उत्तरकाशी: जहां बोये जाते हैं बेटे उग आती हैं बेटियां।
सरकारी स्कूीलों में तादात ज्यादा, मगर निजी स्कूंलों में बेटियों को भेजने में परहेज
दिमाग में यह सोच घर किये है कि पराये धन पर आखिर क्यों लुटाया जाए पैसा
समय बदला, हालात नहीं। बेटियां आज भी मुंह मांगी मुराद नहीं बन पा रही हैं। समाज की मानसिकता जैसी थी, वैसी है। मन की तह में छिपे भाव व्यवहार में भी नजर आते हैं। उत्तरकाशी जिले में प्रति हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 943 है, लेकिन सरकारी स्कूलों में बालक-बालिकाओं की संख्या इस अनुपात के उलट है। मसलन जिले में प्राथमिक व उच्च प्राथमिक सरकारी स्कूलों की कुल संख्या है 1097। इनमें पांचवी कक्षा तक बालिकाओं की तादाद है 14,983, जबकि बालकों की संख्या है महज 11,767।
अब जरा प्राइवेट स्कूलों का जायजा लें। 184 निजी स्कूलों में पांचवीं कक्षा तक 9,109 लड़के हैं, वहीं लड़कियों की संख्या है मात्र 5,159 है। बेशक बेटियां अपने दम पर आकाश छू रही हैं। मुंबई में आटो चलाने से लेकर अंतरक्षि में पड़े कदम इसकी तस्दीक करते हैं। सुदूर अंटार्कटिका से लेकर हिमालय में सागरमाथा चूम उन्होंने साबित कर दिया है कि हम बेटों से कम नहीं, लेकिन अपने ही मां-बाप हकीकत को अनमने ढंग से स्वीकार कर रहे हैं। बेटा-बेटी एक समान जैसे नारे दीवारों पर चस्पां हैं, दिमाग में नहीं।
उत्तरकाशी जिले में प्राइमरी जैसी स्थितियां छठी से आठवीं कक्षा तक भी हैं। सरकारी स्कूलों में इन कक्षाओं में 8,698 बालिकाएं हैं और बालक है सिर्फ 6,906। इसके उलट जिले के प्राइवेटस्कूलों में 3,620 बालक हैं और 1,914 बालिकाएं। स्थानीय निवासी गजेंद्र सिंह राणा के दो लड़के एक प्रतिष्ठित निजी स्कूल में पढ़ रहे हैं, जबकि लड़की गांव के ही जूनियर हाई स्कूल में पढ़ती है। उनका कहना है कि लड़कों को अच्छी शिक्षा देना आज की जरूरत है, फिर लड़की को क्यों नहीं इसका वो कोई जवाब नही दे पाते।