अजब-गजब शौक हैं भंगेड़ी स्‍वामी चिन्‍मयानन्‍द में

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: चिन्‍मयानन्‍द का सीधे इंद्रासन : सुबह तड़के से देर शाम तक क्‍या-क्‍या नहीं करते हैं देश के पूर्व गृह राज्‍यमंत्री : आश्रम तो उस लंका से भी बुरा है जहां रावण से ज्‍यादा शैतानी ताकतें बिचरती हैं : होश बेकाबू कर देती हैं सपनों पर सवार बच्चियां, श्रंखला- तीन :

बीपी गौतम

बदायूं : इतने बड़े तथाकथित अध्यात्मिक गुरू को महिलाओं से तेल लगवाने में कोई संकोच नहीं है, यह जान कर मैं वास्तव में अभी तक आश्चर्य चकित हूं। अब मेरी उनके प्रति धारणा बदल चुकी थी, सो सवाल भी वैसे ही करने लगा, तो पता चला कि तेल लगवाते समय ही महंगी शराब भी पीते हैं और दिन भर के लिए मस्त हो जाते हैं। मैंने पूछा कि लाकर कौन देता है? इस सवाल पर साध्वी जी ने बताया कि एक महाशय कस्टम विभाग में उनकी सिफारिश पर ही लगाये गये थे, वही विदेश से उनकी पसंद के ब्रांड लाकर देते हैं। यह जानकारी आश्रम में अंदर काम करने वाले लगभग सभी कर्मचारियों को भी है, पर उनकी कृपा पर कर्मचारियों की रोजी-रोटी चलती है, इसलिए कोई किसी से चर्चा तक नहीं करता। मेरे लिए हर जानकारी नई थी, सो चर्चा बंद करने का मन ही नहीं कर रहा था। 

मैं हर सवाल के साथ अपनी उत्सुकता शांत करने के लिए ध्यान से सब सुनता जा रहा था। तेल लगवाते समय शराब पीते हैं, फिर स्नान करते ही नाश्ता करते हैं और स्कूल या कॉलेज में बने अपने कार्यालय में जाकर बैठ जाते हैं। दोपहर में लौटकर भोजन करते हैं और फिर बिस्तर पर लेटने के बाद कोई कर्मचारी महिला या पुरुष उनके पैर दबाता रहता है और वह सोते रहते हैं। शाम को उठकर फिर चाय पीते हैं और कोई मिलने वाला हो तो उससे मिलते भी हैं।

अधिकांश लोग शाम को ही शराब पीते हैं, इसलिए मैंने जिज्ञासावश पूछा कि स्वामीजी शराब सुबह क्यों पीते हैं? अभी और चौंकना बाकी था, क्योंकि वह शराब सुबह इसलिए पीते हैं कि शाम की चाय के बाद भांग का गोला गटकते हैं और सुबह तक उसी के नशे में मस्त रहते हैं। भांग कौन लाकर देता है? जवाब मिला कि बहुत दिन तक जौनपुर के प्रतिनिधि बनारस से डिब्बा भेजते थे, पर जब से राजनीतिक कद घटा है, तब से उन्होंने भेजना बंद कर दिया है और शाहजहाँपुर से ही भांग का बना चूर्ण मंगा लेते हैं, जो स्कूल में काम करने वाला कोई कर्मचारी लाकर दे देता है। इतना सब सुनने के बाद भी मैं उनसे संध्या पूजन की अपेक्षा अब भी कर रहा था, तभी फिर सवाल किया। जवाब में फिर वही संकोचपूर्ण न ही मिली। मेरी पत्नी के साथ उन्होंने कभी कुछ असत्य व्यवहार किया था, इसका मन में गहरा क्षोभ था, पर इसके अतिरिक्त भी समाज में जो जगह थी, उसको लेकर सकारात्मक भाव था, लेकिन यह सब सुनने के बाद आध्यात्मिक गुरु के साथ अनेक धार्मिक और शैक्षिक संस्थाओं के अध्यक्ष और भारत के गृहराज्य मंत्री के दायित्व तक पहुंचने वाली मेरे मन में जो छवि थी, वह तार-तार हो गयी। मैं यह भी सोच रहा था कि यह तो एक दिन की सामान्य दिनचर्या ही है, जिसने मेरे दिमाग की चूलें हिला दी हैं। ऐसा व्यक्ति जब इरादे से कुछ गलत करता होगा, तो मानवता तो आसपास भी नहीं रहती होगी।

एक दिन ऐसा है, तो साल के तीन सौ पैंसठ दिन कैसे होते होंगे? फिर भी ऐसे लोग आदरणीय हैं। गाय की खाल में स्वयं को ढक कर ऐसे भेडिय़े करोड़ों मासूमों से धर्म, आस्था और श्रद्धा के नाम पर स्वयं की पूजा कराते हुए देश और समाज को लूट रहे हैं। यह सब जान कर क्षण भर के लिए पत्नी पर भी क्रोध आया कि यह सब जानते-समझते हुए वह चुप क्यूं थी? फिर ध्यान आया कि वह एक भारतीय नारी हैं, भगवान की तरह पूजने वाले अपने गुरू की, वह कैसे निंदा कर सकती थी?

आज मैं ही कुछ गलत करने लगूं, तो वह मुझे भले ही सौ बार मना करें/रोकें, पर सार्वजानिक रूप से मेरी निंदा नहीं करेंगी। ….जब यह सोच मन में आयी, तो उन पर तरस भी आया कि इस सात्विक आत्मा ने कैसे वो सब देखा होगा/सहा होगा? जो भी हो, पर ईश्वर कृपा ही है, जो वह उस लंका से भी बुरी राक्षसी साम्राज्य से दूर आ चुकी हैं, जिसका स्वामी रावण से भी बड़ा राक्षस है।

(लेखक बी.पी.गौतम स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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