योर लॉर्डशिप। बहुत डिप्रेस हो रही है लोअर ज्‍यूडिसिरी

सैड सांग

: पिछले कुछ बरसों में हुई घटनाओं को न्‍याय की सान पर चढ़ाने की कोशिश कीजिए : जिला अदालतों के मैजिस्‍ट्रेट और जज अब खुद ही न्‍याय को तरस रहे : निम्‍न  अदालतों के न्‍यायाधीशों-न्‍यायाधिकारियों के दिलों में टीसें ज्‍यादा उबल रही हैं योर-ऑनर :

कुमार सौवीर

लखनऊ : आगरा का जिला जज अपनी नौकरी के आखिरी दौर में तबाह हो गया। न्‍याय विभाग का प्रमुख सचिव रह चुका जिला जज स्‍तर का अधिकारी भी अपने घाव सहलाते हुए आर्तनाद कर रहा है। एक जिला जज अपनी नौकरी के आखिरी पायदान में कोलिजियम लिस्‍ट से हटा दिये गये, और निहायत छोटी जैसी एक ढक्‍कन पोस्‍ट पर जा पटके गये। और अब एक जिला जज का इस्‍तीफा मंजूर करने के कारणों को खोजने के बजाय उन्‍हें सामान्‍य तौर पर अकार्यकारी पद पर फेंक दिया गया। न्‍यायपालिका में चल रही इन घटनाओं से साबित कर दिया है कि ऐसे जजों की हालत पूरी लोअर ज्‍यूडिसिरी के दिलों में बने घावों में तिनके घुसेड़ रही है।

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न्‍यायपालिका

योर ऑनर। यह कहने की जरूरत नहीं कि यह मामला बहुत संगीन है।आप खुद ही पिछले कुछ बरसों में हुई घटनाओं को न्‍याय की सान पर चढ़ाने की कोशिश कीजिए, तो आपको पता चल जाएगा कि मामला अब दर्द सहन की सीमा से पार जा रहा है। हालांकि अदालतों की खबरों को कानून की धाराओं से संतुलित और सीमित करने की कवायदें खूब होती हैं, लेकिन इसके बावजूद सच यही है कि ऐसे प्रकरण अब लगातार उठने, भड़कने लगे हैं कि जिला अदालतों के मैजिस्‍ट्रेट और जज अब खुद ही न्‍याय को तरसते दिख रहे हैं। एक जिले के एक न्‍यायाधीश ने अपना नाम जाहिर न करने की शर्त पर प्रमुख न्‍यूज पोर्टल मेरी बिटिया डॉट कॉम संवाददाता को बताया कि, “न्‍यायपालिका का सबसे निचला पायदान ही सही, लेकिन सच बात तो यही है कि जनता को न्‍याय पहुंचाने के लिए बने पहले दरवाजा, यानी देश की प्राथमिक अदालत अर्थात फैसलागार के कई न्‍यायाधीशों-न्‍यायाधिकारियों के दिलों में टीसें ज्‍यादा उबल रही हैं। “

“तो आपसे अनुरोध है देश की अदालतों के महोदय श्रीमान माई-बाप जी, कि हम आपका ध्‍यान उन घटनाओं की ओर दिखाना चाहते हैं, जहां न्‍यायपालिका का सबसे निचला पायदान अब पा-पोश यानी डोर-मैट से भी बदतर हालत तक पहुंचने की हालत पर पहुंचता दिख रहा है। कई ऐसे हादसे, घटनाएं और सत्‍यकथाएं ऐसी पसरी हुई हैं न्‍याय की फलक पर, कि आम न्‍यायाधिकारी सिसकता हुआ लगता है। “

