बदतमीज “दुलरुआ” न बन जाएं अखिलेश की रूखसती की वजह

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: तानाशाह, अभद्र और अराजक बड़े बाबुओं ने ही बिगाड़़ी है अखिलेश-सरकार की फिजा : पांच साल अफसर छुट्टा सांड की तरह गुंडई करते रहे अखिेलेश के कई लाड़ले अफसर : बेअंदाज अफसरशाहों के सामने पनाह मांग गयी जनता : बड़े बाबू बनाम नौकरशाह- एक :

कुमार सौवीर

लखनऊ : आलोक रंजन ने अराजकता की पराकाष्‍ठा कर दो महीनों तक दो सरकारी कर्मचारियों को डेढ़ करोड़ के हार की चोरी के आरोप में निर्दोषों को हवालात में बंद रखा था। इन कर्मचारियों पर अमानवीय ज्‍यादतियां जब सिर से ऊपर निकल गयीं तो कई पुलिस अफसरों ने ऐतराज कर दिया। नतीजा, लखनऊ के बड़े दारोगा राजेश पाण्‍डेय को एसएसपी की कुर्सी से हटा कर अ-महत्‍वपूर्ण पद पर पटक दिया गया।

दीगर बात है कि प्रमुख न्‍यूज पोर्टल मेरी बिटिया डॉट कॉम ने इस मामले पर जमकर धज्जियां उड़ा डालीं। नतीजा यह हुआ कि उन दोनों निरीह कर्मचारियों को दो महीनों की हवालात ने मुक्ति मिल गयी।

जौनपुर का डीएम भानुप्रताप गोस्‍वामी आम आदमी को जूतों से दिमाग दुरूस्‍त करने की धमकी देता है। इस बड़े बाबू को लगता है कि वह लोकसेवक नहीं, शाहंशाह है। जो चाहेगा, कर देगा। आम आदमी की इज्‍जत तो दूर, इस अधिकारी के कार्यकाल में निरीह और मासूम बच्चियों तक न्‍याय के लिए तरस गयीं। एक नागरिक ने जब इस अफसर से अपना दुखड़ा बयान किया, तो इस बड़े बाबू का जवाब था कि अभी जूतों से मार-मार दिमाग दुरूस्‍त कर दूंगा।

अफसरशाही से त्रस्‍त आम आदमी की पीड़ा को सुनने और उसका निराकण करने के बजाय, इस आईएएस अफसर भानुचंद्र गोस्‍वामी ने एक नागरिक को जूतों से पीटने की धमकी दे डाली थी, वह कहानी तो जौनपुर के माथे पर हमेशा के लिए चस्‍पा हो चुकी है।

भानुचंद्र गोस्‍वामी की ऐसी-ऐसी शौर्य गाथाएं-कथाएं-किस्‍से जौनपुर की हर गली में जहां-तहां सड़-गंधाय रही हैं। खास तौर पर किस तरह एक नाबालिग बच्‍ची के साथ हुए सामूहिक बलात्‍कार जैसी आशंका पर पुलिस की थ्‍योरी को पुख्‍ता करने के लिए भानुचंद्र गोस्‍वामी ने अपने जन-दायित्‍वों को अपने जूतों से रौंद दिया था।

बाद में यह मसला ज्‍यादा तूल पकड़ गया तो भानु ने अपनी करतूतों पर पर्दा डालने के लिए उस बच्‍ची को पहले पागलखाना भेजने की साजिश की। लेकिन इसमें भी असफल होने पर उसे निराश्रित महिला आश्रम  भिजवा दिया।

बहराइच के जिलाधिकारी अभय कुमार की कहानी भी खासी चर्चित हो चुकी है। अभय कुमार तो मीडियाकर्मियों से खौखियाने में कुख्‍यात हो चुका। किसी बिगड़ैल गुण्‍डे-मवाली की तरह वह शख्‍स कभी डंडा लेकर नागरिकों को पीट देता है, तो कभी सरकारी सुरक्षा कर्मचारियों को लठिया देता है। बवाल जब भड़क जाता है, तो वह गिड़गिड़ा कर बाकायदा अपनी नाक रगड़ते हुए माफी-नामा तक लिखने को तैयार हो जाता है। इतना ही नहीं, जब मीडियाकर्मी इस खबरें फ्लैश करते हैं, तो अभय कुमार उन्‍हें निहायत अभद्रता से पेश आकर उन्‍हें अपने दफ्तर से बाहर निकाल देता है।

किंजल सिंह का नाम तो वाकई सुनहरे हर्फों में दर्ज किये जाने योग्‍य है। लखीमपुर खीरी में जिलाधिकारी पद पर किंजल सिंह ने वह-वह करतूत कर डाली, कि दुनिया में मशहूर इस दुधवा संरक्षित वन अभयारण्‍य के कर्मचारी-अधिकारी ही नहीं, जंगल में रहने वाले पशु-पक्षी तक पनाह मांग गये।

सख्‍त मनाही के बावजूद जंगल में अपने मित्रों के साथ कारों के काफिले के साथ फर्राटा भरना, देर रात तक जोर-शोर से हॉर्न बजाना और मौज-मस्‍ती, मटरगश्‍ती जैसे अराजक कृत्‍यों से जब जंगल महकमे के लोगों की बर्दाश्‍त की सीमा टूट गयी, तो वन-‍अधिकारियों ने ऐतराज कर दिया।

इस पर किंजल सिंह ने बवाल कर दिया। बवाल का दौर कई महीनों तक चला। हंगामा इतना तक भड़का कि वन कर्मचारियों और अधिकारियों ने किंजल सिंह के कृत्‍यों के विरोध में हड़ताल कर डाली। (क्रमश:)

जनता ने जिन लोगों को लोक-प्रशासन और लोक-कल्‍याण की जिम्‍मेदारी दी है, आज वे जनता के खिलाफ ही हमलावर साबित होते जा रहे हैं। पिछले कुछ बरसों में ऐसे चंद लोक-सेवकों ने अपना चरित्र ही बदल डाला। और उसके बाद वे अपने दायित्‍वों से विमुख होकर या तो आक्रामक होते जाते रहे, या फिर बड़े बाबू। ऐेसे लोगों ने अपना काम लोक-सेवा के बजाय जन-हनन में तब्‍दील कर दिया। भ्रष्‍टाचार ने उनका चरित्र हिंसक बना दिया। ऐसे चरित्रों को देखने के लिए निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिए:- नौकरशाह बड़े बाबू

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