लोकसेवा आयोग में चौथे बर्खास्‍त अध्‍यक्ष हैं अनिल यादव

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: बेहद उग्र आंदोलन रहा छात्रों का, इलाहाबाद में कई दिनों तक कर्फ्यू जैसे हालात रहे : अंततः 30 जुलाई को अदालत के दबाव में आयोग को अपना फैसला वापस लिया : छात्र आंदोलन के दबाव में पीसीएस 2011 का परीक्षाफल रद्द कर दिया गया :

श्‍वेतपत्र संवाददाता

इलाहाबाद : अनिल यादव यूपी में किसी आयोग के ऐसे चौथे अध्यक्ष हैं जिन्हें अदालत ने पद से हटाया है। लेकिन बावजूद इसके सूबे की पूर्ववर्ती अखिलेश यादव सरकार उन्हें बचाने में लगी रही। उत्तर प्रदेश लोकसेवा आयोग (यूपीपीएससी) के अध्यक्ष अनिल यादव की नियुक्ति को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अवैध मानकर रद्द करके एक नई बहस को जन्म दे दिया था। इस मामले में अदालती लड़ाई लड़ रहे प्रतियोगी छात्र तब यह मांग करने लगे थे कि अगर यादव की नियुक्ति अवैध है तो उनके कार्यकाल में आयोग द्वारा किए गए फैसले कैसे वैध हो सकते हैं। इसलिए ये छात्र अब अनिल यादव के कार्यकाल में हुई हर नियुक्ति को रद्द करने की लड़ाई लड़ने की तैयारी में जुट गये थे।

अखिलेश सरकार ने दो अप्रैल 2013 को अनिल यादव को यूपीपीएससी का अध्यक्ष बनाया था। इसके फौरन बाद ही इस नियुक्ति पर विवाद शुरू हो गया था। आरोप लगा कि आयोग का अध्यक्ष बनने के लिए सरकार के पास कुल 83 आवेदन पहुंचे थे जिनमें फौज और प्रशासनिक सेवाओं के अधिकारियों सहित पूर्व उपकुलपति व विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर तक शामिल थे, लेकिन सरकार की पसंद बने आगरा निवासी और मुलायम सरकार के कार्यकाल में राज्य लोकसेवा आयोग के सदस्य रहे अनिल यादव।

उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग देश का सबसे बड़ा नियुक्ति आयोग है। कुछ वर्ष पहले तक इसे बहुत निष्पक्ष और नियमों के अनुसार काम करने वाला माना जाता था। लेकिन अनिल यादव के आने के बाद सब कुछ बदल गया। यादव के अध्यक्ष बनते ही आयोग ने त्रिस्तरीय आरक्षण का विवादास्पद फैसला लिया और इसके विरोध में प्रतियोगी छात्रों का आंदोलन शुरू हो गया। यह आंदोलन बहुत उग्र हुआ और इलाहाबाद में कई दिनों तक कर्फ्यू जैसे हालात रहे। अंततः 30 जुलाई को अदालत के दबाव में आयोग को अपना फैसला वापस लेना पड़ा और आंदोलन के दबाव में पीसीएस 2011 का परीक्षाफल रद्द कर दिया गया। इसके बाद भी आयोग की गड़बडियों के खिलाफ कई बार आंदोलन हुए जिनके कारण आगजनी और लाठीचार्ज हुए। करोड़ों की सम्पत्ति नष्ट हुई, हजारों छात्रों का भविष्य तबाह हुआ। मगर चौतरफा विरोध के बावजूद सपा सरकार अनिल यादव को बचाने में जुटी रही। अनिल यादव पर अयोग्य होने के साथ-साथ, परीक्षा में धांधली, साक्षात्कार में बेईमानी, स्केलिंग के जरिए अधिक योग्य उम्मीदवारों के साथ भेदभाव, मनमानी, गलत प्रश्न पत्र बनवाने और साक्षात्कार में मानकों के विरूद्ध नंबर देने जैसे आरोप हैं।

ये आरोप अनेक मुकदमों में दस्तावेजी सबूतों के साथ विचाराधीन हैं। उनकी नियुक्ति को अवैध ठहराते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सरकार ने संवैधानिक प्रावधानों, पद की योग्यता, व्यक्ति की सत्यनिष्ठा और विश्वसनीयता को ध्यान में नहीं रखा। 83 अभ्यर्थियों के आवेदन पर विचार और तुलना करने की बजाय एक ही दिन में चयन और संस्तुति कर ली गई। अदालत ने कहा कि निर्धारित मानकों का उल्लंघन कर नियुक्ति कर ली गई जबकि पद के लिए अन्य योग्य व्यक्ति उपलब्ध थे। बहरहाल अनिल यादव की बर्खास्तगी के आदेश के बाद अब यह सवाल उठने लगा है कि अनिल यादव के कार्यकाल में हुई अवर अभियंता, प्रवक्ता, पीसीएसजे सहित हुई कुल 336 भर्ती प्रक्रियाओं का क्या होगा। अनिल यादव की ‘योग्यता’ इसी से परिलक्षित होती है कि अपने ढाई साल के कार्यकाल में उन्होने 336 परीक्षाओं के परिणाम घोषित किए। उनसे पहले दो साल अध्यक्ष रहे एसआर लाखा के कार्यकाल में 56 और उनसे पहले डेढ़ साल अध्यक्ष रहे मलकियत सिंह के कार्यकाल में कुल 39 परीक्षाओं के परिणाम ही घोषित हुए थे।

खैर, अब दूध का दूध और पानी का पानी करने का जिम्मा सीबीआई के कंधों पर है। उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग में अप्रैल 2012 से मार्च 2017 के बीच विभिन्न भर्तियों की जांच के लिए सीबीआई की नौ सदस्यीय टीम इलाहाबाद पहुंच गई है। आईपीएस राजीव रंजन के नेतृत्व में टीम ने आयोग सचिव एवं परीक्षा नियंत्रक से पूछताछ की। टीम के सदस्य करीब पांच घंटे आयोग परिसर में रहे। इस दौरान वहां अघोषित कर्फ्यू जैसा माहौल रहा। सीबीआई टीम ने पूर्व अध्यक्ष अनिल यादव के कार्यकाल के दौरान तैनात रहे कर्मचारियों के बारे में जानकारी एकत्र की।

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