ब्रजलाल: पहले प्रदेश सम्भालते थे, अब पेट की बीमारियां
: यूपी के डीजीपी रहे ब्रजलाल ने अपने बाग में उगायी है सूरन की बम्पर खेती : किसी कुशल शेफ की तरह सब्जी और घरेलू उपकरणों-तरीकों पर व्याख्यान देने का अभियान :
ब्रजलाल
लखनऊ : मेरे गार्डेन में सूरन बरसात होते ही उग आये हैं। बम्पर फसल लहलहा रही है। सूरन, कान, जिमीकंद कहते है। जिसको भी इसकी जरूरत हो, घर पर तशरीफ लाये। सूरन वगैरह तो इस वक्त शैशवावस्था में हैं, लेकिन उनके ताजे-कोपल पत्तों की पकौड़ी जरूरत मिल सकती है। यह खुला ऑफर दे रखा है।
गांवों में कच्चे मकानों की दीवालों के किनारे लगा दिया जाता था। उस समय घर शहरों की तरह मिले नहीं होते थे और दो पड़ोसियों के घरों के बीच गली अवश्य होती थी। इसी गली के दोनों तरफ़ लोग दीवाल की पुस्ती पर सूरन लगा लेते थे और दीवाली के समय इसकी सब्ज़ी और चोखा ( भरता) खाने को मिल जाता था। उस समय भुजिया (सेला) चावल बनाने के लिए धान को पहले पानी में गरम करके ठंढा किया जाता था और सुबह भीगे और हल्के उबले धान को हंडिया में डालकर गर्म किया जाता था, जिसे सुखाकर ढेका में कुटाई करके भुजिया चावल तैयार किया जाता था।
धान को भाँप देते समय सूरन को उसी में डालकर उबाल लिया जाता था और छिलके उतार कर उसके टुकड़े काटकर सूखी स्वादिष्ट सब्ज़ी बनायी जाती थी। हाँ आम की खटाई अवश्य डाली जाती थी जिससे कनकनाहट ख़त्म हो जाय। दीवाली में सूरन की सब्ज़ी बनना आज भी अनिवार्य है। हाँ अब बाज़ार से ख़रीद कर आता है।उबले सूरन से मज़ेदार चोखा भी बना लिया जाता था ।
सूरन का अचार बहुत स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक होता है। समय के साथ मकानों के बीच की गलियाँ, पीछे बेर्हा( सहन ) समाप्त हो गये जहां मौसमी सब्ज़ियाँ उगा ली जाती थी। इसी जून के महीने में तरोई, सरपूतिया, लौकी, कोहढ़ा , सेम , करेला चिचिढ़ा, सेमा, खबहां( पेठा कद्दू) लगा लिए जातें थे जो घर की माताएँ करती थी और स्वस्थ फल अगले साल बीज के लिए छोड़ देती थी।
घर का आग़न प्रत्येक घर की शोभा होती थी, जिसे गोबर और कभी कभी चिकनी मिट्टी से लीपा जाता था। मजाल कि कहीं गंदगी दिखायी भी पड़ जाय। इसी आगन में अनाज सुखाये जाते थे और जाड़े में अलाव ( कौड़ा) लगता था जो चौपाल का भी काम करता था। आज यह सब समाप्त हो चुका है, किसान खेत होते हुए भी सब्ज़ी ख़रीद कर खाता है। ढेका,सिल- बट्टा ,ओखली – मूसल, चकिया, जाँता, समाप्त हो गये जो घर के जीवनयापन के यंत्र थे , जिससे भरपूर व्यायाम हो जाता था। इन्ही कारणों से गावों में मधुमेह , हार्ट- अटैक, रक्तचाप , कैंसर की बीमारी आम हो गयी है।
काश आधुनिकता के साथ हमारे जीवन जीने के तरीक़े में इतना बदलाव न होता तो हम स्वस्थ जीवन के साथ अपने पुरखों की तरह मस्त और निरोग होते।