बलिया पत्रकार हत्याकांड: असलियत तो कुछ और ही है
दूकान चमकाने में जुटे खानदानी जायदाद बने पत्रकार संगठन : सहारा समय के रतन सिंह की हत्या में लकडबग्घों ने खोला मोर्चा : बलिया में दोलत्ती डॉट कॉम ने डेरा डाला : कुमार सौवीर
लखनऊ : विगत 24 अगस्त-20 को बलिया के फेफना में हुई पत्रकार रतन सिंह की हत्या के बाद से ही पत्रकार-समुदाय और राजनीतिक दलों ने सरकार और प्रशासन तथा पुलिस की जबर्दस्त घेराबंदी कर रखी है। नतीजा यह हुआ कि देश में इस पर हंगामा खडा हुआ और उत्तर प्रदेश के अधिकांश जिलों में पत्रकारों ने समाज के दीगर लोगों के साथ विरोध और प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। आगरा में चैनलों के पत्रकारों ने अपने-अपने माइक-आईडी को एकजुट रख कर प्रतीकात्मक विरोध भी जताया। हर जिले और तहसील में इस कांड की कडी निंदा की गयी, सरकार को घेरा गया, प्रशासन और पुलिस को खूब गरियाया गया। इस पूरे दरमियान सभी ने यही कहा कि प्रदेश में पत्रकारिता अब संकट में है। पत्रकारों की हत्या हो रही है और अभिव्यक्ति पर खतरा है, अब जुबान नही नहीं, गला भी काटा जा रहा है, कलम तोड़ी जा रही है।
कांग्रेस की प्रियंका गांधी ने भी इस कांड की कड़ी निंदा करते हुए बताया कि बलिया अब हत्याओं का गढ बनता जा रहा है। लल्लू सिंह को भी बलिया जाने से रोकने की कोशिश कर डाली प्रशासन ने। मकसद कि आग में घी न पड़ जाए।
उधर बडे पत्रकार संगठनों के सो-कॉल्ड दिग्गज नेताओं ने अपने-अपने एसी-बन्द कमरों से बयान जारी कर दिया कि पत्रकारों पर होने वाले हमलों को अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। जरूरत पड़ी तो वे अपने संगठन के हजारों सदस्यों के साथ बलिया कूच करेंगे और सरकार और प्रशासन तथा पुलिस के खिलाफ फैसलाकुन आंदोलन छेड देंगे। अपनी करतूतों, स्वार्थों, और अराजक व षडयंत्रकारी चरित्र के चलते अपने संगठन को अपने दो-चार गिरोहबंदों या अपने संगठन को बाप-बेटे की खानदानी जायदाद समझ कर कुण्डली मारे बैठे नेताओं ने भी इसमें खूब बयान जारी किये।
सच यही है कि पिछले दस बरस के दौरान यूपी में करीब एक हजार गुणा ज्यादा बढ चुके लकडबग्घा-पत्रकारों की भीड ने करीब एक सैकडा पत्रकार-संगठन बना लिया है। इसकी वजह है बड़े संगठनों की स्वार्थ-लिप्सा, अराजक कार्य-शैली। यूपी प्रेस क्लब की इमारत तक को इन नेताओं ने चंद रुपयों के बदले बारे रेस्टोरेंट्स के हवाले कर दिया। इमारत के बाहरी हिस्से को नगर निगम को धौंस देकर फुटपाथ तक बेच डाला। इसके चलते कभी बडे पत्रकार संगठन अपना अस्तित्व भी खोने लगे हैं। लेकिन किसी भी संगठन ने बलिया के रतन सिंह हत्याकांड समेत किसी भी ऐसे मामले पर तह तक पहुंचने की तनिक भी जरूरत नहीं समझी। स्थानीय पत्रकार और उनके संगठनों ने भी सच न बोलने का संकल्प ले लिया और अपने मुंह ही सिल डाले हैं।
सच बात तो यही है कि अपनी अराजक यूपी में अफसरशाही और अराजकतम चरम तक पहुंच चुकी पुलिस के चरित्र को लेकर योगी-सरकार इस वक्त खासे संकट और बौखलाहट में है। इसी बीच अचानक बलिया में रतन सिंह की हत्या के बाद जिस तरह हंगामा प्रदेश और देश में हुए उससे सरकार निरीह और असहाय हो गयी। नतीजा यह हुआ कि मामले की तह तक जाने के बजाय योगी सरकार ने अपने खिलाफ चल रहे आंदोलन और असंतोष को दबाने के लिए अपने ही घुटने टेक दिया, और मामले को निपटाने के लिए सरकार ने आनन-फानन रतन सिंह के आश्रित परिवार को दस लाख रुपयों की आर्थिक मदद करने का ऐलान कर दिया। इतना ही नहीं, सरकार ने यह भी ऐलान किया कि रतन सिंह के शोकसंतप्त परिवार को किसान बीमा योजना के तहत पांच लाख रुपयों की भी मदद दी जाएगी। यह भुगतान रतन की पत्नी को दिया जाएगा। स्थानीय विधायक और प्रदेश सरकार में मंत्री उपेंद्र तिवारी भी दो दिन पहले आनन-फानन रतन सिंह के घर गये और उसकी पत्नी को एक लाख रुपयों का चेक थमा गये।
फिर क्या, जिले की राजनीति में तो कम, लेकिन पत्रकारिता के नाम पर धंधा करने वाली ताकतों की नसों-रगों में भी सक्रियता का जोश चढ गया। जिले में जितने भी घोषित अपराधी और अपनी हरकतों के चलते समाज में छिछोरे और घटिया माने गये लोगों ने खुद को पत्रकार बन कर अपनी फसल पर खाद-पानी डालना शुरू कर दिया। खूब भाषण-बाजी हुई। पत्रकारों ने प्रशासन में अपना चेहरा दिखा कर अपनी राजनीति चमकाने के लिए नयी-नयी मांग-दर-मांग करने की होड़ मचा दी।
कहने की जरूरत नहीं है कि इन हालातों में आने वाले दिनों में केवल बलिया ही नहीं, बल्कि पूरी पत्रकारिता के नाम पर कलंक बने लोग अपनी कलंक-पत्रकारिता के नाम पर दाखिल-खारिज कराने लगेंगे।
रतन सिंह हत्याकांड की असलियत को खोजने के लिए दोलत्ती डॉट कॉम फिलहाल बलिया में डेरा डाले है। जिस भी शख्स को इस हत्याकांड या यहां की पत्रकारिता के बारे में कहना हो, तो वे 9453029126 पर फोन और वाट्सऐप के साथ ही साथ [email protected] पर संपर्क कर सकते हैं। वे चाहेंगे, तो हम अपने सूत्र की गोपनीयता बनाये रखने के अपने संकल्प का सदैव की तरह सम्मान करते रहेंगे और आपका नाम गोपनीय रखा जाएगा।
संपादक: कुमार सौवीर