: दिलों का राजा था पीयूष आर दुबे, फरीदाबाद में हुई मौत से सदमे में हैं प्रशंसक : इस अनोखे चातक की चाहतें देश भर में पसरी पड़ी थीं : कई महिलाओं की जिन्दगी में सिर्फ पीयूष ही पीयूष भरा पड़ा था : मेरा इश्क मलंग..बंजारा दिल, मैंने मोहब्बत का मकबरा नहीं देखा … :
कुमार सौवीर
लखनऊ : न जाने कितनी महिलाएं उसके इश्क में बेहाल थीं। उसके एक इशारे पर ही नहीं, बल्कि उसके नाम पर भी वे अपना घर-दुआर छोड़ने तक तैयार थीं। उनमें से अधिकांश ने तो उसे देखा तक नहीं था। उसके प्रति उनकी जो भी वाकफियत थी, वह या तो फोन के माध्यम से थी, या फिर उसके शब्दों और फोटोज पर निर्भर थी। लेकिन बेमिसाल समर्पण और प्रेम। उसकी एक आवाज पर ही वे अपनी जान देने तक पर आमादा थीं। वह भी तब, जबकि उनमें से ज्यादातर को न तो पीयूष नाम का अर्थ पता था, और न ही उसमें दर्ज आर शब्द का मतलब।
सच बात तो यही है कि मैंने अपनी पूरी जिन्दगी में ऐसा एक भी शख्स नहीं देखा है, जिस पर लोग दिल फेंक कर मारते हों। महिलाएं खास तौर पर। कुछ तो ऐसी भी हैं, जो पीयूष के लिए कुछ भी कर बैठने को तैयार रहती हैं। उनके तन-मन में केवल और केवल पीयूष ही पीयूष। ऐसा भी नहीं कि वह कोई फिल्मी हीरो रहा हो। कविताएं और सहज व्यवहार और हल्के-फुल्के अंदाज दिखाती फोटोज। बस्स्स्स। शायद अविवाहित रहे पीयूष आर दुबे का निधन पिछली 8 मई को हो गया। वजह थी दिल या फेफड़े में संक्रमण।
करीब न जाने कितनी महिलाओं की फेसबुक वाल पर केवल उनका नाम ही दर्ज था। लेकिन उन पर हर शब्द, हर हर्फ, हर फोटो और हर मर्म उनके इश्क का ही था। किसी का इश्क उसके बदन को लेकर था, किसी का उसकी आवाज को लेकर था, कोई उसके शब्दों पर दीवानी थी, तो कोई उसकी फोटोज पर जान देती थी। हैरत की बात है कि इन महिलाओं ने अपनी वाल पर अपनी नहीं लगायी, बल्कि या तो पीयूष की छवि थी वहां, या फिर वहां एक खालीपन का सा अहसास है। एक-दूसरे के क्षेत्र, भाषा, रहन-सहन और जलवायु से कोसों दूर पीयूष के ऐसे प्रशंसक-मित्र देश भर में थे। लेकिन भीड़ नहीं, बल्कि चुनिंदा। पीयूष की फालोइंग केवल 31 तक ही सिमटी है। हालांकि फरीदाबाद में रहते थे पीयूष, लेकिन उनके लिखने का अंदाज बिहारी था।
महाराष्ट्र में रहने वाली मेरी एक महिला शुभ्रा देशपाण्डे ने 14 को मुझे फोन करके बताया कि पीयूष की मृत्यु हो गयी है, और वे चाहती हैं कि उनके बारे में कुछ शब्द श्रद्धांजलि स्वरूप लिख दें। इसके दो दिन बाद ही दिल्ली की मेरी एक महिला मित्र अर्चना दुबे ने यही अनुरोध किया। मेरे साथ समस्या यह थी कि बिना किसी शख्स को जाने-समझे में किसी के बारे में क्या लिख सकता हूं। मैं कभी भी पीयूष से नहीं मिला। हां, करीब तीन बरस पहले बोकारो की रहने वाली मित्र डॉ राजदुलारी की एक पोस्ट पर चर्चा के दौरान पीयूष की रचनाओं का जिक्र किया था। उनका कहना था कि वे व्यक्ति नहीं, बल्कि विचार-भाव से प्रभावित थीं।
जाहिर है कि उसके बाद मैंने पीयूष की वाल को टटोलना शुरू किया। सहज प्रेम से जुड़े दुख, हर्ष, आनंद, विछोह, आंसू, और उठापटक जैसे भाव पसरे हुए थे। यह भी हो सकता है कि एक पुरूष होने के नाते मैं पीयूष को अधिक समझने लायक नहीं समझ पाया। लेकिन अचानक जब एकसाथ शुभ्रा और अर्चना ने यह आग्रह किया, तो मैं चौंक पड़ा। डॉ राजदुलारी का अता-पता तक नहीं था। न फोन, न मैसेंजर। वाट्सऐप पर वे रहती नहीं, और फेसबुक लगता है कि उन्होंने आजकल ऑपरेट करना बंद कर रखा है। ऐसे में मैंने पीयूष के मित्रों को टटोलना शुरू कर दिया। लेकिन हैरत की बात थी कि उनमें से अधिकांश ने मेरे मैसेंजर पर एक भी संदेश का कोई भी जवाब नहीं दिया। सिवाय राजस्थान की रहने वाली मित्र डॉ भावना अस्तित्व ने, जिन्होंने केवल हल्की-फुल्की बातें ही बतायीं। मगर वे बताती हैं कि पीयूष एक बेहद संजीदा और समझदार व्यक्ति थे।