महोदय, जरा गौर कीजिए आगरा में जिला एवं सेशंस जज रह चुके एक शख्‍स की हालत पर, जो दस बड़े जिलों का प्रमुख न्‍याय-दण्‍डाधिकारी रह चुका था। पूरा कैरियर बेदाग, निश्‍छल, और बेहद सरल रहा था। उसके एक साथी न्‍यायाधिकारी ने बताया कि उसका नाम हाईकोर्ट के जज के तौर पर कोलोजियम में होने को ही था, अब अचानक एक महिला न्‍यायाधिकारी के साथ एक शिकायत पसर गयी। इस अधिकारी की पत्‍नी एक वरिष्‍ठ पीसीएस अफसर थीं, उसने साफ कह दिया कि वह बच्‍ची हमारे परिवार की बच्‍ची है, बेटी है। उस महिला अधिकारी ने भी लिख दिया कि उस जिला जज मेरे पिता तुल्‍य हैं। लेकिन जब तक फैसला होता, कोलीजियम से उस अफसर का पत्‍ता कट गया।

दूसरा मामला भी दस से भी ज्‍यादा बड़े जिलों के प्रमुख रह चुके जज की, उन्‍हें एक बड़े जज के चलते अपना भविष्‍य तबाह करना पड़ा। इतना ही नहीं, उन्‍हें कभी ओएडीएस बनाया गया, तो कभी किसी दूरस्‍थ जिले का प्रमुख की तैनाती थमायी गयी। आखिरकार वे रिटायर भी हो चुके। हैरत की बात है कि इस अधिकारी के पूरे जीवन में कभी भी एक भी दाग नहीं पड़ा था। वे न्‍याय विभाग के प्रमुख सचिव भी रह चुके थे।

लखनऊ के जिला जज रह चुके राजेंद्र सिंह के नाम पर आजकल खूब कालिख पोती जा रही है मीडिया में। गायत्री प्रजापति को जमानत देने के मामले में उन्‍हें दागदार माना गया, और हाईकोर्ट कोलोजियम लिस्‍ट से उनका नाम हटा दिया गया। इतना ही नहीं, उन्‍हें लखनऊ के प्रमुख न्‍यायाधिकारी जैसे पद से हटा कर एक निहायत छोटे से जिले पर भेज दिया गया। लेकिन राजेंद्र सिंह का मूल अपराध क्‍या है, इस बारे में न्‍यायाधिकारी ही नहीं, बल्कि बार एसोसियेशनों में भी खूब चर्चाएं चल रही हैं।

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लर्नेड वकील साहब

और अब ताजा काण्‍ड है रायबरेली का। वहां के जिला जज केके शर्मा का नाम न्‍यायपालिका में एक बेहद संवेदनशील शख्‍स के तौर पर पहचाना जाता है। इस बारे में मेरे खुद के भी अनुभव बेहद रोमांचित कर देने वाले हैं। अपने अधीनस्‍थ अफसरों पर पैनी निगाह रखने, लेकिन उनके प्रति बेहद सौहार्दपूर्ण व्‍यवहार रखने वाले केके शर्मा के बारे में चर्चाएं यह चल रही हैं कि उन्‍होंने न्‍याय-प्रक्रिया में विलम्‍ब को सुधारने के लिए कतिपय सुधार कार्य शुरू किये थे, लेकिन वकीलों का एक झुण्‍ड उनसे असहमत हो गया और बवाल खड़ा हो गया।

बहरहाल, इस बारे में चर्चा बाद में होगी, लेकिन चूंकि आप न्‍यायपालिका के पिता-तुल्‍य हैं, इंसाफ के जीवन्‍त-पुरूष हैं, इसलिए आपसे अनुरोध है कि इस बारे में एक नयी रौशनी में छिद्रान्‍वेषण करें। यह भी कि यदि आम जनमानस को न्याय देने वाले न्यायिक अधिकारियों के दिल में ही असुरक्षा की भावना होगी तो वह आम जनता को क्या न्याय डिलीवर करेंगे।

( विभिन्न न्यायिक अधिकारियों से बातचीत से प्राप्त अनुभव के आधार पर। )

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