जेब ढीली कर, तेरी मौत टालने को मृत्‍युंजय पाठ करूंगा

मेरा कोना

: मृत्‍युंजय मंत्र तुम्‍हारे मन को त्राण, और मृत्‍यु से साक्षात्‍कार करता है : ताली मार कर मच्‍छर खूब मारते हो, पर अपनी मौत को सोच कर फटने लगती है : ककड़ी की बेल ही तो डीएनए है, और तुम पकी ककड़ी। अब टूटना शुरू करो : मेरा इकलौता पारिवारिक दायित्‍व 13 अक्‍टूबर को सम्‍पन्‍न होगा, बेटी का विवाह :

कुमार सौवीर

लखनऊ : ओम् त्रयम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् !!

यह है मृत्‍युंजय मंत्र। अकाल-मृत्‍यु से प्राण-रक्षा के लिए इस मंत्र के जाप का प्राविधान है, कुछ ऐसी ही कहानियां सुनाते हैं हमारे समाज के वे लोग, जो तथाकथित तौर पर अपने का ज्ञानी और पंडित बनने का दावा करते हैं। जजमान को यह बताया जाता है कि उसकी आयु अब खत्‍म होने को है। अकाल मृत्‍यु हो सकती है तुम्‍हारी। कोई भयावह दुर्घटना हो सकती है, कोई सांप-सपेरा सूंघ कर तुम्‍हारा तियां-पांचा कर सकता है। कोई मुठकरनी कर सकता है, तुम्‍हारा काम लग सकता है।

निदान, चलो बेटा सतर्क हो जाओ। मैं तुम्‍हारी पीड़ा समझ चुका। मर्ज की नस पकड़ में आ गयी है, तो उसे गर्दनियां देकर उसका टेंटुआ दबोच दूंगा। मृत्‍युंजय मंत्र का सवा लाख जाप करना होगा। इसमें कुछ हफ्ते लग सकते हैं, कई लोग जुटाये जाएंगे, और उसके बाद तुम बिलकुल चकाचक हो जाओगे। बस, अपनी जेब-टेंट खाली करो। मकसद होता है अनिष्‍ट की आशंकाओं से ग्रसित और भयभीत लोगों का “काम” लगा कर उनका भयादोहन किया जाए। दो-टूक बोले तो:- दो जून की रोटी।

खैर, यहां मेरा आशय पंडित-ज्ञानी बन कर लोगों को डरा कर रकम झटकना नहीं है। बल्कि मैं तो इसके माध्‍यम से केवल दो बातें स्‍पष्‍ट करना चाहता हूं। पहली तो यह कि मेरे हिसाब से मंत्र का जाप मन के त्राण यानी शांति प्राप्‍त करने के लिए होता है। और यह तब ही हो सकता है, जब हम मंत्र को रटने के बजाय उसे ठीक से समझने की सतत कोशिश करते रहें। मंत्र के भाव का दर्शन करने के माध्‍यम से ही मंत्र और मंत्रोच्‍चार करने वाले का त्राण यानी शांति मुमकिन है। आप उसे योग भी कह सकते हैं, या फिर आध्‍यात्‍म भी। जिसमें प्रदर्शनी लगा कर चिल्‍ल-पों करना नहीं, बल्कि अपने भीतर झांकना एकमात्र माध्‍यम, दर्शन और लक्ष्‍य होता है।

तो इसके लिए पहले यह समझ लिया जाए कि यह मृत्‍युंजय मंत्र आखिर है क्‍या। सचाई तो यह है कि यह मंत्र किसी की भी प्राण-रक्षा नहीं करता। वह किसी को मौत से बचाने का गंदा-धंधा नहीं करता। जन्‍म और मृत्‍यु तो प्रकृति का अकाट्य और अनिवार्य स्‍वाभाविक चरित्र है। जो जन्‍मा है, वह मरेगा ही। ताली मार-मार कर मच्‍छर तो खूब मारते हो, लेकिन अपनी मौत को सोच कर हृदय की त्‍वचा फटने लगती है। अरे, बचपन को बूढा ही होगा। तो कोई भी मंत्र आपको मौत से बचाने की औकात नहीं रखता, बल्कि वह तो साक्षात मृत्‍यु से साक्षात्‍कार कराता है। वह मृत्‍यु, जो आपको भविष्‍य के हर अगले कदम पर आपके लक्ष्‍य और उद्देश्‍य  हम उस त्रिनेत्रधारी भगवान शिव की आराधना करते है जो अपनी शक्ति से इस संसार का पालन-पोषण करते हैं, उनसे हम प्रार्थना करते है कि वे हमें इस जन्म -मृत्यु के बंधन से मुक्त कर दे और हमें मोक्ष प्रदान करें। जिस प्रकार से एक ककड़ी अपनी बेल से पक जाने के पश्चात् स्वतः की आज़ाद होकर जमीन पर गिर जाती है, उसी प्रकार हमें भी इस बेल रुपी सांसारिक जीवन से जन्म-मृत्यु के सभी बन्धनों से मुक्ति प्रदान कर मोक्ष प्रदान करें।

तो दोस्‍तों, दूसरी बात यह कि मैं अब इस महा मृत्‍युंजय मंत्र को जपने के बजाय उसे हमेशा हृदयंगम करने की प्रक्रिया में रहता हूं। उसके संदेश, उसके दर्शन और उसकी व्‍याख्‍याएं को समझने की कोशिश के तहत अपने जीवन और उसके दायित्‍वों पर काम कर रहा हूं। इसमें सबसे पहली कोशिश तो अपने दायित्‍वों को सकुशल निपटाना है। और उसमें भी सबसे निजी और पारिवारिक दायित्‍वों को पूरा करना है। तो अब मेरी इकलौता पारिवारिक दायित्‍व बचा है मेरी बेटी। इसी 13 अक्‍टूबर को उसका विवाह तय हुआ है।

और उसके बाद मेरे पारिवारिक दायित्‍व न्‍यूनतम होते जाएंगे, जबकि सामाजिक दायित्‍व उत्‍तरोत्‍तर बढ़ते जाएंगे। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि सार्वजनिक-सामाजिक दायित्‍वों के चलते आसाराम बापू, स्‍वामी चिन्‍मयानन्‍द या रामरहीम की लीक-डगर लपक लूंगा। हा हा हा।

खैर, 13 अक्‍टूबर के बाद से मेरी यह जीवन-ककड़ी अपनी बेल से पूरी तरह टूट जाएगी। बीज बिखर जाएंगे, लेकिन किसी न किसी के मनोमस्तिष्‍क में उसके अंकुरण हो जाएगा, अवश्‍य। और इस तरह मेरा वैचारिक पुनर्जन्‍म होता रहेगा। जैसे लाखों-करोड़ों जैसे आदिकाल से होता रहा है, और जैसे भविष्‍य के अनन्‍त काल तक होता रहेगा। कोई बात नहीं कि मेरे पास रानियां नहीं हैं, लेकिन इस सत्‍य को कोई कैसे झुठला सकता है कि मैं ही आदि था और मैं ही अनन्‍त रहूंगा। अहम् ब्रह्मास्मि।

ओम शांति: ओम शांति: ओम शांति:

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