: पूर्वांचल विश्वविद्यालय के पूर्व रजिस्ट्रार का निधन, देर शाम हुई इस घटना से शैक्षिक जगत में हाहाकार : सरल, विद्वान, कर्मठ कुलसचिव से कुलपति से तनातनी की चर्चाएं : पिछले बरस शिक्षक दिवस के आसपास ही हुआ था उनका निलम्बन, कारण अब तक अनजान :
कुमार सौवीर
लखनऊ : यूपी के शिक्षा-आगारों में शिक्षकों या गैर-शिक्षणेत्तर कर्मचारियों-अधिकारियों की हरकतों के किस्से किसी भी शिक्षालय के किसी भी कोने-कुतरे में बिखरे मिल जाना किसी भी दुर्गन्ध की तरह कभी भी महसूस किया जा सकता है। भले वह शिक्षक-अशिक्षक की गतिविधियां हों, या फिर यौन-शोषण। न्यूनतम पायदान तक लगातार फिसलती जा रही शिक्षा हो, या फिर भारी राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक भ्रष्टाचारों की कहानियां। हर किस्से के केंद्र में शिक्षक अथवा गैरशिक्षक ही होता है। लेकिन शिक्षा जगत में एक ऐसा भी कुलदीपक था, जिसके ज्ञान, सरलता, शिक्षा, विद्वता के सामने हर शख्स शीश झुकाता था, जाति, पद, धर्म की सीमाओं से कोसों दूर।
लेकिन आज वही शिक्षा-प्रशासक का आज प्राणान्त हो गया। उनका नाम था डॉक्टर देवराज। पिछले नौ महीनों से सतत प्रशासनिक और सरकारी उत्पीड़न की गहरी साजिशों से जूझ रहे रजिस्टर देवराज कई लगातार गहरे अवसाद में चले गये थे। विश्वविद्यालय में चल रही चर्चाओं के अनुसार डॉ देवराज की मृत्यु पूर्वांचल विश्वविद्यालय में चल रही घटिया शैक्षिक-साजिशों का परिणाम है। खबर है कि शनिवार की देर शाम उन्होंने अपना प्राण त्याग दिया और ब्रह्माण्ड-व्यापी हो गये। कुलसचिव के तौर अपने दायित्वों पर हमेशा खरे उतरे जाते रहे देवराज को गीता और भागवत का भावार्थ तक कण्ठस्थ था।
विश्वविद्यालय में देवराज के निलम्बन की खबर किसी पहाड़ टूटने जैसी महसूस की गयी। सबसे बड़े आश्चर्य की बात यह रही कि उप मुख्यमंत्री के निर्देश पर देवराज का निलम्बन हुआ था। बताते हैं कि विश्वविद्यालय के कुलपति डा राजाराम यादव से उनकी तनातनी शुरू से ही बनी रही थी। हालांकि कोई प्रत्यक्ष कारण तो सामने नहीं आया, लेकिन सूत्र बताते हैं कि देवराज के विरूद्ध कोई भी कदम उठाने से कुलपति यादव हिचकते नहीं थे। विश्वविद्यालय में चल रही चर्चाओं के अनुसार कुलपति को यह देवराज फूटी कौड़ी भी पसंद नहीं करते थे, और हमेशा इसी जुगत में रहते थे कि देवराज को सड़क के कंकड़ की तरह नजर से दूर कर दिया जाए। उधर एक सूत्र ने बताया कि कुलपति द्वारा विश्वविद्यालय में हो रही पदस्थापन सम्बन्धी कार्रवाइयों से कुलपति असहमत बताये जाते थे।
कुछ भी हो, एक देव-तुल्य शख्स थे देवराज, यानी डॉक्टर देवराज। प्रतापगढ़ के रहने वाले देवराज जाति के तौर पर तो पटेल यानी कुर्मी अर्थात कूर्मि-क्षत्रिय कुल में जन्मे, लेकिन शिक्षालयों के विशालकाय जगत माने जाने वाले वीरबहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर के कुल सचिव के ओहदे पर थे।
देवराज प्रदेश के किसी भी विश्वविद्यालय में कुल सचिव के पद पर सुशोभित करने वाले इकलौते शीर्ष अधिकारी थे, जिन्हें डी-लिट की उपाधि हासिल थी। देवराज की पहचान एक प्रशासक के तौर पर तो थे ही, लेकिन उससे ज्यादा उनकी ख्याति उनकी विद्वता और सरलता को लेकर भी रही। अपने जीवन में पारिवारिक तानाबाना पर बेहद प्रताडि़त शख्स माने जाने वाले देवराज की छवि मूलत: बेहद भावुक, खुला दिल और लोगों के प्रति स्नेही भाव रखने वालों की थी। भागवत और गीता के श्लोक और उनकी व्याख्याएं उन्हें कण्ठस्थ हैं, ऐसा उन्हें जानने-पहचानने वाले शिक्षक और कर्मचारी भी मानते थे।
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ऐसा भी नहीं कि देवराज में कोई कमी ही नहीं हो। लेकिन सच बात यही है कि जो भी उनकी कमी या गलतियां हैं, वे मूलत: उनकी सरलता के चलते ही थीं। करीब दस साल पहले जब वे कानपुर में सहायक रजिस्ट्रार हुआ करते थे, एक भीषण दुर्घटना में उनके हाथ-पैरों की हड्डियां बुरी तरह टूट गयीं। इस हादसे में उनके भाई की मौत भी हो गयी थी। उसके बाद वे डिप्रेशन में आ गये। लम्बे समय तक इलाज चला उनका। अन्तर्मुखी होते गये देवराज। बाद में उन्हें बियर पीने की लत आ गयी। ऐसा नहीं कि वे इसमें टल्ली हो जाते थे। लेकिन लोग बताते हैं कि दो-चार बार वे बियर पीकर आ गये थे दफ्तर। लेकिन कभी भी कोई बेईमानी या किसी से कोई बेअदबी उन्होंने नहीं की। हालांकि जानकार बताते हैं कि मौजूदा कुलपति से उनकी पटरी जरा कम ही खाती थी। उधर चर्चाओं के अनुसार मौजूदा कुलपति डॉ राजाराम यादव ने डॉ देवराज के खिलाफ यूपी के उप मुख्यमंत्री डॉ दिनेश शर्मा से अपनी प्रगाढ़ता के चलते खूब खाद-पानी डाला था।इस खबर पर प्रकाशित यह फोटो पूर्वांचल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो राजाराम यादव की है।
सच बात तो यह है कि इस यूनिवर्सिटी की स्थापना के तीस साल के दौरान देवराज इकलौले कुलसचिव थे, जिन पर कोई गम्भीर आरोप नहीं लगा था।
और सबसे नीचे है डॉ देवराज की तस्वीर। बहरहाल, हम अगले कुछ अंकों तक आपको बतायेंगे कि डॉ देवराज की मौत के मुख्य कारक तत्व कौन थे, वे शिक्षक थे, क्लर्क थे, बाबू थे, बड़े हैसियतदार लोग थे और उन सब ने मिल कर क्या-क्या नहीं किया। जिसके चलते डॉक्टर देवराज इतना अवसाद पर आ गये कि उनके अंग-प्रत्यंग तक फेल होते जाते रहे। लेकिन इन कारक-तत्वों ने पूरे दौरान खूब मलाई चाटी।