गलत थी ‘नोटबंदी’, पता था कि बहुत महंगी पड़ेगी: आरबीआई के पूर्व प्रमुख बोले

सैड सांग

: दावा झूठा कि आठ महीने पहले से चल रही थी नोटबन्दी की तैयारी :  “मुझे जो करना होता है, वह मैं करता हूं, सुधारों का शोरगुल और संकल्प” में दर्ज है हकीकत : मोदी समिति में आरबीआई की ओर से सिर्फ करेंसी से जुड़े डिप्टी गवर्नर ही बुलाये गये :

मेरी बिटिया डॉट कॉम संवाददाता

नई दिल्ली : आरबीआई यानी भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने आज जैसे ही अपना मुंह खोला, मानो कोई खतरनाक तूफान आ गया।राजन ने नोटबन्दी की पोल खोल दी है। उन्होंने पहले ही नोटबन्दी से नुकसान का अंदेशा जता दिया था। इतना ही नहीं, राजन ने यहां तक दावा कर लिया है कि कि आठ महीने पहले से नोटबन्दी की तैयारी का सरकारी दावा भी बेबुनियाद था।  गर्वनर वाला अपना पद छोड़ने के एक साल बाद नोटबंदी पर राजन ने अब अपनी चुप्पी तोड़ी है और कहा है कि उन्होंने कभी भी नोटबंदी का समर्थन नहीं किया। उनका कहना है कि बल्कि नरेंद्र मोदी सरकार को नोटबंदी के खतरों के बारे में चेतावनी दी थी, और सरकार को यह भी चेतायवनी दे दी थी कि इस फैसले से अल्पकाल में होने वाला नुकसान लंबी अवधि तक भारी पड़ेंगे।

आपको बता दें कि रघुराम राजन ने यह सारी बातें अपनी एक किताब में लिखी  हैं, जिसका नाम है ‘I Do What I Do: On Reforms Rhetoric and Resolve’ अर्थात मुझे जो करना होता है, वह मैं करता हूं: सुधारों का शोरगुल और संकल्प। राजन की किताब के अनुसार केंद्र सरकार के द्वारा उनकी असहमति बावजूद उनसे इस मुद्दे पर नोट तैयार करने को कहा गया। आरबीआई ने नोट तैयार कर सरकार को सौंप दिए और इसके बाद इस पर निर्णय करने के लिए सरकार ने समिति बनाई। राजन ने खुलासा किया कि समिति में आरबीआई की ओर से सिर्फ करेंसी से जुड़े डिप्टी गवर्नर को शामिल किया गया, इससे जैाहिर होता है कि राजन ने स्वयं इन बैठकों में हिस्सा नहीं लिया।

राजन ने कहा कि काले धन को सिस्टम में लाने का मकसद पूरा करने के दूसरे तरीके भी सरकार को सुझाए थे। उन्होंने फरवरी 2016 में मौखिक तौर पर अपनी सलाह सरकार को दी और बाद में आरबीआई ने सरकार को एक नोट सौंपा जिसमें उठाए जाने वाले जरूरी कदमों और इसकी समय-सीमा का पूरा खाका पेश किया गया था लेकिन सरकार ने नोटबंदी की राह चुनी। राजन की यह किताब इसी हफ्ते आने वाली है। जिसमें नोटबंदी के पर उन्होंने खुलकर अपनी बात कही। राजन ने लिखा कि ‘आरबीआई ने इस ओर इंगित किया कि अपर्याप्त तैयारी के अभाव में क्या हो सकता है।’

हालांकि सरकार ने नोटबंदी के फैसले का यह कहते हुए बचाव किया कि इससे टैक्स बेस बढ़ने से लेकर डिजिटल ट्रांजैक्शन में इजाफे तक कई दूसरे फायदे हुए हैं। राजन ने माना कि नोटबंदी के पीछे इरादा काफी अच्छा था लेकिन इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। उन्होंने कहा, निश्चित रूप से अब तो कोई किसी सूरत में नहीं कह सकता है कि यह आर्थिक रूप से सफल रहा है। राजन ने आरबीआई गवर्नर का अपना कार्यकाल खत्म होने के बाद बतौर फैकल्टी शिकागो यूनिवर्सिटी के बूथ स्कूल ऑफ बिजनेस में वापसी की। राजन का कार्यकाल 5 सितंबर 2016 को पूरा हो गया था जबकि नोटबंदी की घोषणा 8 नवंबर 2016 को की गई।

बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर 2016 को राष्ट्र को संबोधित करते हुए 500 और 1000 रुपए के नोटों को बंद करने की घोषणा की थी और इसे देश के हित में बताया था। हालांकि आरबीआई की ओर से इसी हफ्ते जारी आंकड़ों में कहा गया कि पुराने बंद किए गए 500 और 1000 रुपए के 99 प्रतिशत नोट बैंकों में जमा हुए हैं, इससे सरकार पर सवाल खड़े होने शुरू हो गए हैं।

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