भाजपा सरकार में चौपतिया-पत्रकारों की पौ-बारह

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: जनसंदेश टाइम्‍स के समूह सम्‍पादक के मामले में शासन व प्रशासन लचर : वीकऐंड टाइम्‍स नामक चौपतिया अखबार-मालिक की फर्जी रिपोर्ट पर सचिव-पुलिस भागीरथ बने : प्रमुख सचिव ने जम कर हड़काया था संजय शर्मा को, कि मुझे मामले की पूरी जानकारी है :

कुमार सौवीर

लखनऊ : हैरत की बात है कि भाजपा सरकार में अफसरों की प्राथमिकताएं बदली हुई लग रही हैं। गम्‍भीर और देश में अपनी अभूतपूर्व छवि रखने वाले वरिष्‍ठ पत्रकारों के मामलों में तो अफसरों और पुलिसवालों का नजरिया उपेक्षापूर्ण रहता है, लेकिन अभी अगर किसी चौपतिया अखबार के किसी चिरकुट जैसे शख्‍स का कोई फर्जी मामला हो तो पुलिस सिर के बल खड़ी हो जाती है। आनन-फानन मुकदमा दर्ज करेगी, और थाने और एसएसपी से लेकर प्रमुख सचिव जैसे अफसर तक उसकी ड्योढ़ी पर सिर झुकाने पहुंच जाएंगे।

अभी साल भर पहले गोमती नगर से निकलने वाले चौपतिया अखबार वीकएंड टाइम्स के मालिक संजय शर्मा के छापाखाना के बकैत-गुण्‍डे ने अपने पड़ोस में खुले रेस्टोरेंट से मुफ्त माल का खिलाने का दबाव बनाया था। रेस्‍टोरेंट के मालिक ने जब ऐसा करने से मना कर दिया, तो उस रेस्टोरेंट के मालिक पर न केवल हमला किया था बल्कि उसे मारपीट कर भी किया गया था या मारपीट सरेआम हुई थी।

आपको बता दें कि वीकएंड टाइम्‍स और 4 पीएम जैसे चौपतिया अखबार बिकने के लिए नहीं, बल्कि फ्री में नेताओं, अफसरों और पुलिसवालों के दफ्त्‍र और घर तक पहुंचाने होते हैं, ताकि अफसरों और नेताओं तक धमक बन जाए। इसके लिए इन अखबारों के मालिक संजय शर्मा ने अखबार को पहुंचाने की व्‍यवस्‍था करा रखी है। कहने की जरूरत नहीं कि इन अखबारों के नाम पर संजय शर्मा का असल धंधा दीगर ही है।

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पत्रकार पत्रकारिता

बहरहाल, उस घटना के तत्‍काल बाद  संजय शर्मा के गुंडों की इस करतूत की माफी मांगने के बजाय कुछ पत्रकार भी एकजुट हो गए। हालांकि बाद में इन पत्रकारों को जब संजय शर्मा और उनके लोगों की करतूत का एहसास हुआ तो एक-एक कर छंटने। लेकिन तब तक संजय शर्मा ने इस मामले को अपने पक्ष में भुना ही डाला। उस रेस्टोरेंट के मालिक और उसके कर्मचारियों पर संगीन अपराध की धाराओं से एकएफआईआर दर्ज करायी गयी। संजय के घर लखनऊ का एसएसपी, एसपी सिटी, सीओ और इंस्‍पेक्‍टर तक अपने-अपने सिर नवाने पहुंच गये। इतना ही नहीं, सूचना विभाग के प्रमुख सचिव अविनाश अवस्थी भी इस चौपतिया अखबार के दफ्तर पहुंच गए और अपने उस घटना पर अपनी शोक संवेदनाएं व्यक्त कर आये।

लेकिन देश के ख्‍यातिनाम संपादक और प्रख्यात कवि-चिंतक सुभाष राय के घर पुलिसवालों की गुण्‍डागर्दी पर पुलिसवालों ने लगातार दो दिन तक पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं की। और तो और, प्रमुख सचिव सूचना अवनीश अवस्थी तक ने भी उस गुंडे इंस्पेक्टर की करतूतों से प्रताड़ित सुभाष राय और उनके परिवार पर मलहम लगाने की जरूरत नहीं समझी। हालांकि सुभाष राय बताते हैं कि अवनीश अवस्‍थी ने इस मामले में अफसरों को निर्देशित किया था।

कुछ भी हो, इन्हीं दोनों घटनाओं से साफ समझा जा सकता है कि सरकार और उसके नौकरशाहों की नजर में गंभीर पत्रकारों और चौपटिया घोटालेबाज पत्रकारों के प्रति क्या नजरिया है।

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बड़ा दारोगा

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