सतयुग हो या सपा-भाजपा सरकार: सिर्फ पॉक्‍सो ही पॉक्‍सो

सैड सांग

: यह तो खोजिए कि इस घिनौनी आंधी का मूल कारण, कौन सी ताकतें और मूल अपराधी कौन हैं : आक्रोश में लिए फैसले आत्मघाती होते हैं,  उनका दूरगामी प्रभाव दूरगामी प्रतिकूल भी : ऐसी ही जघन्‍य वारदातों के आंखियों को थामने में असफल अखिलेश यादव से आम आदमी को सपा-सरकार से घृणा हो गयी थी :

कुमार सौवीर

लखनऊ : दोस्तों । मेरे कई पाठकों ने मेरी राय पर बहुत गुस्सा जाहिर किया है। कई ने तो यहां तक कह दिया कि अगर ऐसा हादसा अगर आप के परिवार की महिलाओं पर हो तो आपका नजरिया क्या होगा। उनका गुस्सा बिल्कुल जायज है। लेकिन यह केवल उनका गुस्सा ही है, जबकि ऐसे मामलों पर शांतचित्त मस्तिष्‍क से ही फैसला करना चाहिए। गुस्सा यानी आक्रोश में लिए गए फैसले हमेशा आत्मघाती होते हैं और उनका काफी दूरगामी प्रतिकूल असर पड़ता है। इस मामले में भी यही हुआ है। ऐसी हालत में हमें देखना पड़ेगा कि अचानक ऐसा कौन सी घिनौनी आंधी कैसे चल पड़ी, उसके मूल क्या कारण हैं, उसके पीछे कौन सी ताकतें है और उसके मूल अपराधी कौन हैं।

क्या इसके पहले समाजवादी पार्टी यह दिल्ली समेत किसी और क्षेत्र में ऐसी कोई घटना नहीं हुई। हुई हैं, और खूब हुई हैं। आज ही नहीं बल्कि हर युग में हुई महाभारत की शुरुआती पॉक्सो जैसे हालातों से पैदा हुई थी। आप याद कीजिए कि निषाद राज की पुत्री सत्यवती जिसकी उम्र तकरीबन 16 बरस की थी, उसके साथ ऋषि पाराशर ने संभोग किया था। वह कृत्य तब हुआ जब वह बच्ची उस ऋषि को नाव पर बिठाकर नदी के उस पार ले जा रही थी। पाराशर ने उस पूरे यात्रा के दौरान एक धुंध-कोहरा जैसा बुन-बींध दिया था। और आपको कहने की जरूरत नहीं है कि कोहरा का आशय उस घटना में किस व्यवहार का प्रतीक था।

कुंती के पुत्र का नाम कर्ण था। कहा जाता है कि वह कुंती के कान से पैदा हुआ था कर्ण। इतना तय है कि उसके जैविक पिता का नाम सूरज था। हम नहीं जानते कि वह सूरज कोई व्यक्ति था या नहीं अथवा दहकते आग का सूरज था वह,  लेकिन इतना जरूर है कि किसी भी बच्चे का जन्म किसी स्त्री के कान से नहीं हो सकता। इसके पहले राम काल में शूर्णपखा नामक एक युवती के नाक और कान काट लिया गया था। और आपको समझने की जरूरत नहीं है कि किसी महिला की नाक-काट लेना किस प्रवृत्ति या काण्‍ड का प्रतीक और किन परिस्थितियों का परिचायक होता है।

तो हमें भ्रमित मत कीजिए। आइये, कम से कम हम शांतचित्त होकर इस पूरे प्रकरण को समझने की ईमानदारी को दिखायें।

