीतिक के पंचमेली-बवाल के चलते दबंग लोगों के नेतृत्‍व में भारी भीड़ ने थाने पर हंगामा कर दिया और थानाध्‍यक्ष को बुरी तरह पीट दिया। बिल्‍ले नोंचे, वर्दी फाड़ी, और पूरे थाने में उसे लातों से पीटा-घसीटा गया। शुरूआत थी एक जमीन के कब्‍जे की। पुलिस ने जब इस मामले में हस्‍तक्षेप किया तो लखनऊ के इशारे पर पुलिस के आला अफसरों ने उल्‍टे उस दारोगा को ही टांग लिया था।

कहने की जरूरत नहीं कि यह हादसा किन लोगों ने किया था। जी हां, मुलायम सिंह यादव और उनके चहेते छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव समेत उनके पूरे खानदान का तब इटावा, मैनपुरी, कन्‍नौज, उरई समेत आसपास के पूरे इलाके में एकछत्र साम्राज्‍य हुआ करता था। तब यह पूरा इलाका यादवी-आतंक का पर्याय बन चुका था। अपराध की जितनी भी तहरीरें इन इलाकों में कही-सुनी गयीं, उसके केंद्र में केवल और केवल यह यादव परिवार के इर्दगिर्द ही था। उस थाने में जो कुछ भी हुआ, उसके केंद्र में शिवपाल सिंह यादव ही थे। मामला था एक जमीन पर कब्‍जा करने का। शिवपाल सिंह यादव का खेमा इस मामले पर यह चाहता था कि पुलिस वादियों के पांव तोड़े और शिवपाल खेमा के चरण-चूमे। सरेआम। लेकिन तब के थानाध्‍यक्ष ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। मगर पुलिस ने इस मामले पर जब कानूनी कार्रवाई की, तो शिवपाल सिंह यादव भड़क गये। किसी बड़े हुजूम और जुलूस की शक्‍ल में हजारों लोगों की तादात में थाने पर हमला बोला गया। हैरत की बात थी कि तब केवल दारोगा को पीटने वालों के समर्थन में डीआईजी यानी बड़ा दारोगा भी खुल कर नंगा हो गया।

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शिवपाल सिंह यादव

लेकिन तब शिवपाल सिंह यादव पर यौवन टपकता रहता था। कहा जाता था कि शिवपाल सिंह के पेशाब से इस पूरे इलाके में दीपक जलाये जाते थे। शिवपाल का नाम भगवान से ऊपर दर्ज हुआ करता था। कानून और पुलिस-प्रशासन की भूमिका शिवपाल सिंह यादव के हरम की बांदी-रखैल से ज्‍यादा नहीं हुआ करती थी। एक इशारे पर सरकारी अमला शिवपाल के पांवों में लोट जाया करता था।

लेकिन तब का यह बेलौस और बे-अंदाज सांड़ आज उम्र और राजनीतिक थपेड़ों के चलते अब बूढ़ा हो चुका है। खुद उसके ही भतीजों और भाइयों ने उसे इतने धोबी-पाटा मारे हैं कि कमर का ही कचूमर निकल गया। तब शिवपाल की एक आवाज में पूरा पश्चिमी क्षेत्र एकजुट हो जाता था, लेकिन अब सिवाय अपने बड़े भाई मुलायम सिंह यादव के अलावा कोई भी उनकी कुटिया पर नहीं फटकता है। जानकार बताते हैं कि मुलायम सिंह यादव भी कहने को तो शिवपाल सिंह यादव के साथ हैं, लेकिन उनकी चालें अबूझ होती हैं।

यही नतीजा है कि तीन दिन पहले जब इटावा में एक बवाल हुआ तो उसका जवाब देने के लिए शिवपाल सिंह यादव सड़क पर उतरे। पुलिस को ललकारा, लेकिन चूंकि राजनीतिक हालात बदल चुके हैं, सांगठनिक क्षमता अब शून्‍य तक पहुंच चुकी है, और तेवर बेहद सर्द होते जा रहे हैं। यही वजह रही कि जब शिवपाल सिंह ने अपने समर्थकों को ललकारा, तो एक दर्जन भी लोग नहीं जुट पाये। अगर आज से एक साल पहले का भी मंजर होता, तो शिवपाल के अहाते पर हजारों की भीड़ जुट जाती, जो किसी भी थाने को तबाह कर देती। लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। यही वजह है कि परसों जब शिवपाल ने अपनी यह कमजोरी पहचानी, तो हमलावर अंदाज होने के बजाय वे सीधे एक मकान के चबूतरे पर ही धरने पर बैठ गये। (क्रमश:)

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बड़ा दारोगा

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