हालांकि अधिकांश के लिए पीयूष का इश्क सूफियाना था। पीयूष की मौजूदगी का अहसास उनमें जीवन की हिलोरों की तरह था। भोपाल में पीयूष की एक महिला मित्र ने मुझे बताया कि उन्होंने जब पीयूष की मृत्यु वाली पोस्ट लिखी, तो तीन-चार महिलाओं ने मित्र-प्रस्ताव आ गये। वे बताती हैं कि इन सभी वाल में केवल पीयूष की रचनाएं ही भरी पड़ी थीं। उन से मैसेंजर पर उन्होंने जब इस बारे में चर्चा शुरू की थी, तो उन महिलाओं का कहना था कि वे केवल पीयूष को प्यार ही नहीं करतीं, बल्कि पीयूष उनकी सम्पूर्ण दुनिया थे। पीयूष की एक कविता काफी आकर्षक है:- मैंने मोहब्बत का मकबरा नहीं देखा …
हैरत की बात है कि पीयूष के पास कोई बड़ी मित्र-मंडली नहीं थी। लेकिन उसमें महिलाओं की सक्रियता बेहिसाब थी। पीयूष की मृत्यु के बाद जो पीड़ा का प्रदर्शन लोगों ने किया, उनमें महिलाएं आगे थीं। जिन भी महिलाओं से मैंने बातचीत की, उन्होंने शुरूआत में तो यह कुबूल किया कि वे मैसेंजर पर पीयूष से बात करती थीं। लेकिन उन सबने आखिरकार यह भी स्वीकारा कि उनकी बातचीत फोन पर अक्सर होती रहती थी। कई महिलाओं ने यह भी बताया कि वे अपना फोन नम्बर किसी को भी नहीं देती हैं, लेकिन पीयूष को खुद दिया था अपना नम्बर। हालांकि यह सभी महिलाएं इस बात से इनकार करती हैं कि उन्हें पीयूष से इश्क था, मगर वह यह नहीं बता पायीं कि तब वे लम्बे फोन कॉल्स पर उससे किस विषय पर बातचीत करती रहती थीं। पीयूष ने अपनी वाल पर स्लोगन दर्ज किया है:- मेरा इश्क मलंग..बंजारा दिल।
फरीदाबाद का रहने वाला था पीयूष। उसके ज्यादा उसके बारे में कोई भी जानकारी नहीं। सिवाय इसके कि उसकी आखिरी पोस्ट पर इश्क के ठुकराने जैसा भाव था।
” तुमने मेरा हाल तक नहीं पुछा “
मैं कई दिन से बीमार था
और तुमने मेरा हाल तक नहीं पुछा
बहुत ही बेबस, बहुत लाचार था
और तुमने मेरा हाल तक नहीं पुछा
असीम पीड़ा, बदन में दर्द लिए बेचैनी
मुझे तेज बुखार था
और तुमने मेरा हाल तक नहीं पुछा
क्योंकि तुम मग्न थी, थी विचर रही बहारों में
मैं कराहता हुआ, था कैद उन दीवारों में
बस तुम्हारे , एक फोन का इंतजार था
और तुमने मेरा हाल तक नहीं पुछा
शायद तुम्हें मेरी खबर नहीं होगी
या कहूँ , मुझ पर नजर नहीं होगी
शायद की तुम भी , व्यस्त होगी कामों में
या तुम्हें, मेरी फिकर नहीं होगी
मगर मैं उस पल भी बेकरार था
और तुमने मेरा हाल तक नहीं पुछा
एक अन्य लाइनें:-
खूबसूरत तो बेहिसाब हो तुम !
हाँ सच है की लाजवाब हो तुम ! !
एक उम्र गुज़ारी है , इन आँखों ने इंतजार में !
हाँ वही , वही एक ख्वाब हो तुम ! !
कुछ अन्य:-
तुम्हारे बाद , जीवन का , गुजारा हो ना पायेगा ।
अब तो , इश्क भी हमसे , दोबारा हो ना पायेगा ।।
कैसे ! बाँट लूँ बिस्तर , तुम्हारी ओर का बोलो ।
तुम्हे ही चाहता है दिल , आवारा हो ना पायेगा ।।
फिर यह भी:-
तू मेरी फिक्र में हर पल , तू मेरे जिक्र में हर-सू
तू मेरे हिज्र में तड़पे , मैं तेरे हिज्र में तड़पू
चढ़ा , प्रीत-रंग , मेरे अंग-अंग
मैं प्रेम रंग में रंग गई रे
तू मुझ सा दिखने लगा सजन
मैं तुझ सी दिखने लग गई रे
एक अन्य लाइनें:-
सूखी हुई एक शाम की टहनी से !
बिखरे जो तेरी याद के पत्ते गिर कर !
फिर जमीं पर दिल के कुछ बूंदें टपकी !
बेवज़ह मेरी आँख से आँसू बनकर ! !
हसरतों पर चर्चा:-
थक गये हैं ख़्वाब को आराम देना चाहिए !
हसरतों को शीघ्र ही विराम देना चाहिए ! !
कब तलक गुमनामियों के तम में भटकेगी उमर !
इस सफर , इस जिंदगी को नाम देना चाहिए ! !