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एक ऐसी दोलत्ती जो कभी सामने वाले का थोबड़ा तोड़ देती है, और कभी सामने वाले पर पुष्प-वर्षा कर देती है। ऐसे विपरीत व्यवहारों का मूल होता है आपकी भाषा, बोली, लहजा और व्यवहार।

यही भाषा-बोली व्यक्ति को हाथी पर चढ़ा कर उसे सम्मान दिला देता है, जबकि वही बोली-भाषा व्यक्ति को हाथी के पैरों से कुचलवा देता है। दोलत्ती पर आपका हार्दिक स्वागत है।

आपको सिर्फ इतना तय करना है कि आपका मेरे और दोलत्ती के प्रति व्यवहार कैसा होगा। सबसे बड़ी बात है सदाशयता, जहां से प्रस्फुटित और पुष्पित-पल्लवित होती हैं मित्रता और आत्मीयता का बिरवा बेखौफ और उर्वर हृदय में उगता है।

दोलत्ती सन्देश

मैं तो एक खुली और दिलचस्प किताब की तरह हूं। कोई भी चाहे, जहां से चाहे, पन्ना खोलकर कुछ भी पढना शुरू कर दें। कितनी रोचक दास्तान है मेरी, इसका फैसला तो आप खुद कर पायेंगे। मगर सच्‍ची इत्‍ती है कि आप इस फिल्म को कहीं से भी कभी भी देख-पढ सकते है, मजा ले सकते हैं।

अवरोधों को खडा करने की न तो मुझे कभी जरूरत महसूस हुई और ना ही अवरोधों ने कभी मेरे सामने कोई अवरोध खड़ा किया। सच के सामने झूठ, प्रेम के सामने नफरत कब तक टिके रह सकते हैं?

मेरा मानना है कि जो भी हो, बस आमने-सामने हो। अरे भई, जब कोई बात अघोर के प्रकाश में पूरी सम्‍पूर्णता के साथ हो सकती है, तो घोर-तमस का सहारा क्‍यों लिया जाए। हां हां, आप मुझे अघोरी मान सकते हैं।

न जाने क्यों, डर तो मुझे कभी लगता ही नहीं। भूतों को खोजने के लिए एक हफ्ते तक कब्रिस्तान में रातें गुजारीं। लखनऊ से लेकर जौनपुर और बनारस के मणिकर्णिका घाट और हरीशचंद्र घाट ही नहीं, चंदौली के महड़ौरा घाट में महीनों तक अड्डा जमाया। सारे के सारे भूत-जिन्‍नात ही भाग गये। तो इन्सान से क्या डरना? बावजूद इसके कि लोग कहते हैं कि इंसान से ज्यादा खतरनाक जानवर नहीं होता।

पता नहीं है मुझे, मगर मैं जानवरों और इंसानों से बेहद प्यार करता हूं। ऐसी हालत में अपने प्यारों से डरना कैसा ?

खैर, आप आइये मेरे पास, मेरे दिल-दिमाग तक। जब भी जरूरत पड़े। बेधड़क, बेहिचक। हार्दिक स्‍वागत।
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