: अफीम और हेरोइन का सबसे बड़ा अड्डा होने के चलते बाराबंकी में उगाही सर्वाधिक : एक दिन तो इसी में लग गया कि हफ्ता की रकम बढ़ा दी जाए, लेकिन अधीक्षक का कहना था कि यह मुमकिन नहीं : जेल अधीक्षक का कहना है कि उसके खिलाफ षडयंत्र हुआ : जेल-खेल- दो :
कुमार सौवीर
लखनऊ : ( पिछले अंक से आगे ) चलो, मान लिया कि चंद मिनटों में ये गया, वो गया तर्ज में अधीक्षक लापता हो गया। तो क्या मंत्री को यह नहीं पता था कि जनता, लखनऊ, राज्य और खुद उनकी सुरक्षा के लिए भी पुलिस की एक विशेष सेवा मौजूद है, जिसका 100 नम्बर है। दावा है कि पुलिस की सहायता के लिए उसे डायल करने पर चंद मिनटों में ही मौके पर पहुंच सकती है। तो क्या मंत्री ने 100 नम्बर डायल करने की कोशिश की। हो सकता है कि मारे आवेश में मंत्री 100 नम्बर भूल गये हों, क्योंकि जब उन्होने 50 हजार रूपया का पैकेट ठुकरा दिया, तो गुस्सा आ ही जाएगा। लेकिन सवाल यह है कि मंत्री ने वह रकम अवैध रूप से अपने घर पूरे 28 घंटों तक क्यों दबाये रखी। यह रकम तो तत्काल पुलिस को हवाले करनी ही चाहिए थे।
अरे वे अपने निजी सचिव, पीआरओ, सुरक्षाकर्मियों तक को बुला सकते थे कि दारोगा, मैजिस्ट्रेट, सीओ, एसएसपी, डीएम, डीजीपी, प्रमुख सचिव को हुक्म देकर उमेश सिंह को तत्काल दबोचा जाए। और तो और, वे कारागार विभाग के डीजी, आईजी वगैरह को बुला सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं हुआ। केवल अगले दिन रात को उनका गनर कोतवाली में पहुंचा, और उसने उमेश सिंह के खिलाफ लिखी रिपोर्ट कोतवाल को थमा दी। हालांकि अभी यह खबर पुष्ट नहीं है कि रिपोर्ट के साथ उन्होंने वह रकम थाने में जमा करायी भी है या नहीं।
बहरहाल, इस मामले में एक जेल अधिकारी ने प्रमुख न्यूज पोर्टल मेरी बिटिया डॉट कॉम ने बताया कि उमेश सिंह को इटावा से बाराबंकी लाने का आदेश जेल मंत्री जैकी के कहने पर ही जारी हुआ था। कमाई के मामले में इटावा जेल बहुत बंजर मानी जाती है, जबकि अफीम और हेराइन का विश्वविख्यात केंद्र होने के चलते बाराबंकी जेल में कमाई के बेहिसाब स्रोत होते हैं। इसीलिए जेल अधिकारी इस जेल में तैनाती कराने के लिए जमीन-आसमान एक किये रहते हैं। उमेश कुमार सिंह भी इन्हीं लालायित लोगों में शामिल हैं। खासी बोली लगा कर उमेश सिंह ने अपना तबादला इटावा से हटवाया और बाराबंकी की कुर्सी हासिल कर ली।
उन जेल के कई अधिकारियों और जेल को कवर करने वाले पत्रकारों के अनुसार मंत्री जैकी खुद ही संदेहों में घिरे रहे हैं। एक पत्रकार ने बताया कि जैकी जी अपने करीबियों से साफ ऐलान करते रहते हैं कि मैंने पैसा देकर यह मंत्री पद हासिल किया है, ऐसी हालत में अब उस फसल को काटने का मौका क्यों छोड़ दिया जाए। इतना ही नहीं, अपने पूरे कार्यकाल के दौरान ट्रांसफर-पोस्टिंग में जबर्दस्त उगाही के खूब और गहरे आरोप भी मंत्री जैकी पर लगे हैं। बताते हैं कि उमेश सिंह जेल मंत्री के पास हफ्ता अदा करने गया था। लेकिन बताते हैं कि इस बात पर मामला बिदक गया कि रकम कम है। आरोपों के अनुसार मंत्री को