बुद्ध और ईसा मसीह से बंगाल की काली सामूहिक सहवास करें, तो ?

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: देवी काली का सामूहिक सहवास, यह खुलापन है या विकृति : फिलॉसिफी के एक छात्र ने दैवी-मिलन पर चित्रण किया तो हंगामा बरपा हो गया : बंगाल के कई इलाकों में फिदा हुसैन की परम्‍परा वाली कूंची अब निर्वस्‍त्र रेखांकन में जुटी :

कुमार सौवीर

लखनऊ : स्‍त्री और पुरूष के बीच होने वाले सहवास को इस शख्‍स दैवीय गुण मानता है। कोई समाज उसे बराबरी के तौर पर देखता-तौलता है, तो कोई समाज स्‍त्री को दोयम यानी दूसरे दर्जे पर रखता है और मानता है कि स्‍त्री केवल भोग्‍या है। इस नजरिये से पुरूष स्‍त्री और सहवास का इकलौता नेतृत्‍व-नायक होता है। उधर खास तौर पर पढे-लिखे बंगाली समाज की संस्‍कृति तो सहवास और रोमांस पर कई मील आगे बढ़ चुके हैं। बाकी समाजों से अलग बंगाली समाज ने स्‍त्री को बेहद अहम स्‍थान दे रखा है।

मगर यही बंगाली समाज से जब सहवास को लेकर चित्रकारों के कामकाज पर खुली चर्चा शुरू हो गयी है, तो बाकी समाज अचकचा पड़े हैं। खासकर तब, जब इस सहवास में उस देवी काली को अपनी जद में रख दिया, जिसे बंगाल सर्वाधिक सम्‍मान देता है। इतना ही नहीं, इन कलाकारों ने तो अपने कामधाम को ज्‍यादा विस्‍तृत करते हुए सहवास में देवी काली को अन्‍य समाजों-धर्मों के पैगम्‍बरों के बीच शामिल कर लिया, तो जाहिर है कि लोग भड़क ही उठे।

ताजा मामला खड़ा हुआ है सोशल साइट पर जतिन तॉमरकी टाइम लाइन पर अंग्रेज़ी में लिखा एक लेख, जिसमें रेखाचित्रों में काली को महात्‍मा बुद्ध और ईसा मसीहा के साथ सम्‍भोग-रत दिखा गया है। लेकिन इसके बाद से ही सोशल साइट्स में हंगामा खड़ा हो गया।

जरा इस श्वेत श्याम फोटो को देखिये। यह रेखांकन बंगाल के जादवपुर यूनिवर्सिटी के फिलॉसफी का बंगाली हिन्दू छात्र नीलाम्बर चक्रबर्ती ने किया है। नीलाम्‍बर ने हिन्दू देवी देवताओं और हिंदुत्व का जो चित्रण किया है, उसे उसके विरोधी अश्लील चित्रण और धर्म-विरोधी मान रहे हैं। उनका कहना है कि इस तरह पूज्‍य नामों-आस्‍थाओं केे प्रति अपनी नीच और कुत्सित हरकतों से ऐसे तथाकथित बुद्धिजीवी खुद को बौद्धिक समझते-समझाने की शेखी बघारते हुए अपनी पीठ ठोकते है। अब ऐसे पाठकों ने नीलाम्‍बर के चित्र को हिन्‍दू आस्‍थाअेां पर हमला बताया है और उसके खिलाफ सख्‍त कार्रवाई की मांग की है।

आपको बता दें कि हिन्‍दू धर्म के देवी-देवताओं के चित्रांकन को लेकर इसके पहले भी खासा बवंडर खड़ा हो चुका है। इसके पहले मशहूर कलाकार और पूर्व सांसद पद्मविभूषण मकबूल फिदा हुसैन ने दुर्गा के निर्वस्‍त्र चित्र बनाया था, तो उसके बाद देश-दुनिया में हंगामा खड़ा हो गया था। लेकिन अब जब यह हंगामा खात्‍मे पर आ चुका है, नीलाम्बर ने माँ काली को ईसा और बुद्ध के साथ तथाकथित अश्लील व वीभत्स कलाकारी करके अभियक्ति की आज़ादी का जो व्यभिचार किया है वह उसे घृणा का पात्र बनाता है।

सोशल साइट्स में एक कमेंट आया है कि हमे हिंदुत्व के शत्रु घर के बाहर ढूंढने की जरूरत नही है यह हमारे घर ही में है। हमे ज़िंदा रहना है तो नीलाम्बर ऐसे लोगो का प्रतिकार करना होगा। हमे अपने घर को सबसे पहले इस ऐसी गन्दगी से साफ करना होगा। हालांकि अभी यह मांग केवल विरोध के स्‍तर पर ही है। उस खिलाफ कोई कार्रवाई का कोई सिलसिला नहीं छेड़ा गया है।

एक अन्‍य ब्‍लॉगर ने लिख है कि ये तो राक्षस की औलाद लगता है बंगालियों का पतन तय है। ऐसे पतित आत्मघाती वहां की शोभा बढ़ाते हैं जिस राज्य का युवा और बुद्धिजीवी ऐसे कुकृत्य में लिप्त हों वहां इनकी एक अन्‍य कमेंट में लिखा गया है कि दुर्गति अवश्यम्भावी, अनिवार्य और उचित ही है।यूँ ही नही धुलागढ़, मालदा और बर्दवान की घटनाएं हो रही हैं, जिन्‍हें देख-पढ़ कर बरबस आँखों में खून उतर आया है।

कुछ भी हो, धार्मिक आस्‍थाओं को लेकर और खासकर  हिन्‍दू देवी-देवताओं  पर लिखने तथा उनके निर्वस्‍त्र चित्रों और रेखांकन की परम्‍परा खासी पुरानी है। लेकिन ताजा हालातों और माहौल में ऐसे प्रयास लगातार हमलावर अंदाज अख्तियार करते जा रहे हैं।

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