: मांगों की तोप का लाइसेंस लेने गये थे, चाकू से संतुष्ट हो गये पीसीएस अफसर : अमिताभ ठाकुर को देखिये, कमाल की तलवारबाजी की है बाजीराव मस्तानी की तरह : उसके संवर्ग का एक भी सदस्य उसके साथ खुल कर नहीं आया, लेकिन मुलायम सिंह यादव तक को पानी पिला दिया अमिताभ ने :
कुमार सौवीर
लखनऊ : यूपी के पीसीएस अफसरों के कुछ सदस्यों को लखनऊ जिलाधिकारी कार्यालय की भरी कोर्ट में वकीलों के झुण्ड ने जमकर पीट दिया। इनमें से एक अपर नगर मैजिस्ट्रेट और तीन अन्य अपर जिलाधिकारी स्तर के अधिकारी भी शामिल थे। हंगामा खड़ा हो गया। इस हादसे को लेकर लेखपाल संघ, राजस्व निरीक्षक संघ, कलेक्ट्रेट कर्मचारी संघ समेत अनेक कर्मचारी संघों ने हड़ताल कर दी। चूंकि यह मामला सीधे पीसीएस अफसरों पर हमले का था, इसलिए पीसीएस अफसरों की एसोसियेशन ने इस मामले को अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बनाया और इस मामले पर हड़ताल का फैसला कर लिया। तय किया गया कि सोमवार 19 दिसम्बर से प्रदेश भर के पीसीएस अफसर अनिश्चितकालीन कलमबंद हड़ताल शुरू कर देंगे।
लेकिन इस फैसले के चंद घंटों बाद ही इन अफसरों की एसोसियेशन ने इस हड़ताल को वापस ले लिया। अपनी सारी मांगों को करीने से बाकायदा तह कर किनारे रख कर वे काम पर लौट आये। हड़ताल वापसी की वहज यह बतायी गयी कि प्रमुख गृह सचिव डीके पाण्डा ने इन अफसरों की एसोसियेशन के पदाधिकारियों को अपने कार्यालय में बुलाया कि हड़ताल खत्म करने की अपील की। आधार यह दिया गया कि कलेक्ट्रेट क्षेत्र के क्षेत्राधिकारी पुलिस और सम्बन्धित कोतवाल को तत्काल स्थानांतरित कर दिया गया है। उधर बरेली में एक कोटेदार की बेईमानी पर जब वहां की एसडीएम ने छापा मारा तो उससे नाराज यूपी के एक मंत्री ने उस एसडीएम को ही सस्पेंड करा दिया। बहरहाल, डीके पाण्डा ने इस एसडीएम का निलम्बन रद कराने, और कलेक्ट्रेट हादसे में दोषी वकीलों को गिरफ्तार किये जाने का वायदा कर पीसीएस अफसरों की हड़ताल खत्म करा दी।
हैरत की बात है। तीन एडीएम समेत चार पीसीएस अफसरों की सरेआम और भरी कोर्ट में पिटाई हो गयी, और हल्का-फुल्का लॉली-पॉप पाकर यह पीसीएस अफसर संतुष्ट हो गये। कमाल है। गये थे कि मांगों की तोप का लाइसेंस लेने गये थे, कि लखनऊ की एसएसपी मंजिल सैनी को सस्पेंड कराये बिना शांत नहीं होंगे, लेकिन चाकू-ढेला मात्र से संतुष्ट हो गये पीसीएस अफसर और उनकी पूरी एसोसियेशन। कहने की जरूरत नहीं कि पीसीएस अफसरों की एसोसियेशन में 11 सौ से ज्यादा सदस्य हैं। इतना ही नहीं, इस हादसे के बाद कई कर्मचारी संघों ने भी विरोध में हड़ताल का ऐलान कर दिया था। लेकिन गृह विभाग के अफसरों ने उन्हें पुचकारा, और यह पीसीएस अफसर संतुष्ट हो गये। जबकि इस बैठक में गृह सचिव मणिप्रसाद मिश्र भी मौजूद थे, जो मूलत: पीसीएस संवर्ग से हैं। और तो और, लखनऊ के जिलाधिकारी सत्येंद्र सिंह यादव का मूल संवर्ग पीसीएस ही है। लेकिन इस हादसे के बाद अपनी ही मुंह खाकर लौट आये पीसीएस एसोसियेशन के पदाधिकारी। उधर दूसरे पक्ष यानी वकीलों की ओर से लखनऊ के सारे वकील अब दो दिन की हड़ताल पर चले गये हैं।
अब जरा अमिताभ ठाकुर को देखिये। डायरेक्ट आईपीएस हैं अमिताभ। बसपा के अफसरों की करतूतों और उनके अपमानजनक व्यवहार से क्षुब्ध होकर अमिताभ ने विरोध का झंडा फहरा दिया। लेकिन आईपीएस एसोसियेशन ने अमिताभ के मसले से पल्ला झाड़ लिया। किसी भी आईपीएस अफसर की हिम्मत नहीं पड़ी कि वह अमिताभ के समर्थन में खड़ा हो सके या बोल भी पाये। लेकिन कमाल यह देखिये कि बिलकुल अकेले पड़ चुके अमिताभ ने दुन्दुभि बजा दी और सीधे यूपी सरकार से ही टक्कर कर बैठा। वह तलवारबाजी की अमिताभ ठाकुर ने बाजीराव मस्तानी फेल हो जाए। नितान्त अकेले अमिताभ ठाकुर ने समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव तक को पानी पिला दिया। नतीजा यह हुआ कि बरसों से लटका हुआ अमिताभ का मामला निपटने लगा और पहले चरण के तहत सरकार बाध्य हो गयी कि अमिताभ को सीधे आईजी बनाया जाए।
अमिताभ ठाकुर का संघर्ष अभी जारी है। उसके समर्थन में है उसकी पत्नी नूतन ठाकुर, जिसने अपने पति की लड़ाई के लिए अपना पल्लू कस लिया, और खुद एलएलबी करके सीधे अदालत वाला मोर्चा पर डट गयी। हां, पत्रकार समुदाय के लोगों से अमिताभ को जरूर सहानुभूति रही। अमिताभ को परास्त कराने के लिए सतर्कता विभाग और पुलिस के बड़े अफसर भी सदल-बल जुटे रहे। कई बार अमिताभ को परेशान करने के लिए बवाल खड़ा किया गया। एक बार तो सीधे पुलिस ने अमिताभ के घर छापा तक मार दिया। लेकिन जीत हमेशा अमिताभ की ही रही।
चाहे कुछ भी हो, अमिताभ ने इतना तो साबित कर ही दिया कि किसी भी जीत का आधार झुण्ड या तादात नहीं, बल्कि इसके लिए हौसलों की जरूरत पड़ती है।
क्यों एडीएम साहब, आपकी क्या राय है ?
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