डॉक्टरों के घर पहली बेटी जन्मी, भ्रूणहत्या का दौर शुरू

सैड सांग

नागपुर मेडिकल कालेज में हुए सर्वे में आये दिल दहला देने वाले आंकड़े

डॉक्टर कमल किशोर दीक्षित

नागपुर : डॉक्टरों के घरों में ” लडकों की चाहत ” बेशर्म । संतान बेटी तो शर्मनाक अनुपात ५१९ पर : ऐसे हालत में दूसरी संतान बेटी हो तो बेटी का अनुपात ३८ फीसदी नीचे : अगर पहला बच्चा है, तो बेटियों का अनुपात ९०० हो जाता है।

यह पूर्णतः स्थापित तथ्य है कि देशभर में अनेक डॉक्टर्स लड़कों के प्रति लिंग चयन के लाभप्रद, गैरकानूनी एवं अनैतिक व्यवसाय को करने में संलग्न हैं। पर क्या उनके पारिवारिक जीवन में भी यह सोच ( लड़के की चाहत ) का प्रभाव हैं? एक नयी शोध जो की एक अमेरिकन जर्नल “डेमोग्राफी” में शीर्षित “Skewed Sex Ratios in India: Physician Heal Thyself” में इसके संकेत मिले। यह सर्वे ९४६ एकल परिवारों पर किया गया जिनमें १,६२४ बच्चे थे एवं दोनों या कम से कम एक पैरेंट डॉक्टर है। या सन १९८० से १९८५ के बीच नागपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल के छात्र रह चुके हैं। इस सर्वे से निम्न तथ्य सामने आये :-

१. बच्चों में लिंग अनुपात की दर इन परिवारों में १००० लड़कों के मुकाबले केवल ९०७ थी।

२. यह दर राष्ट्रीय औसत (९१४) से कम है।

३. यह दर विदर्भ औसत (९५४) से काफी ज्यादा कम है।

४. अगर परिवार में एक है बच्चा है, तो यह आंकड़ा ९०० पहुँच जाता है।

५. अगर परिवार में दो बच्चे हैं एवं पहला बच्चा लड़की है, तो यह आंकड़ा शर्मनाक ५१९ पर पहुँच गया जिसका अर्थ यह निकलता है की दूसरा बच्चा एक लड़की होने की सम्भावना ३८% से गिर गयी।

यह विश्लेषण जिसे ४ डक्टरों की एक टीम ने नागपुर में किया साफ़ तौर पे दर्शाता है की डॉक्टरों के परिवारों भी यह भारी विषम अनुपात के सामाजिक रोग की गहरी जड़ों से ग्रसित हैं जो भारत में लिंग अनुपात को ठीक करने में एक बड़ी चुनौती पेश करेगा।

शोधकर्ताओं में से एक डॉ अर्चना पटेल का कहना है की यह शोध करने का मकसद पुराणी शोधों के नतीजों से आगे जाना था जो यह दर्शाती हैं की हालाँकि लिंग चयन पहले से हे कई सामाजिक एवं आर्थिक समूहों में देशभर में होता रहा है पर इसका प्रभाव गरीब परिवारों के मुकाबले अमीर परिवारों में ज्यादा है। उनके अनुसार इतने अनुपातहीन आंकड़े बिना किसी मानव हस्तक्षेप के संभव नहीं। यह आंकड़े साफ़ तौर पर ये भी दर्शाते हैं कि डॉक्टर भी समाज के लोगों की मानसिकता पर गहरा प्रभाव डाल रहे हैं।

महाराष्ट्र के स्वास्थ मंत्री सुरेश शेट्टी ने माना है की यह एक गंभीर मामला है और हमने कुछ कड़े कदम उठाये है लेकिन डॉक्टर (सोनोलोजिस्ट )कानून के क्रियान्वयन का विरोध करते है ।

डॉक्टर्स की इस मानसिकता का प्रभाव पूरे देश में गिरते हुए शिशु लिंग अनुपात के रूप में देखा जा सकता है।

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