पांच बेटियों ने उठायी पिता की अर्थी: राजस्थान के बेवर में पहली बार हुई घटना: पिता ने ही रखी थी अपनी अंतिम इच्छा:
इक्कीसवीं सदी में कई मान्यताएं और परंपराएं अटल रही है। कारण चाहे परिस्थितियां हो या कुछ और। लेकिन अब कुछ परंपराओं को बेटियां तोड़ती नजर आ रही है। ताजा घटना के तहत समाज में फैली कुरीतियों को मिटाने की पहल की है राजस्थान में ब्यावर की पांच बेटियों ने। इन बेटियों ने न केवल अपने पिता की अर्थी को उठाया, बल्कि अंतिम संस्कार तक का सारा काम भी खुद ही निपटा दिया। महिलाओं के प्रति और इलाकों के मुकाबले काफी कट्टर माने जाने वाले राजस्थान में इस तरह की घटना किसी अजूबे से कम नहीं हैं। लेकिन इतना तो तय ही है कि इस घटना ने राजस्थान की बदलती तस्वीर पर कुछ और भी बेहतर रंग चढाने शुरू कर दिये हैं।
अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस से पूर्व राजस्थान में ब्यावर की बेटियों ने अनूठी मिसाल कायम की है। अपने पिता की अंतिम इच्छा को पूरी करने के पांच बेटियों ने पिता की अर्थी को कंधा दिया और मुक्तिधाम में हिन्दू रीति के अनुसार पिता की चिता को मुखाग्नि देकर बेटे का फर्ज निभाया।
ब्यावर के गोपालजी मोहल्ला निवासी सेवानिवृत्त रेल्वे कर्मचारी केसूलाल भट्ट (80) का हृदय गति रूकने से निधन हो गया था। भट्ट के कोई पुत्र नहीं होने पर उन्होंने मरने से पूर्व अपनी पुत्रियों को यह फर्ज निभाने की इच्छा जताई थी। पिता की अंतिम इच्छानुसार उनकी पांच बेटियों ने अंतिम संस्कार की रस्म निभाने का जिम्मा उठाया। उनकी पुत्री संपति, संतोष, माया, मंजू व अल्का पिता की अंतिम यात्रा में शामिल हुई और अर्थी को कंधा दिया। हिन्दू सेवा मंडल के मुक्तिधाम में बेटे का फर्ज निभाते हुए इन बेटियों ने पिता की चिता को मुखाग्नि दी। अजमेर श्रीराम मंदिर के महंत शंकरराम ने हिन्दू रीति-रिवाज से अंतिम संस्कार की रस्म पूरी कराई। शहर के बीच से निकली शवयात्रा में महिलाओं का अर्थी को कंधा देना दिनभर चर्चा का विषय रहा।
केसूलाल की पुत्री संतोष ने कहा कि हम पांच बहनों ने अपने पिता को कभी बेटे की कमी महसूस नहीं होने दी। उनकी अंतिम इच्छा को पूरी करने के लिए हमने अंतिम संस्कार की रस्म निभाई। हमने पिता की अर्थी को कंधा दिया और चिता को मुखाग्नि। हालांकि हिन्दू धर्म में महिलाओं का मुक्तिधाम में जाना निषेध माना जाता है, मगर केसूलाल के अंतिम संस्कार की रस्म संपन्न कराने वाले अजमेर के महंत शंकरराम कहते हैं कि पुत्र नहीं होने पर पुत्री ही बेटे की तरह अंतिम संस्कार की रस्म निभा सकती है।