हत्यारों को सजा हुई, पर किसने करायी केपी सिंह की हत्या (2)

सक्सेस सांग

सुस्त न्याय व्यवस्‍था की ताजा नजीर है केपी सिंह हत्याकांड का फैसला

: पत्नी सिंह ने पूरी लड़ाई अकेले दम पर आखिरी सांस तक लड़ी : आज डीएम बन चुकी है तब रही दुधमुंही बच्ची  :

लखनऊ: ( गतांक से आगे) केपी सिंह एक होनहार और कर्मठ पुलिस अधिकारी थे। 12/13 मार्च 1982 की वो काली रात जब प्रांतीय पुलिस सेवा के होनहार अधिकारी केपी सिंह अपने घर से निकले तो उन्हें ये नहीं पता था कि, वो अपनी पत्नी और दुधमुंही बच्चियों का मुंह दुबारा नहीं देख पायेंगे । उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले का कटरा बाज़ार जो मर्यादा पुरुषोतम राम की नगरी अयोध्या से चंद किलोमीटर की दूरी पर है वहां उन्ही के पी सिंह के साथियों ने अपने कर्म और धर्म को भुला कर मर्यादा को ऐसा तार तार किया जिसकी बानगी कम ही देखने में मिलती है। गोंडा पुलिस को सूचना मिली कि कुछ बदमाश कटरा बाज़ार में किसी बड़ी वारदात को अंजाम देने के लिए जमा हुए है। मुखबीर की सूचना पर सक्रिय हुई गोंडा पुलिस का नेतृत्व जांबाज डिप्टी एसपी के पी सिंह कर रहे थे, कई थानों की पुलिस भी इस मुठभेड़ को अंजाम देने के लिए कटरा बाज़ार की तरफ कूच कर गई थी। एस पी सिंह को तब तक शायद ये नहीं पता था की उनके ही विभाग के कुछ अधिकारी रंजिश वश उन्हें मौत के मुंह में ढकेल रहे थे, स्थानीय पुलिस ने दो परिवारों की रंजिश का फ़ायदा उठाकर अपना हित साध लिया था । केपी सिंह जब कटरा बाज़ार के समीप माधवपुर गाँव पहुंचे थे, तब वहा ब्रह्मभोज चल रहा था, केपी सिंह यानी कृष्ण प्रताप सिंह की सूचना गलत साबित हुई थी जो उन्हें उनके ही मातहतो ने दी थी, उनके मातहतो ने साज़िश रची थी, केपी सिंह को ख़त्म करने की जिसमें वो सफल भी हुए।

स्थानीय पुलिस में जंगल कौडिया थाने के उपनिरीक्षक आरबी सरोज केपी सिंह से विभागीय रंजिश रखता था, विभागीय जांच में केपी सिंह ने आरबी सरोज के खिलाफ कई गंभीर आरोप पाए थे, इसी जांच और रिपोर्ट के आधार पर आरबी सरोज का तबादला हुआ था तभी से केपी सिंह से उपनिरीक्षक आर बी सरोज रंजिश रखता था, प्रत्यक्षदर्शियों और इस मुठभेड़ को करीब से जानने वालों की माने तो आरबी सरोज ने माधवपुर गाँव में दो पट्टीदारों की दुश्मनी का फायदा अपनी रंजिश को मिटाने में कर लिया केपीसिंह की ह्त्या मौके पर पहुँचते ही हो गई थी, उसके आठ घंटे बाद पहुंची पुलिस ने गाँव के बारह लोगो उनके घरों से निकाल निकाल कर मौत के घाट उतार दिया था। गाँव वालों ने ये नज़ारा अपनी आँखों से देखा लेकिन डर के मारे चुप रह गए । इस पुरे मामले में डिप्टी एसपी केपी सिंह की ह्त्या और फर्जी मुठभेड़ ने प्रदेश की सियासत को भी हिला दिया तात्कालिक मुख्यमंत्री वीपी सिंह और उनकी सरकार ने ज्यादा कुछ नहीं किया वही विपक्ष ने इस मुद्दे को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, लोकदल के तात्कालिक प्रदेश अध्यक्ष और वर्तमान सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने माधवपुर गाँव का दौरा किया था, और गाँव वालों से बातचीत के बाद जो रिपोर्ट तैयार की थी वो उस समय भी फर्जी मुठभेड़ की ओर ही इशारा करती थी, आज सीबीआई की विशेष अदालत ने उस बात और मुकदमें के साथ तथ्यों को भी सही साबित कर दिया। ( अगर आप 13 दिसम्‍बर-1989 को दैनिक जागरण के देश भर के सभी संस्‍करणों के पहले पन्‍ने पर प्रकाशित इस खबर को पढ़ना चाहें तो कृपया क्लिक करें )

मुठभेड़ के बाद पुलिस वालों ने जो अपनी रिपोर्ट अपने उच्चधिकारियों को दी थी उसमें बदमाशों से मुठभेड़ की रिपोर्ट थी लेकिन जांच में जब सारा मामला खुलकर सामने आया तो मारे गए लोगो में सिर्फ एक व्यक्ति का आपराधिक इतिहास था बाकी गांव में रहने वाले युवक थे। पुलिस की रिपोर्ट और तथ्यों को पढ़ने के बात डिप्टी एसपी कृष्ण प्रताप सिंह की पत्नी विभा सिंह जो उस समय गोरखपुर में ट्रेजरी विभाग में तैनात थी, उन्होंने इस मुठभेड़ और पुलिस की रिपोर्ट पर विश्वास नहीं किया और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और केस में पुलिस वालों की दगाबाजी का जिक्र किया सुप्रीम कोर्ट ने विभा सिंह की अपील को मंजूर करते हुए सीबीआई को मुकदमा दर्ज करके जाँच करने के आदेश दिए, सीबीआई ने 17 अगस्त 1984 को मामला दर्ज कर इस केस की जाँच शुरू की । 

विधवा विभा का दर्द, देश की शीर्ष जांच एजेंसी की सुस्त चाल

विभा सिंह को देश की न्याय व्यवस्था पर पूरा भरोसा था लेकिन देश की शीर्ष जांच एजेंसी केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो यानी सीबीआई ने अपनी जांच में शुरुवाती वर्षों में ऐसा कुछ नहीं करके दिखाया जिससे विभा सिंह और उनकी दुधमुंही बच्चियों को न्याय मिल सके विभा सिंह न्याय की आस में सीबीआई और न्यायालय के चक्कर लगाती रही पर उनकी न्याय पाने की आस टूटी नहीं थी, लेकिन सीबीआई की जाँच से वो संतुष्ट नहीं थी, 28 फ़रवरी 1989 को सीबीआई ने 19 लोगो के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की करीब बारह साल चली सुनवाई के बाद और जांच की मंथर गति के बीच सीबीआई की विशेष अदालत ने 7 सितम्बर 2001 को आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किये । जांच की धीमी गति और कानूनी प्रक्रिया के बीच ही 19 आरोपियों में से 10 आरोपियों की मौत सुनवाई के बीच में ही हो गई। इस जघन्य हत्याकांड की जांच और सुनवाई लगातार चल रही थी, विभा सिंह इधर अपने पति की मौत के सही न्याय की आस में अपनी उन दो बच्चियों का पालन पोषण कर रही थी जो उनके पति की आखिरी निशानी थे। 2004 में विभा सिंह को कैंसर जैसी बींमारी ने अपने आगोश में ले लिया और उनकी मौत हो गई ।

इस पूरे प्रकरण की दोनों कडि़यों को देखने के लिए कृपया क्लिक करें:- किसने करायी केपी सिंह की हत्या

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