कभी भादों तो कभी सावन हैं

कितनी मनभावन हैं बेटियां,कभी भादों तो कभी सावन हैं। बेटियाँ रिश्तों-सी पाक होती हैंजो बुनती हैं एक शालअपने संबंधों के धागे से। बेटियाँ धान-सी होती हैंपक जाने पर जिन्हेंकट जाना होता है जड़ से अपनीफिर रोप दिया जाता है जिन्हेंनई ज़मीन में। बेटियाँ मंदिर की घंटियाँ होती हैंजो बजा करती हैंकभी पीहर तो कभी ससुराल […]

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