“बस हाजिर हो रहे हैं सर” अब ऐसा कोई नहीं, जिसे कहा जा सकूं

: जिंदादिल और जांबाज संपादक थे शशांक शेखर : अबे तू संपादक हो गया है क्या? : ‘गांधी को संभालना मेरे बस की बात नहीं।“ : अपने पत्रकारों के लिए तो किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते थे : सुरेश गांधी भदोही : मौत तो प्रकृति की विधि-विधान है। हरके को इस प्रक्रिया […]

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