खुदा जाने क्या बोले लखनऊ के डीएम। लत्तेरी की, धत्तेरी की शुरू

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: हिन्दुस्तान के रिपोर्टर ने फर्जी खबर लिखी, कुंकुआया जागरण वाला : पत्रकारों में कुकुर-झौंझौं देखना हो तो फौरन लखनऊ पधारिये : मस्तराम के चौंसठिया किताब की तरह बिक रही हैं लखनऊ में खबरें :

कुमार सौवीर

लखनऊ : राजधानी में पत्रकारिता नहीं, अब खबरों को लेकर जूतम-पैजार चल रही है। धकाधक फर्जी खबरें फ्लोट की जा रही हैं, उससे त्रस्त दूसरे पत्रकार छटपटा कर नये-नये तर्क, गवाह और हालात पेश कर रहे हैं। जिले के अफसरों को तेल लगाने के लिए ऊल-जुलूल खबरों को गढ़कर उसे पहले पन्ने  पर शाया किया जा रहा है, बाकी पत्रकार उस पत्रकार कुल-कलंक के पीछे तेल-पानी लेकर जुट गये हैं। उधर नाराज पत्रकारों का सरकारी अफसरों पर भी खूब आक्रोश बरपा रहा है।

ताजा मामला है मस्तेमऊ के जंगल में चीतलों का। यहां कोई एक हफ्ता पहले एक पेड़ की ऊंची डाल में फंसी चीतल की एक लाश बरामद हो गयी थी। अगले दिन चीतलों पर सहज खबरें सभी अखबारों में छप गयीं। लेकिन हिन्दुस्तान के कतिपय पत्रकारों के पास चूंकि कोई खास कामधाम होता नहीं है, इसलिए उनका दिमाग फर्जी खबरें गढ़ने में जुटा रहता है। बताते हैं कि तीन दिन पहले ऐसे ही हिन्दुस्तान के एक वरिष्ठ संवाददाता को अपने दोपहर के विश्राम के बाद किसी खबर की जरूरत महसूस हुई तो उसने आनन-फानन जिलाधिकारी से सम्पर्क किया होगा।

नतीजा यह कि अगले दिन ही हिन्दुस्ता्न के पहले पन्ने। पर यह खबर छप गयी कि चीतलों का शिकार के मामले में डीएम ने जांच के आदेश दिये। इसमें में जिस कमेटी का जिक्र किया गया, वह एक निहायत बेवकूफी, बेहूदगी और सिर्फ आपत्तिजनक तर्क और उसकी प्रस्तुति की गयी। खबर के मुताबिक एक नये-नवेले लौंड़े अफसर को जिलाधिकारी राजशेखर ने इस कमेटी में अध्यक्ष बना दिया और जिले के चार वरिष्ठतम अधिकारियों को उस  कमेटी का सदस्य बना दिया। इस खबर के मुताबिक जो कमेटी बनी, उसमें अधिकारियों की वरिष्ठता का तनिक भी ध्यान नहीं दिया गया।

इससे भी आश्चर्यजनक बात तो यह हुई कि डीएम राजशेखर के आदेश से जारी जांच कमेटी गठित करने की यह खबर केवल हिन्दुस्तान के इसी वरिष्ठ संवाददाता को ही दी गयी। जबकि अखबारों और समाचार संस्थानों को इसकी भनक तक नहीं दी गयी। ऐसा क्यों हुआ, यह आश्चर्यजनक है, या फिर अपने आप में एक गम्भीर जांच का विषय बन गया है।

बहरहाल, हिन्दुस्तान में कल छपी इस खबर के बाद दैनिक जागरण का पत्रकार बुरी तरह बौखला गया। उसने हिन्दुस्तान के इस वरिष्ठ संवाददाता की खबर से निपटने के लिए अब नयी रणनीति बनायी और आज 21 अप्रैल-16 के अंक में साबित कर दिया कि मस्तेमऊ जंगल में चीतल का शिकार नहीं हुआ था, बल्कि किसी बाघ जैसे किसी जंगली जानवर ने उसका शिकार किया था। हैरत की बात है कि जागरण के रिपोर्टर ने अपनी बात की पुष्टि के लिए सन-12 को नाइट-विजन कैमरे के फुटेज का सहारा लिया। गजब है

कुछ भी हो, जागरण का रिपोर्टर इस खबर पर इतना भड़का था कि उसने हिन्दुस्तान की खबर के मुताबिक डीएम द्वारा गठित तथाकथित जांच-कमेटी के गठन का संज्ञान ही नहीं लिया और जिलाधिकारी राजशेखर से बात तक करने की जरूरत ही नहीं समझी। उसने इस खबर में लखनऊ की डीएफओ श्रद्धा यादव से बातचीत की और साबित कर दिया कि चीतलों का शिकार मानव द्वारा नहीं किया गया। रिपोर्टर ने अपनी रिपोर्ट में चीतलों के शिकार की किसी भी शंका को निर्मूल साबित कर दी और साफ कह दिया कि अगर कोई शिकारी यहां आता तो वह अपना शिकार लेकर चला जाता, उसे पेड़ पर टांग कर न ले जाता। अब असल सवाल तो यह है कि इसमें साफ झूठ किसने बोला? लखनऊ के जिलाधिकारी राजशेखर ने या फिर डीएफओ श्रद्धा यादव ने? असल खबर किसने लिखी? हिन्दुस्तान के वरिष्ठ संवाददाता ने या फिर दैनिक जागरण के संवाददाता?

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