तू वट-पूजक, मैं हूं रंडवा सनातनी। सजनी, अब आन मिलो

: पर्व नहीं वट-सावित्री, इसे मेरा आनंद-अनुष्ठान में तब्दील कर दो न : मैं नहीं डरता मुच्छड भैंसा का कलूटा यमराज : मेरा क्या? मैं आज न सही कल, अथवा दो-चार साल में ही टें बोल दूंगा। कहो तो अभी प्राण त्याग दूँ। : कुमार सौवीर लखनऊ : मुझे इससे कोई लेनादेना नहीं है कि […]

आगे पढ़ें

शुभ-लाभ: लाभ तो उठाइये, लेकिन शुभ की अनिवार्यता को भी समझिये

: पहले दीपक के ढांचे को गौर से देखिये। उसमें गुरूता का प्रतीक तेल भरा भरा पड़ा : एक नया तत्‍व यानी दीप-शिखा का निर्माण हो जाता है : वास्‍तविक दीपावली तो तब होती है, जब घमंड और लालच न हो : कुमार सौवीर लखनऊ : दीपक चंद घंटों का खेल नहीं, इंसान के परिवार, […]

आगे पढ़ें

बहंगी लचकत जाए’

काँच ही बाँस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए’ ‘केलवा जे फरेला घवद से, ओह पर सुगा मे़ड़राय: काँच ही बाँस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए’ : सेविले चरन तोहार हे छठी मइया। महिमा तोहर अपार। : उगु न सुरुज देव भइलो अरग के बेर। : निंदिया के मातल सुरुज अँखियो न खोले हे। :चार कोना […]

आगे पढ़ें