मेरा अपराध क्‍या है ? पूछ रही है यह युवती

बिटिया खबर

: गोमतीनगर में शाम 9 बजे जब एक कार-सवार युवती से छेडखानी हो सकती है, तो बाकी यूपी में क्‍या हालत होगी : कपूरथला चौराहे पर पुलिसवाले ने भी इस मामले को हल्‍के में लिया : असलियत देखिये महिला सुरक्षा सहायता 1090 की :

कुमार सौवीर

लखनऊ : मैं तो पूरे और सामान्‍य तौर पर सभ्‍य माने जाने वाले कपड़ों में थी, ऐतराज लायक फैशन में दूर-दूर तक नहीं। कार चला रही थी। गोमती नगर से लेकर कपूरथला की ओर जा रही थी। लेकिन इसके बावजूद राजधानी की सड़क पर मेरे साथ छेड़खानी और अभद्रता हो गयी। काफी दूर तक मनचले ने मेरा पीछा किया। जब आजिज होकर मैंने कपूरथला चौराहे पर बनी पुलिसचौकी पर तैनात पुलिसवाले से अपने साथ हुई इस अभद्रता की शिकायत दर्ज करनी चाही, तो उसने आनाकानी करना शुरू कर दिया। उस समय पुलिस-सेवा के कर्मचारियों की सहायता की जरूरत थी, लेकिन उस समय मुझे लगातार मानसिक संत्रास झेलना पड़ा। क्‍या आज भी हमारे समाज में मेरी जैसी महिलाओं का जीना दूभर होता रहेगा?

यह पीड़ादायक बयान है एक युवती का, जिसके साथ बीती दो-अगस्‍त-17 को राजधानी की व्‍यस्‍त सड़क पर हादसा हुआ। पूजा अवस्‍थी नामक यह युवती मूलत: लेखक, अनुवादक और स्‍वतंत्र-पत्रकार भी है। अलीगंज की रहने वाली पूजा कल शाम नौ बजे के करीब अपने घर कपूरथला की ओर रवाना हुई थी, कि अचानक कुछ ही देर बाद एक बाइक-सवार युवक ने उसकी कार को रोकने की कोशिश की। कार रोकने पर उस युवक ने अश्‍लील कमेंट पास किये, और छेड़खानी की कोशिशें कीं। इस पर पूजा ने अपनी कार आगे बढ़ा ली।

आपको बता दें कि यह ठीक वही स्‍थान है, जहां से करीब 100 मीटर दूर ही महिला सहायता प्रकोष्‍ठ का 1090 मुख्‍यालय है।

पूजा बताती हैं कि जब पूजा ने अपनी कार बढ़ायी तो उस युवक ने अपनी बाइक से उसका पीछा करना शुरू कर दिया। उसकी यह हरकतें काफी देर तक चलती ही रहीं। लेकिन पूरे दौरान एक भी पुलिसवाला सड़क पर नहीं दिखा, जहां अपनी कार रोक कर पूजा अपने साथ हुए हादसे का जिक्र कर सहायता ले सकती। पूजा बताती हैं कि कपूरथला चौराहे पर एक पुलिसवाला दिखने पर उसने अपनी शिकायत लिखने की कोशिश की। उस समय दुर्भाग्‍य के साथ पूजा के पास कलम नहीं था। पूजा ने जब कलम मांगी, तो उस पुलिसवाले ने पेन न होने की विवशता बताते हुए कहा कि आजकल के दौर में पेन का इस्‍तेमाल कोई करता ही नहीं है। इतना ही नहीं, उस पुलिसवाले ने पूजा से यह कहते हुए अपना पल्‍ला झाड़ लिया कि:- अब तो आप अपने घर के पास आ ही चुकी हैं। संकट खत्‍म हो चुका है। अब आराम से अपने घर जाइये और मुंह ढांप कर सो जाइये।

पूजा ने इस बारे में पूरी राम-कहानी मुझे वाट्सऐप पर भेजी है। साथ ही उस युवक की फोटो भी उसने भेजी है, जिसे पूजा ने बहुत खतरे उठा कर चलती कार से खींच लिया था। अपने इस वाट्सऐप संदेश में पूजा ने छह बिन्‍दुओं पर सवाल उठाये हैं, और आम आदमी को झंझकोरते हुए लखनऊ के लोगों और सरकार, पुलिस व प्रशासन पर उंगली उठायी है। इन सवालों और उस पूरे संदेश का मजमून जस का तस आपके सामने पेश कर रहा हूं:-

Last evening, at around 9 pm, I was on my way from Gomtinagar to Aliganj. A man on a motorbike strated following me from somewhere around The Taj. He would intermittently stop in front of my car- these grainy pictures were taken on the Nishatganj overbridge. I was on the lookout for a policeman/police post to report the matter. Finally spotted one at the Kapoorthala crossing. Told the police I wanted to complain. Was in turn told they had no pen. ‘Yahan pen istemal karne wale kum aate hain’ was the response. (That loosely translates to- there are few pen using kinds who show up here). I persisted, got a pen out and wrote a complaint, insisting also that I be permitted to take a photograph of it. The policemen’s golden words to me were- ‘Now that you are close to home there is not much to worry’.

Furious is an understatement to describe what I felt. I messaged a senior officer whopromptly responded and assured me of action.

Meanwhile well wishers advised me to ‘let it go’

Of the many thoughts that run through my mind are:

1. What if I had not been ‘decently’ dressed in Indian attire and had been out at an ‘unsuitable’ hour? Would the police had been still more dismissive of me?

2. What if I was not close to home? Would I have been left to myself to find my way back?

3. What if I did not have access to a senior officer’s number?

4. Why must I let it go? Why must I who makes a career out of writing on woman’s issues have a different attitude in real life?

5. Why is it my fault?

6. What have we learnt through all our candle marches and slogan shouting?

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