: योग से अब कॉमेडी पर आमादा हैं नव-बनिया बाबा रामदेव : विनय-पिटक तक की खिल्ली उड़ा रहे हैं योग-व्यवसायी बाबा और नेपाली बालकृष्ण : धन्य है, जो मान लिया कि आयुर्वेद न तो साइंटिफिक है और न ही ऑथेंटिक :
श्वेतपत्र संवाददाता
लखनऊ : तो सबसे पहले नरेंद्र तिवारी का कमेंट पढ़ लीजिए: – पतंजलि नमक का पैकेट कहता है कि ये बना है 250 हजार साल पुरानी हिमालय की चट्टान से। और एक्सपायरी है 2018 में। मतलब यह कि बाबा बिल्कुल टाइम पे खोद लाए नही तो हिमालय पर ही एक्सपायर हो जाता।
जी हां, योग और आयुर्वेद को मजाक और खिल्ली का विषय बनाने पर आमादा दिख रहे हैं बाबा रामदेव और उनके जोड़ीदार नेपाली बालकृष्ण। ऐसी-ऐसी लन्तरानियां फैला रहे हैं कि भिषगाचार्यों का दिमाग ही भन्ना जाए। सच बात तो यह है कि न उन्हें चरक की जानकारी है, न सुश्रुत की, और न ही धन्वन्तरि की। आधुनिक जगत में आयुर्वेद को हास्य का विषय बनाने में अपना महान योगदान देने वाले रामदेव बाबा और बालकृष्ण को अगर आप सटीक तरीके से समझना चाहते हैं तो सीधे दिव्यरंजन पाठक से सम्पर्क कीजिए। नरेंद्र तिवारी और दिव्यरंजन पाठक ने इन दोनों की असलियत का भण्डाफोड़ करने का अभियान छेड़ दिया है।
दिव्यरंजन ने गत 4 अगस्त-17 के हिन्दुस्तान अखबार के अन्तिम पृष्ठ पर पतंजलि वाले आयुर्वेद के महान् ऋषि के कारनामों के विज्ञापन का पोस्टमॉर्टम कर दिया है। दिव्यरंजन कहते हैं कि हास्य व्यंग्य के लिए इस कृति को साहित्य का नोबल पुरस्कार तो दिया ही जाना चाहिए । मोदी जी के 142.24 सेमी. के सीना की लंतरानियाँ भी इनकी लंतरानियों के आगे फीकी पड़ी जाती है ।
स्वदेशी व भारतीय भाषाओं के एकमात्र ठेकेदार रिसर्च, पतंजलि रिसर्च इंस्टीट्यूट, साइंटिफिक, आथेंटिक, हर्बल, इन्साइक्लोपीडिया जैसे ‘संस्कृत’ शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं । वैसे संस्कृत की 2048 (कण्डवादि गण सहित ) धातु और अनगिनत प्रत्ययों व उपसर्गों द्वारा इन शब्दों को संस्कृत का सिद्ध किया जा सकता है ।
रिसर्च में योगदान देखिए – तीसरी पंक्ति में लिखते हैं कि “आयुर्वेद को साइंटिफिक और ऑथेंटिक रूप दे रहे हैं ।“ धन्य है, आप ने आखिर मान ही लिया कि आयुर्वेद न तो साइंटिफिक है और न ही ऑथेंटिक । इसे हम आप की ईमानदारी माने या मूर्खता ?
अगला पैरा है हर्वल इंसाइक्लोपीडिया में इन का योगदान । सो इन्होंने “विश्व में पहली बार चार लाख से अधिक पेड़-पौधों और वनस्पतियों पर खोज कर के उनमें से साठ हजार से अधिक ऐसे पेड़ पौधों और वनस्पतियों की खोज की है जिनमें औषधीय गुण विद्यमान हैं ।“
पहले एक कहानी कहता हूँ । विनय पिटक में जीवक की कथा है कि तक्षशिला में जब वो वैद्य शास्त्र पढ़ते पढ़ते थक गया तो उसने अपने आचार्य से कहा कि ये तो खत्म होने को ही नहीं आता । कब तक पढ़ूँ ? आचार्य ने एक कुदाल दे कर कहा – तक्षशिला के चारों ओर योजन भर के क्षेत्र में घूमो और वे सभी वनस्पतियाँ ले आओ जिनका औषधीय प्रयोग न होता हो । जीवक खाली हाथ वापस आया और गुरु से बोला – एक भी ऐसी वनस्पति नहीं जो औषधि में प्रयोग न होती हो ।
उन के ही उत्तराधिकारी ये महान् ऋषि चार लाख पौधों में मात्र साठ हजार को औषधीयगुणयुक्त बताते हैं, वो भी शोध के बाद ।
आप को गणित आती है, मसलन जोड़ घटाना गुणा भाग ।
माना एक पौधे पर शोध करने में एक दिन लगता है तो चार लाख पौधों पर शोध करने में लगे चार लाख दिन । एक साल में 365 दिन होते है सो ये हुए 1095.890410958904 वर्ष । मान लें 1096 साल । गुरुकुल में बालकृष्ण जी 25 वर्ष तक (ब्रह्मचर्य आश्रम के अनुसार) पढ़े होंगे सो 1096+25 अर्थात् मात्र 1121 वर्ष के होंगे ही । चूँकि वे ऋषि हैं अतः मैंने एक पौधे पर शोध हेतु इनको एक दिन दिया है । मामूली मानव होता तो मैं कम से कम एक साल का समय तो देता उसे । अब ऋषि होता है मानव मेधा का उच्चतम स्तर सो एक दिन में एक पौधे पर शोध कर लिए होंगे वो । आप को ये ऋषि का अपमान लगे तो चलिए तो मैं एक दिन में दस पौधे कर देता हूँ । तो भी 109 साल तो हुए ही ।109+25 यानी 134 वर्ष के तो हैं ही हमारे ऋषिवर ।
अब इन दो पैराग्राफ के बाद तीसरे पैरा पर तो अविश्वास का प्रश्न ही नहीं कि वे अप्रतिम मेधा व महान् चरित्र के स्वामी हैं ।
संस्कृत भाषा पढ़े इन ऋषि के विज्ञापन में महान् को महान, पुरुषार्थ को पुरूषार्थ लिखा है । ऐसी महान् विभूति को उन्ही के द्वारा प्रयुक्त भाषा में मैनी हैप्पी रिटर्नस आफ द डे एंड हैप्पी बर्थ डे की वार्म विशेज़ ।
प्राकृतिकवादी प्रदीप दीक्षित का कहना है कि जहां भी जरूरत होती है, कुदरत ने आसानी से नि-शुल्क सुविधाएं मानव ही नहीं, बल्कि जगत के चराचर को उपलब्ध कराया है।