लव यू सन्‍नी लियोन, मूसलाधार: शिक्षक-दिवस पर श्रद्धा-सुमन

सैड सांग

: असली दुराचारी तो हैं हम, सिर्फ दुराचारियों के लिए ही एकजुट हो पाते हैं :अरे तेल लेने गये दधीचि, चाणक्‍य, पुष्‍यमित्रशुंग, शंकराचार्य, राममोहन राय या फिर राधाकृष्‍णन : आसाराम, रामदेव, रामरहीम और लियोन की टक्‍कर में अब कोई नहीं बचा :

कुमार सौवीर

लखनऊ : वह दौर गया, जब कोई अति-सक्रिय छात्र अपनी शिक्षिका पर मोहित तो हो जाता था, लेकिन उनकी देह-यष्टि को निहारने के लिए कनखियों में ताका करता था। तब मेरा नाम जोकर जैसी ब्‍लॉक-ब्‍लास्‍टर फिल्‍में इसी विषय पर बन जाती थीं। बुकिंग-विंडो टूट जाते थे, उन बाल या तरूण-मनोविज्ञान की ऐसी परतों को खोलने-समझने के लिए। ऐसे सवालों को समझने और उनको क्रमवार रखने-सुलझाने के लिए विश्‍वविद्यालय में जमावड़ा जुटता था, जहां भावनाओं को समझने के लिए नये-नये निर्माण हुआ करते थे, बहस होती थी, नतीजे निकाले जाते थे। तो पहले शिक्षक-दिवस पर ऐसे महान-शिक्षकों के सर्वांग पर श्रद्धा-सुमन अर्पित कर लीजिए:- मोरी तो सन्‍नी लियोन, दूसरो ना कोय। आई लव यू सन्‍नी।

लेकिन अब यह नया दौर है। सन्‍नी लियोन का दौर। आज का दर्शक तब के दर्शकों से हजारों-लाखों गुना ज्‍यादा है, समझदार है, क्षमतावान है, उसका आकर्षण अलहदा है, उसके समाधान अलग हैं और उसकी तुष्टि-संतुष्टि का आधार अलग है। तब केंद्र में शिक्षार्थी हुआ करता था, और समाधान का माध्‍यम बन जाती थी शिक्षिका। लेकिन आज निर्वस्‍त्र और स्‍पष्‍ट जवाब ही सवाल की तर्ज पर सन्‍नी लियोन को देखने आ जाते हैं, और उनका समाधान करते हैं वही शिक्षार्थी।

जी हां, पिछले दिनों कोच्चि में सन्‍नी लियोन को सिर्फ देखने के लिए जुटी भारी भीड़ सिर्फ मजाक ही नहीं थी। बस उसमें उलटफेर हो गया। वहां की भीड़ उस जीवन्‍त मूर्ति को देखने गयी थी, जहां उससे केवल दर्शन ही मिलने थे। जबकि उसकी शिक्षिका-कर्ताधर्ता की प्रतिरूप तो वह यू्-ट्यूट और वाट्सऐप में एक नहीं, सैकड़ों पर देख चुका था। फिर सवाल यह है कि यह भारी भीड़ वहां क्‍या करनी गयी थी। इनमें से हर एक दर्शक को खूब पता था कि यह वही लियोन है, जिसे उन्‍होंने अरमानों को निकालने का माध्‍यम के तौर पर उसके वीडियोज में देखा है। उसके आकर्षण का मुख्‍य बिम्‍ब तो यही थी न, फिर वहां देवी की भूमिका में क्‍या उसका पूजन-अर्चना करने गये थे दर्शक।

कुलमिला कर जवाब यह है कि सन्‍नी लियोन ही आज के दौर में हमारी आदर्श है, और हमारे पूरे समाज ने अब उसे असल शिक्षिका का ओहदा दे दिया है।

हम अब आचार्य दधीचि के नाम पर अपने रोंगटे नहीं खड़ा पाते हैं। हमें न तो बुद्ध के आदर्श आकर्षित कर पाते हैं और न ही महावीर की शिक्षाएं दिल पर बसा पाती हैं। न पुष्‍य मित्र शुंग हमारे आदर्श बन पा रहे हैं और न ही चाणक्‍य अथवा शंकराचार्य। हमें न राम मोहन राय आकर्षित कर पाते हैं, और न ही महामना मदनमोहन मालवीय, सर सैयद अथवा सर्वपल्‍ली राधाकृष्‍णन। गांधी और नेहरू को तो गालियों से नवाज देना, जूतों से सजा देना हमारे रोज का पुनीत दायित्‍व बन चुका है।

उनमें से किसी भी शख्‍स के नाम पर हमारे समाज का एक भी नागरिक साथ नहीं खड़ा हो सकता है। वजह साफ है कि उपरोक्‍त शख्सियतों के प्रति आज के युवाओं-लोगों में कोई आस्‍था तक नहीं बची है।

लेकिन चित्‍त की शांति केवल बिना गुरू के मुमकिन ही नहीं। और बाजार में नये-नये गुरू अपनी गद्दी जमाये बैठे हैं। नये दौर की जिज्ञासाएं, नया वातावरण, नये गुरू, नये प्रश्‍न, नई राहें, नई सुंतुष्टि और उनके इर्द-गिर्द प्रभामंडल का केंद्र बने गुरू जी। आज का शिक्षार्थी अपने गुरू के आचरण और उनके गुरूत्‍व के नये-नये प्रदर्शन के प्रति चमत्‍कृत और प्रभावित होता जा रहा है। हैरत की बात है कि वीडियो में जो भी चीजें आज का शिक्षार्थी छिप-छिप कर देखता है, उसके कर्ताधर्ता को खुलेआम या सार्वजनिक रूप से देखने के लिए हम बाकायदा झुण्‍ड के तौर पर एकजुट हो जाते हैं। इतना मतवाले हो जाते हैं कि पुलिस भी उन्‍हें नियंत्रित नहीं कर पाती।

कोच्चि में एक दूकान का उद्घाटन समारोह में पचीसों हजार लोगों की भीड़ ने साबित करती हैं कि हम दुराचरण के समर्थक हैं। एक घोषित दुराचारी बाबा गुरमीत रामरहीम को बचाने के लिए जुटी लाखों की भीड़, जिसने कानून-व्‍यवस्‍था को तबाह करने की घटना साबित करती है कि हमारा जन-मानस दिवालिया हो चुका है। हैरत की बात तो यह है कि वह भीड़ कोर्ट का फैसला होते ही इतना अनियंत्रित हो जाती है, कि 35 लोगों की मौत हो जाती है।  यह हादसा भी उस सरकार द्वारा हुए प्रयास के तहत हुआ जो खुद इस दुराचारी को बचाने में ही लगी थी। वह तो कोर्ट बीच में आ गयी, वरना हमारा और हमारे दुराचारी गुरू-बाबा का दुराचारी झण्‍डा विश्‍वगुरू की नाम-पताका की तरह झूमता दिखता।

सच बात तो यही है कि हमें केवल आसाराम, रामपाल, परमानन्‍द, स्‍वामी चिन्‍मयानन्‍दों में ही शांति मिलती है।

अजी, हम नये दौर के राष्‍ट्र की दुराचारी जनता हैं। हम सिर्फ दुराचार करते हैं, और दुराचारियों के लिए ही एकजुट हो पाते हैं। (क्रमश:)

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मोरी तो सन्‍नी लियोन, दूसरो ना कोय


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