नसीमु्द्दीन मियां ! यह तुम्‍हारी निजी दिक्‍कत है या सारे मुसलमानों की ?

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: कहीं बहुत बुरा न साबित हो जाए बसपा नेता का यह बयान : निजी अनुभव तो कहीं भी हो सकते हैं, लेकिन किसी धर्म-समुदाय पर ऐसी टिप्‍पणी गलत : कोई भी धर्म न श्रेष्‍ठ होता है और न किसी कमतर, सारे धर्म आस्‍था, यकीन और विश्‍वास पर टिके हैं :

कुमार सौवीर

लखनऊ : 12 साल की बेटी समेत दयाशंकर सिंह के घार की सारी महिलाओं को लखनऊ के हजरतगंज चौराहे पर घंटों तक सरेआम गालियां देने और उन्‍हें वहां बुलाकर यह-वह-सबकुछ कर डालने की हुंकार भरने वाले बसपा के नसीमुद्दीन सिद्दीकी अब अपनी बेटी की सुरक्षा को लेकर हलकान हैं। उनकी दर्द से सनी दिक्‍कत यह है कि वे अपनी बेटी को अपने सगे भाई के घर छोड़ने तक तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि यह समस्‍या बेटियों की हिफाजत को लेकर है।

बहुजन समाज पार्टी में मुसलमान कम्‍यु‍निटी के तोपखाने के सबसे बड़े तोपची हैं नसीमुद्दीन सिद्दीकी। मायावती को लेकर बदजुबान दयाशंकर सिंह के मामले में पिछले दिनों वे भी अपनी जुबान को तेज कर चुके हैं। लेकिन उनका वार गलत हो गया तो वे अपनी करतूतों को छिपाने के लिए अब दीगर मसलों को उठा-उछाल रहे हैं, ताकि कैसे भी हो, उनकी बद-बात पर गर्त-धूल पड़ जाए जिसको लेकर खासा हंगामा हुआ और बसपा को बैकफुट पर आना पड़ा।

अपनी इसी कवायद को लेकर कल वे आगरा छावनी विधानसभा क्षेत्र में मुसलमानों, दलितों और पिछड़ों के एक सम्‍मेलन में बोले। लेकिन अचानक पूरी सभा में सन्‍नाटा पसर गया। दरअसल उन्‍होंने अपनी रौ में कुछ ऐसा-वैसा कह दिया, जिसका रिश्‍ता उनके निजी अनुभवों से तो जोड़ा जा सकता था, लेकिन किसी पूरे किसी जाति-धर्म समुदाय पर लागू नहीं किया जा सकता है। खासतौर पर तब जब बसपा इस समय खुद ही वोटों की किल्‍लत से बेहाल चल रही  है।

सिद्दीकी बोले कि मुसलमानों की विश्‍वसनीयता बहुत गिर गयी है। यही वजह है कि मुसलमानों को कोई पूछ नहीं रहा है। उन्‍होंने तर्क दिया कि एक वक्‍त था, जब यहूदी समुदाय के लोग जब कहीं दूर जाते थे, तो अपने घर का सारा कीमती सामान और यहां तक कि अपनी बेटियां तक मुसलमानों के घर छोड़ देते थे, कि मुसलमान के घर वे हिफाजत में रहेंगी। लेकिन अब यह हालत बदल चुके हैं। बदहाली का आलम है। सवाल यह है कि क्‍या आज वह यकीन मुसलमानों में बचा है। हालत तो यहां तक बिगड़ चुके हैं कि मैं अपनी बेटी को सगे भाई के घर छोड़ने को तैयार नहीं हैं। हमने अपना यकीन खो दिया है।

अब सिद्दीकी के इस बयान के बाद बवाल शुरू हो रहा है। सवाल उठाये जा रहे हैं कि यह तो किसी का निजी मामला हो सकता है। निजी अनुभव तो कहीं भी हो सकते हैं, लेकिन किसी धर्म-समुदाय पर ऐसी टिप्‍पणी करना बेहूदा और पूरी तरह अपराध है। मेरे एक यहूदी मित्र ने सिद्दीकी के इस बयान पर ऐतराज जताया है कि यहूदियों के प्रति जानबूझ कर लांछन-कीचड़ उछाल रहे हैं। उसका कहना है कि कोई भी जाति न किसी से श्रेष्‍ठ होती है और न ही किसी से कमतर। हां, उसमें अपने-अपने आस्‍था-यकीन-विश्‍वास का पौध जमा हुआ रहता है। ऐसे में अपने पक्ष में मूर्खतापूर्ण बातें-दावें करना नसीमुद्दीन सिद्दीकी का दिमागी दिवालियापन ही कहा जाएगा। ऐसे बयान खुद उस जाति को कमजोर कर देंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *