तू वट-पूजक, मैं हूं रंडवा सनातनी। सजनी, अब आन मिलो

: पर्व नहीं वट-सावित्री, इसे मेरा आनंद-अनुष्ठान में तब्दील कर दो न : मैं नहीं डरता मुच्छड भैंसा का कलूटा यमराज : मेरा क्या? मैं आज न सही कल, अथवा दो-चार साल में ही टें बोल दूंगा। कहो तो अभी प्राण त्याग दूँ। : कुमार सौवीर लखनऊ : मुझे इससे कोई लेनादेना नहीं है कि […]

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हम औरतों का तो कोई त्‍योहार तो होता नहीं है न, इसलिए

: अब तो हर्गिज नहीं लगता है कि दो संस्‍कृतियों का सम्‍मेलन कराती है औरत : सच तो यही है कि त्‍योहार का आनन्‍द तो केवल पुरूष ही लेते हैं : त्‍योहार का मतलब औरतों के जिम्‍मे और ज्‍यादा भारी जिम्‍मा : जिन्‍दगी तो केवल रसाई तक सिमट जाती है औरतों की : कुमार सौवीर […]

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