हमें समझना पड़ेगा कि आखिर क्या कारण थे जिनमें अखिलेश यादव की सरकार में बलात्कारों की एक बाढ़ तक आ गई थी और पूरे 5 बरस तक अखिलेश सरकार बलात्कारियों की सरकार के तौर पर को कुख्यात हो गई थी। हालत इतनी बुरी हो गई थी कि प्रदेश की पीड़ित जनता के दिलों पर समाजवादी पार्टी के अध्‍यक्ष रहे मुलायम सिंह यादव ने इतना तक मिर्च झोंक दिया था क‍ि लड़कों से गलतियां हो जाती हैं, और इसका मतलब नहीं कि उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया। वहां मुलायम सिंह यादव अपने इस बयान पर भले ही फांसी शब्द का दूसरी व्याख्या कर रहे हों लेकिन इतना जरूर है कि उस बयान से इतना जरूर साबित हो गया कि उनकी सोच बलात्कारी लड़कों के प्रति क्या है।

नतीजा यह हुआ कि अखिलेश की सरकार के प्रति आम आदमी को घृणा हो गयी।

सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने अपने उस बयान से पीडि़त जनता के घावों पर मल्हम तो नहीं लगाया, बल्कि उसे और भी कुरेद दिया था। बेहतर होता कि मुलायम सिंह अपने प्रशासन को और संवेदनशील बनाते और ऐसे अपराधियों पर कड़ी कार्रवाई करते हुए समाज विज्ञानियों से आग्रह करते ताकि ऐसे जघन्य हरकतों का निदान खोजा जा सके। इसके साथ ही साथ वे प्रदेश में एक बहस छेड़ते कि राजसत्‍ता को ऐसे तांडवों से कैसे निपटना चाहिए।

अखिलेश सरकार को राजगद्दी से बाहर करने और पदस्‍थ कर सत्‍ता पर हासिल करने वाली भाजपा सरकार ने इस ताजा तांडव पर जो भी फैसला किया, उस पर गुण-दोष की समीक्षा करना समय की सख्‍त जरूरत है। यहां सवाल यह नहीं है कि किसी अपराधी पर क्या सजा दी जाए, बल्कि सवाल यह है कि जनता को विश्‍वास में लेकर जो भी हो सके, फैसला किया जाए वह सर्वमान्‍य हो।

किसी भी मामले पर क्रूरतम सजा देने के फैसला देना भावुकता का विषय कैसे हो सकता है। सच तो यह है कि यह प्रश्‍न का समाधान तो सरकार और समाज की संवेदनशीलता से ही खोजा जा सकता है। और दुख की बात है कि सरकार ने इस पूरे प्रकरण पर पूरी तरह आम आदमी की भावुकताओं को सान पर चढ़ाया है, मगर अपनी संवेदनशीलता का एक बार भी प्रदर्शन नहीं किया। (क्रमश:)

इधर नन्‍हीं बच्चियों के साथ हुईं बलात्‍कार के बाद हत्‍याओं की आंधियों ने साबित करने की यह मजबूत पैरवी शुरू कर दी है कि हमारा देश एक अराजक समाज की शक्‍ल अख्तियार करता रहा है। लेकिन इसके पहले कि इस मामले पर कोई सार्थक राष्‍ट्रीय बहस हो पाती, सरकार ने उन हादसों से भड़कीं जन-भावनाओं पर जो फैसला किया, वह किसी भी सभ्‍य देश को सवालों के कठघरे में खड़ा कर देता है। बहरहाल, इस पर हम एक श्रंखलाबद्ध लेख प्रकाशित करने जा रहे हैं। आपसे अनुरोध है कि हमारे इस अभियान पर आप भी जुड़ें और खुद भी अपनी राय व्‍यक्‍ त करें। आपकी भावनाओं को हम पूरे सम्‍मान के साथ अपने प्रख्‍यात न्‍यूज पोर्टल www.meribitiya.com पर प्रकाशित करेंगे। अपनी राय आप हमारे ईमेल kumarsauvir@gmail.com पर भेज सकते हैं।

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रेप पर रेप्‍चर्ड फैसला

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