पुलिस की वजह से छूटते हैं बलात्कारी

सैड सांग

सामाजिक अध्‍ययन में हुआ खुलासा

जांच में ही कर दी जाती है गडबडी: विवेचना की धीमी गति भी बहुत हद तक दोषी: अदालतों में बेहूदा सवाल और अभियोजना में भी दोष

मुंबई में हुए एक सामाजिक अध्ययन में दावा किया गया है कि यौन हिंसा की पीडि़ता की चिकित्सा जांच करने वाले डॉक्टरों से अनुचित और अप्रासंगिक पूछताछ तथा ‘कानूनी रूप से अप्रसांगिक’ चिकित्सा मतों से ऐसे मामलों में इंसाफ का गला घुंट जाता है।

महात्मा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान के फोरेंसिक मेडिसिन विभाग के सहायक प्रफेसर डॉ. इंद्रजीत खांडेकर ने यह अध्ययन किया है और 67 पृष्ठों का यह अध्ययन हाल ही केंद और राज्यों के गृह, स्वास्थ्य, और विधि मंत्रालयों, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोगों को सौंपा गया है।

रिपोर्ट के अनुसार बलात्कार के मामलों में आरोपियों को दोषी ठहराये जाने की निम्न दर की वजह पुलिस अधिकारियों की चूक हैं। खांडेकर ने कहा, ‘भारत में यौन हिंसा की पीडि़ता की फोरेंसिक मेडिकल जांच के दौरान पुलिस अधिकारियों द्वारा डॉक्टरों से अनुचित और अप्रासंगिक सवाल पूछे जाने तथा कानूनी रूप से गैर प्रासंगिक चिकित्सा मतों की वजह से इंसाफ का गला घुट जाता है और इससे मानवाधिकार का भी उल्लंघन होता है।’

खांडेकर ने बलात्कार पीडि़तों के अस्पताल पहुंचने पर डाक्टरों द्वारा उनकी अनुचित चिकित्सा जांच के मुद्दे पर भी बंबई उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की है। इस याचिका पर 24 नवंबर को सुनवाई होनी है। उन्होंने कहा, ‘जब भी बलात्कार पीडि़ता रिपोर्ट करती है तो पुलिस उसे फोरेंसिक मेडिकल जांच के लिए अस्पताल भेज देती है और बलात्कार हुआ या नहीं या पीडि़ता यौनाचार की अभ्यस्त है जैसे कुछ गैर जरूरी सवाल करती है।’

उन्होंने कहा , ‘जब डॉक्टर शरीर पर चोट के निशान नहीं मिलने पर कहते हैं कि कोई बलात्कार नहीं हुआ या यह बलात्कार के प्रयास का मामला है तब ऐसे अनावश्यक मत आरोपी को अवांछित लाभ पहुंचाते हैं। इस तरह के मत बलात्कार शब्द के सही मायने और उसके दायरे के प्रति डॉक्टर की गहरी उदासीनता को व्यक्त करते हैं।’ खांडेकर के अनुसार पीडिता को यौनाचार के प्रति अभ्यस्त बताये जाने के डाक्टर के मत के आधार पर महिला के चरित्र पर उंगली उठाई जाती है। पीडि़ता की विश्वसनीयता पर अंगुली उठाये जाने के कारण ही ऐसे मामलों में आरोपी को दोषी ठहराये जाने की दर कम है।

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