यह रकम काफी कम लगी, वे ज्यादा रकम चाहते थे। लेकिन अधीक्षक उमेश सिंह का तर्क था कि हर हफ्ते इतना से ज्यादा उगाह पाना बाराबंकी जेल से मुमकिन नहीं होगा। इसी पर मंत्री हत्थे से उखड़ गये। उन्होंने उमेश को कस कर डांटा, और कहा कि तुम्हारा कैरियर तबाह कर दूंगा, किसी मामले में फंसाऊंगा कि नानी याद आ जाएगी। लेकिन उमेश के वश में नहीं था कि वह मंत्री की डिमांड पूरा कर पाता। इसलिए वह बाहर चला गया।
सूत्र बताते हैं कि अगले दिन भी मंत्री ने उमेश से तयतोड़ करने की कई कोशिशें करायीं। लेकिन जो असम्भव है, वह कैसे साकार हो पाता। जेल अधीक्षक अड़ा ही रहा कि इससे ज्यादा हफ्ता दिया जा पाना मुमकिन नहीं हो पायेगा। जबकि मंत्री इस रकम को बढ़ाने पर दबाव बनाने पर आमादा थे। आखिरकार जब यह डील कम्प्लीट नहीं हो पायी तो झुंझला कर जेल राज्य मंत्री ने जेल अधीक्षक को मजा चखाने के लिए उनके खिलाफ यह रिपोर्ट पुलिस में दर्ज करा दी।
बहरहाल, इस रिपोर्ट में कई चूकें हैं, जिनसे पूरा मामला ही संदिग्ध होता जा रहा है। वह यह कि आखिर किसी अधीक्षक की हैसियत कैसी हो गयी कि वह शराब के नशे में मंत्री के आवास में पहुंचा। अगर मंत्री के साथ उसके बेहद लेनदेन वाले आत्मीय रिश्ते नहीं थे तो वह कैसे नोटों का बंडल छोड़ कर वहां छोड़ गया। अगर वह नशे में था, तो उसे वहीं पर दबोच कर उसका मेडिकल क्यों नहीं करा लिया गया। तहरीर में लिखा गया है कि उमेश नशे की हालत में थे और ठीक से बोल नहीं पा रहे थे। अगर वह मंत्री आवास से भाग निकला था, तो उसी समय पुलिस और जेल विभाग के डीजी या सचिव को फोन कर उसे क्यों नहीं पकड़वाया गया। अगर उमेश शराब में धुत थे, तो उनकी मेडिकल अब तक क्यों नहीं करायी। जबकि पियक्कड़ के शरीर के रक्त में जांच में तीन दिन तक शराब की मौजूदगी रहती है। क्या वजह है कि मंगलवार की रात हुए इस मामले की रिपोर्ट बुधवार की रात दर्ज करायी गयी। इस विलम्ब का कारण क्या था, क्या लेन-देन सम्बन्धी बातचीत या तय-तोड़ तो इस विलम्ब का कारण नहीं था। पैसा मंत्री के लिए आया, और उसे एक कर्मचारी ने खोल कर देखा, तो उसकी रिपोर्ट सीधे मंत्री ने क्यों नहीं करायी। बल्कि तीसरे शख्स यानी गनर को यह दायित्व क्यों दिया गया।
बहरहाल, उमेश कुमार सिंह ने प्रमुख न्यूज पोर्टल मेरी बिटिया डॉट कॉम संवाददाता से फोन पर बताया कि ऐसी कोई भी बात कभी नहीं हुई। उनका कहना है कि यह उनके खिलाफ कोई बड़ा षडयंत्र हो रहा है। उमेश बोले कि मंत्री के घर जाने की बात ही बेबुनियाद है। वैसे सूत्रों के अनुसार जेल राज्य मंत्री अजय कुमार सिंह उर्फ जैकी और जेल अधीक्षक उमेश कुमार सिंह दोनों की ही छवि महकमे में सबसे जबर्दस्त खिलाडि़यों में से से है। (क्रमश:)
जेल में मंत्री और अधीक्षक की हरकतें-करतूतें इस वक्त कारागार विभाग में धू-धू कर भड़की हुई हैं। बात है घूस और जेल में होने वाली हफ्ता-वसूली, जिसकी आंच विभाग और सचिवालय से भी आगे सीधे मंत्री तक के हाथ झुलसा रही है। उससे जुड़ी खबरों को पढ़ने के लिए कृपया निम्न लिंक पर क्लिक कीजिएगा:-